Homeराजस्थानजयपुरखेडापति बालाजी की 28 वी पदयात्रा का विशाल आयोजन आज

खेडापति बालाजी की 28 वी पदयात्रा का विशाल आयोजन आज

• आस्था और श्रद्धा का केंद्र खेडापति बालाजी धाम ,हजारो भक्त आते है पदयात्रा में

नितेश शर्मा

स्मार्ट हलचल|जयपुर जिले की फागी तहसील के माधोराजपुरा कस्बे से करीब तीन किलोमीटर दक्षिण में खेड़ा गांव में स्थित स्वयंमेव उद्भुत बालाजी का यह मंदिर आज भक्तों की आस्था और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र बन चुका है। यहां मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही आत्मिक शांति की अनुभूति होने लगती है। कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। रोजाना यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु बालाजी के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आते हैं। इतना ही नहीं यहां अनेक पदयात्राएं भी आती हैं जिसमें शामिल पदयात्री श्रद्धा और उत्साह के साथ खेड़ापति का आशीर्वाद प्राप्त करने को लालायित नजर आते हैं | यहां आने वाली पदयात्राओं के साथ आने वाली विशाल ध्वजा को बालाजी के चरणों में अर्पित करने के बाद मंदिर के शिखर पर स्थित गुंबद पर फहराने की परम्परा है। जयपुर के झोटवाडा कालवाड़ रोड स्थित बजरंग द्वार बेरिया बालाजी मंदिर से हर साल विशाल पदयात्रा खेडापति धाम जाती है इसी कड़ी में आज 28 वि विशाल पदयात्रा का भव्य आयोजन बेरिया बालाजी मंदिर बजरंग द्वार से किया जा रहा है पदयात्रा गुरुवार 31 जुलाई को प्रस्थान करेगी | पिछले 27 वर्षो से निरंतर हर वर्ष ये पदयात्रा बजरंग द्वार जयपुर से खेडापति धाम जाती रही है . इस विशाल 28वी पदयात्रा में हजारो भक्तगण नाचते गाते हुए भक्तिमय आनंद के साथ पदयात्रा में सम्मिलित होंगे .पदयात्रा 31 जुलाई को रवाना होकर 1 अगस्त को फागी तहसील स्थित मधोराजपूरा खेडापति बालाजी मंदिर पहुचेगी जहा 1 अगस्त को सम्पूर्ण रात्रि विशाल बालाजी का जागरण होगा और 2 अगस्त को सुबह ध्वजा पूजन और बालाजी को भोग लगाकर सभी पदयात्रियो हेतु प्रसादी का आयोजन किया जायेगा .

• खेडापति धाम की महिमा –
• मंदिर के प्रधान पुजारी देवकी नंदन पारीक का कहना है कि जिस स्थान पर आज भव्य मंदिर है वहां सैकड़ों साल पहले जंगल थे। ग्वाले अपनी गायों को यहां चराते थे। उन्हीं में से एक सफेद गाय रोजाना करील वृक्ष के समीप जाकर खड़ी होती और उसके थनों में से दूध स्वतः निकलकर धरती में समा जाता। यह सिलसिला कई दिन तक चला। बाद में पता लगने पर गांव वालों ने जब इस स्थान की खुदाई की तो यहां बालाजी की मूर्ति नजर आई। ग्रामवासियों ने मूर्ति को करील वृक्ष के समीप स्थापित कर दिया।मंदिर के प्रधान पुजारी के कथन और मंदिर के इतिहास की प्रमाणिकता को साबित करने के लिए मंदिर परिसर में मौजूद करील वृक्ष अपने आप में बड़ा प्रमाण है। मंदिर के समीप ही हनुमान कुण्ड बना हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार स्वयं बालाजी इस कुण्ड में स्नान किया करते थे। इस कुण्ड को लेकर मान्यता है कि इसके जल के स्पर्श मात्र से शारीरिक रोग ठीक हो जाते हैं। बालाजी धाम में हर साल वैशाख शुक्ल सप्तमी को बालाजी का पाटोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
सात्विक उपासना का केंद्र बन चुके खेड़ाधाम के बारे में प्रधान पुजारी देवकी नंदन का कहना है कि सम्वत 1800 के करीब जयपुर रियासत के दीवान दौलतराम हल्दिया की मनोकामना पूर्ण होने पर बालाजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर इस मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। जिस पर दीवान हल्दिया ने यहां मंदिर और हनुमान कुण्ड का निर्माण करवा कर स्वयं उद्भुत बालाजी की मूर्ति को विधिवत तरीके से प्रतिष्ठापित कराया।

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