(धर्मेन्द्र कोठारी)
भीलवाड़ा|स्मार्ट हलचल|पर्युषण महापर्व का दूसरा दिवस तेरापंथ नगर में स्वाध्याय दिवस के रूप में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। साध्वी श्री उर्मिला कुमारी जी ने अपने मंगल प्रवचन में कहा जहां संघ होता है, वहां मर्यादा लक्ष्मण रेखा के समान अनिवार्य हो जाती है। मनुष्य का जीवन एक अनमोल निधि है। सौ शास्त्र मिलकर भी एक मस्तिष्क का निर्माण नहीं कर सकते, किंतु एक सजग मस्तिष्क सौ शास्त्रों का सृजन कर सकता है। जिसने अपने मस्तिष्क का सार्थक सदुपयोग किया, वही आइंस्टीन बना, वही भिक्षु बना, वही आचार्य तुलसी बना। जिस संघ में,जिस परिवार में मर्यादा नहीं, वह न तो परिवार चल सकता है और न ही संघ चल सकता है संघ की आधार-शिला को सुदृढ़ करने हेतु मर्यादा और समर्पण की ध्वजा अनिवार्य है। साध्वी श्री मृदुल यशा जी ने स्वाध्याय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा—स्वाध्याय आत्मदीपक है। यह मस्तिष्क का अमृत-रस है। इससे मस्तिष्क को पोषण मिलता है और मन के विकार क्षीण होते हैं। साध्वी श्री ऋतु यशा जी एवं साध्वी श्री ज्ञान यशा जी ने भी अपने उद्बोधनों से उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रेरणा का संचार किया। कार्यक्रम का शुभारंभ महिला मंडल की बहनों के मधुर मंगलाचरण गीत से हुआ। रात्रिकालीन आयोजन में अभिनव अंतराक्षरी का आयोजन हुआ, जिसमें विभिन्न टीमों ने आध्यात्मिक गीतों के माध्यम से वातावरण को भक्तिरस में अभिषिक्त कर दिया। सभाध्यक्ष जसराज चोरड़िया ने सभी का स्वागत करते हुए समाज की आगामी योजनाओं की जानकारी प्रस्तुत की। प्रकाश सुतरिया ने अपने विचार रखे। सभा मंत्री योगेश चंडालिया एवं महिला मंडल मंत्री सुमन लोढ़ा ने पर्युषण के दौरान होने वाले विविध कार्यक्रमों की जानकारी दी। इस अवसर पर बड़ी संख्या में तेरापंथ समाज के श्रद्धालु उपस्थिति थे ।