21 सितम्बर को लेंगी मुख्यमंत्री पद की शपथ
शिक्षिका से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
जाने कौन है दिल्ली की नई मुख्यमंत्री
स्मार्ट हलचल / लेखक- मदन मोहन भास्कर
दिल्ली की गद्दी संभालने वाली आतिशी
स्मार्ट हलचल / दिल्ली की तीसरी और देश की 17वीं महिला मुख्यमंत्री बनने जा रहीं है। अब आतिशी के हाथ में पूरी दिल्ली की कमान है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल विनय सक्सेना को मंगलवार को मुख्यमंत्री पद का इस्तीफा सौंप दिया। आम आदमी पार्टी विधायक दल की बैठक में आतिशी को सीएम पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है और दिल्ली की मुख्यमंत्री नामित किए जाने के बाद आतिशी ने कहा कि तरफ खुशी है तो दूसरी तरफ दु:ख भी है, दु:ख इस बात का है कि लोकप्रिय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस्तीफा दे रहे हैं। मैं एक ही लक्ष्य पर काम करूंगी वह लक्ष्य होगा केजरीवाल को फिर से मुख्यमंत्री पद पर बिठाना। उनके मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करुँगी।
जीवन परिचय और शिक्षा
स्मार्ट हलचल/आतिशी का जन्म 8 जून 1981 को दिल्ली में हुआ था। इनके माता-पिता, विजय सिंह और त्रिप्ता वाही, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा स्प्रिंगडेल्स स्कूल, दिल्ली से पूरी की और फिर सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद इन्होंने 2003 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से चेवेनिंग स्कॉलरशिप पर प्राचीन और आधुनिक इतिहास में मास्टर्स किया। 2005 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से एजुकेशन रिसर्च में मास्टर की डिग्री प्राप्त की।
जाने क्या है आतिशी नाम का अर्थ
स्मार्ट हलचल/आतिशी का संबंध ‘आतश’ यानी आग से होता है। आतिशी का मतलब उग्र,तेजस्वी, प्रज्वलित होने वाला या अंगारे जैसा लाल होता है। आतिशी एक यूनीक नाम है। लोग आतिशी का संबंध ‘आतिशबाजी’ से जोड़कर लगाते हैं। ‘आतिशी’ हिंदी का नहीं फारसी का शब्द है। शाब्दिक तौर पर इसका अर्थ होता है ‘जो आग में तपाने पर भी जो नहीं टूटे। आतिशी शीशा जैसी चीज होती है, जिस पर सूर्य की किरण टकराती है तो उससे आग पैदा होती है।
शिक्षिका भी रह चुकी हैं आतिशी
आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले आतिशी ने मध्य प्रदेश के छोटे से गांव में 7 साल तक काम किया। इसके बाद वह आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल में इतिहास और अंग्रेजी की टीचर भी रही थी।
दिल्ली के सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने में अहम भूमिका
मनीष सिसोदिया की सलाहकार रहते हुए आतिशी ने दिल्ली के शैक्षणिक संस्थानों के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए पहचाना जाता है। आतिशी ने दिल्ली के सरकारी विद्यालयों के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, विद्यालयों की दशा सुधारने, विद्यालय मैनेजमेंट कमिटियों के गठन और निजी स्कूलों को मनमानी बेहिसाब फ़ीस वृद्धि को रोकने के लिए सख्त एवं कड़े नियमों को लागू करने और ‘खुशी’ पाठ्यक्रम शुरू करने जैसे कामों में अहम भूमिका निभाई।
इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के साथ काम कर रहे हैं। इन्होंने दिल्ली आई आई टी और आई आई एम अहमदाबाद से पढ़ाई की है। दिल्ली की सक्रिय राजनीति में आने से पहले उनका स्थाई निवास बनारस था। प्रवीण वर्तमान में सामाजिक कार्यों में काफी सक्रिय रहते हैं। ये ग्रामीण अंचल में उत्थान कृषि और सामाजिक स्तर को बेहतर करने के लिए सामाजिक कार्यो को करते हैं। इन्होंने 8 साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया है और अमेरिका की कंसल्टेंसी फर्म में काम के बाद वह समाजसेवा के क्षेत्र में उतर गए और वहाँ से शुरू से आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे और 2006 में बड़ी धूमधाम से इन्होंने शादी की।
बीएचयू के कुलपति रह चुके हैं ससुर
स्मार्ट हलचल / कछवां के अनंतपुर गांव के रहने वाले प्रो. पंजाब सिंह आतिशी के ससुर हैं। बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. पंजाब सिंह ने सहायक अध्यापक के तौर पर अपने कैरियर की शुरुआत की थी। इन्होंने कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग के सचिव व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक के पद पर भी रह चुके हैं। प्रो. पंजाब सिंह ने मिर्जापुर बीएचयू के दक्षिणी परिसर बरकछा की स्थापना कराई थी। जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर बरकछा में 30 मई 2005 को पहली बार काशी हिदू विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. पंजाब सिंह परिसर पहुंचे थे, वर्ष 2006 में भूमि पूजन कराया था। इस जगह का नाम राजीव गांधी दक्षिणी परिसर रख दिया। 2700 एकड़ में फैले परिसर में आज ग्रामीण क्षेत्र के छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। प्रोफेसर पंजाब सिंह 2005 से 2008 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर तैनात रहे। इन्होंने कृषि शोध एवं शिक्षा विभाग के सचिव, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महासचिव, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी के फेलो, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विद्यालय विश्वविद्यालय झांसी की कुलाधिपति, कृषि एवं ग्रामीण उन्नति फाउंडेशन वाराणसी के अध्यक्ष समेत कई पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
पार्टी सदस्य से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
स्मार्ट हलचल / भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दौरान राजनीति में सबसे पहली बार आतिशी ने कदम रखा था। ये 2015 से 2018 तक दिल्ली के डिप्टी सीएम और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की सलाहकार के रूप में काम कर चुकी हैं। ये तेज तर्रार ‘आप’ नेता पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी ( पीएसी ) की मेंबर भी रह चुकी हैं। आतिशी आम आदमी पार्टी की संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 2013 में आम आदमी पार्टी ने जब सबसे पहले मेनिफेस्टो ड्राफ्ट जारी किया था, तो उसमें आतिशी को भी जगह दी गई थी।
असफ़लता के बाद सफलता मिली
2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, आप ने उन्हें पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के लिए नामित किया। कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली और भाजपा उम्मीदवार गौतम गंभीर के खिलाफ एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखे जाने के बावजूद, आतिशी पर्याप्त वोट हासिल करने में विफल रहीं और गंभीर से हार गईं। लेकिन 2020 में इन्होंने कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता और विधायक बनीं। इसके बाद दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद वे शिक्षा मंत्री बन गईं।
शिक्षा मंत्री बनने के बाद आतिशी ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इन्होंने मनीष सिसोदिया के सलाहकार के रूप में भी काम किया और शिक्षा नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आतिशी वर्तमान में दिल्ली सरकार में शिक्षा, पीडब्ल्यूडी, संस्कृति और पर्यटन मंत्री के रूप में कार्यरत हैं। आतिशी के पास फिलहाल दिल्ली सरकार में जो विभाग हैं उनमें शिक्षा, उच्च शिक्षा, टेक्निकल ट्रेनिंग एंड एजुकेशन (टीटीई), पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी), ऊर्जा, राजस्व, योजना, वित्त, विजिलेंस, जल, पब्लिक रिलेशंस और कानून-न्याय जैसे डिपार्टमेंट शामिल हैं।
दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी
आतिशी सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाली तीसरी महिला होंगी। ये पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद वर्तमान समय में भारत की दूसरी महिला सीएम भी बन जाएगी।
आतिशी क्यों नहीं लगाती सरनेम?
आतिशी के माता-पिता ने उनके नाम के साथ कोई सरनेम नहीं लगाया बल्कि पूरा नाम ‘आतिशी मार्लेना’ रखा। सरनेम की जगह मार्लेना लगाने की कहानी भी दिलचस्प है। दरअसल, आतिशी के पिता विजय सिंह लेफ्ट विचारधारा को पसंद करते थे और मार्क्स और लेनिन से प्रभावित थे, इसलिए दोनों को मिलाकर अपनी बेटी के नाम के आखिर में सरनेम की जगह ‘मार्लेना’ लगाया।
क्यों हटाया सरनेम ?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में जब आतिशी मैदान में उतरीं तो विपक्षियों ने उनके नाम को मुद्दा बनाते हुए उन्हें ईसाई करार दे दिया था। ‘मार्लेना’ सरनेम से भ्रम भी हुआ और सोशल मीडिया पर भी खूब फेक न्यूज़ फैलने लगी। इसके बाद आतिशी ने अपने नाम के आखिर से मार्लेना हटाने का फैसला कर लिया। आतिशी अपने नाम के साथ कोई सरनेम या टाइटल आदि नहीं लगातीं। मार्लेना लिखना भी छोड़ दिया। अब वह ये अपना नाम सिर्फ आतिशी लिखती हैं।