राजेश कोठारी
करेडा । छत्तीसगढ़ में चल रहे वोटर लिस्ट संशोधन (SIR) अभियान के दौरान एक ऐसा संवेदनशील और दिल छू लेने वाला मिलन हुआ है जिसने पूरे क्षेत्र को भावुक कर दिया। लगभग 40 साल से लापता रहे उदय सिंह रावत अपने परिवार से फिर मिल गए।
परिवार के अनुसार उदय सिंह वर्ष 1980 में अचानक घर से गायब हो गए थे। परिजन दशकों तक उन्हें खोजते रहे, पर कोई ठोस सुराग नहीं मिला। वर्षों बाद उदय सिंह छत्तीसगढ़ में एक निजी कंपनी में गार्ड की नौकरी करने लगे। वहां उन्हें एक सड़क दुर्घटना का सामना करना पड़ा, जिसमें सिर पर चोट लगने के बाद उनकी याददाश्त चली गई और घर-परिवार की पहचान धुँधली हो गयी।
हालिया SIR अभियान के दौरान उदय सिंह भीलवाड़ा के सुराज गांव स्थित स्कूल में वोटर फॉर्म की जानकारी लेने पहुंचे। उनके द्वारा दी गई जानकारी और रिकॉर्ड मिलान के समय स्कूल के शिक्षक जीवन सिंह को शक हुआ और उन्होंने शिवपुर पंचायत के जोगीधोरा गांव में परिजनों को सूचना दी। परिजन जैसे ही स्कूल पहुंचे, उदय सिंह और परिवार की भावनात्मक पुनर्मिलन प्रक्रिया शुरु हुई।
उदय सिंह के भाई हेमसिंह रावत ने बताया कि प्रारम्भ में विश्वास करना कठिन था, पर जब उदय ने परिवार की पर्सनल यादों और बचपन की बातें बताईं, तो यकीन हो गया कि सामने उनका ही भाई खड़ा है। पहचान की अंतिम पुष्टि तब हुई जब मां चुनी देवी रावत ने बेटे के माथे व सीने पर पुराने घावों के निशान देखे। ममता से ओत-प्रोत चुनी देवी ने उदय के माथे पर अपना सुन्नर चुम्बन किया और कहा “यो ही म्हारो उदय… मोयो लाल मिल गयो।” यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति के लिए भावुक कर देने वाला था।
पहचान होते ही पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई। परिजन और ग्रामीणों ने ढोल-नगाड़ों और DJ के साथ जुलूस निकाल कर उदय सिंह का पारंपरिक तरीके से स्वागत किया और उन्हें घर ले जाया गया। इस पुनर्मिलन के दौरान उदय सिंह ने कहा कि एक्सीडेंट के बाद उनकी स्मृतियाँ चली गई थीं और अब परिवार से मिलकर उन्हें अवर्णनीय खुशी हो रही है वह चुनाव आयोग के SIR अभियान के चलते ही परिवार से जुड़ पाए हैं।
अभियान का उद्देश्य मतदाता सूची का सत्यापन व संशोधन है, पर इस घटना ने दिखा दिया कि ऐसी सरकारी प्रक्रियाएँ कभी-कभी दस्तावेजों से बढ़कर मानवीय जुड़ाव भी पैदा कर सकती हैं। घर-घर सत्यापन, रिकॉर्ड मिलान और पहचान पुष्टि के माध्यम से यह चार दशक पुराना बिछड़ा रिश्ता फिर से बंध गया। उदय सिंह के लौट आने से रावत समाज और परिवार में खुशी के साथ-साथ वर्षों की पीड़ा भी झलक रही है। गांव में अब मिलन की खुशियाँ बनी हुई हैं और परिजन धीरे-धीरे बीती जुदाई की दास्तान को सुलझाने में लगे हैं।


