— संजय अग्रवाला
स्मार्ट हलचल|भारत के अप्रत्यक्ष कर ढांचे में एक ऐतिहासिक परिवर्तन की तैयारी चल रही है। लंबे समय से चली आ रही बहस और राज्यों के बीच राय-मशविरा आखिरकार उस मोड़ पर पहुंच गया है, जहां जीएसटी की जटिलता को कम करने और इसे सरल बनाने का ठोस कदम उठाया जा रहा है। गुरुवार को हुई जीएसटी दर तर्कसंगतीकरण पर बनी मंत्रियों के समूह की अहम बैठक में केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई, जिसके तहत वर्तमान चार स्लैब घटाकर केवल दो कर दिए जाएंगे। बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में छह सदस्यीय समूह ने आम सहमति से यह स्वीकार किया कि अब तक लागू 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की चार दरें बहुत अधिक जटिलता पैदा करती रही हैं। इस वजह से न केवल कारोबारियों और उद्योग जगत को कठिनाई होती थी, बल्कि छोटे दुकानदार, किसान और आम उपभोक्ता भी कई बार उलझन में पड़ जाते थे। इसी समस्या को दूर करने के लिए अब केवल दो मुख्य दरें लागू होंगी। नई संरचना के अनुसार ‘मेरिट’ वस्तुएं और सेवाएं मात्र 5 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में रहेंगी, जबकि अधिकांश अन्य सामान और सेवाओं को 18 प्रतिशत की मानक दर पर कर देना होगा। यह परिवर्तन केवल संख्या में कमी नहीं है, बल्कि पूरे टैक्स ढांचे की सोच में बदलाव है। अब तक 12 प्रतिशत की दर पर जो वस्तुएं आती थीं, उन्हें सीधे 5 प्रतिशत की श्रेणी में ला दिया जाएगा। इसका अर्थ है कि मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष राहत मिलेगी। उदाहरण के तौर पर रोजमर्रा की चीजें, जिन पर अभी तक 12 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ता था, उनकी कीमतों में कटौती संभव हो जाएगी। दूसरी ओर, 28 प्रतिशत वाले कई उत्पादों को 18 प्रतिशत पर लाकर कारोबारियों के अनुपालन बोझ को कम किया जाएगा। इससे उद्योग जगत को राहत के साथ-साथ राजस्व संग्रह में भी स्थिरता आने की उम्मीद है।
फिर भी, एक श्रेणी ऐसी है, जिसे सरकार ने विशेष रूप से अलग रखा है – यह है ‘सिन गुड्स’ यानी वे उत्पाद जो समाज और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं। शराब, तंबाकू, जुआ, ड्रग्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स, फास्ट फूड, कॉफी, शुगर और अश्लील सामग्री जैसी वस्तुओं पर 40 प्रतिशत का विशेष टैक्स बरकरार रहेगा। इसे ‘सिन टैक्स’ कहा जाता है, जिसका उद्देश्य केवल राजस्व जुटाना नहीं, बल्कि लोगों को इनसे दूर रहने के लिए प्रेरित करना भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कर से एक ओर जहां सरकार को अतिरिक्त आय होती है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में भी कमी लाई जा सकती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैठक के दौरान स्पष्ट किया कि यह नई प्रणाली न केवल कर प्रणाली को पारदर्शी और विकासोन्मुख बनाएगी, बल्कि आम आदमी को भी इसका प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि किसानों, मध्यम वर्ग, छोटे व्यापारियों और सेवा क्षेत्र से जुड़े लोगों को यह बदलाव विशेष रूप से राहत देगा। सबसे बड़ी बात यह है कि करदाताओं और कर वसूलने वालों दोनों के लिए ही नियम अब सरल और स्पष्ट होंगे।
बैठक में स्वास्थ्य और जीवन बीमा प्रीमियम को जीएसटी से पूरी तरह छूट देने के केंद्र के सुझाव पर भी चर्चा हुई। अधिकांश राज्यों ने इस विचार का समर्थन किया, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि बीमा कंपनियों पर सख्त नजर रखी जाए ताकि वे इस छूट का लाभ सीधे ग्राहकों तक पहुंचाएं। अनुमान है कि अगर यह छूट लागू होती है, तो सरकार को लगभग 9,700 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व घाटा हो सकता है, लेकिन इसके बावजूद इसे आम जनता के हित में एक स्वागतयोग्य कदम माना जा रहा है।विशेषज्ञों का कहना है कि यह सुधार न केवल कर प्रणाली को सरल बनाएगा, बल्कि निवेश माहौल और कारोबारी सहजता को भी बढ़ावा देगा। अब तक कई उद्योगपति और व्यापारिक संगठन यह शिकायत करते रहे हैं कि चार दरों की व्यवस्था उन्हें उलझा देती है और छोटे कारोबारियों के लिए तो जीएसटी रिटर्न दाखिल करना भी सिरदर्द साबित होता है। नई प्रणाली में अनुपालन का बोझ घटेगा और डिजिटल प्रणाली के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ेगी। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह कदम महत्वपूर्ण है। लंबे समय से राज्यों और केंद्र के बीच जीएसटी राजस्व बंटवारे और दरों को लेकर विवाद रहा है। अब जबकि सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है, तो इसे सहकारी संघवाद का सकारात्मक उदाहरण माना जा सकता है।अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस बदलाव से कर चोरी में भी कमी आएगी। जब दरें कम और स्पष्ट होंगी, तो लोगों में अनुपालन की प्रवृत्ति बढ़ेगी और टैक्स का दायरा व्यापक होगा। यानी राजस्व की भरपाई दर घटाने के बावजूद संभव हो सकेगी। साथ ही, आम जनता के हाथ में अधिक पैसा बचेगा, जिससे खपत और मांग को बढ़ावा मिलेगा और अंततः अर्थव्यवस्था की विकास दर को सहारा मिलेगा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि राजस्व पर इसका तात्कालिक प्रभाव देखने को मिलेगा और सरकार को प्रारंभिक वर्षों में घाटा झेलना पड़ सकता है। लेकिन दीर्घकाल में यह व्यवस्था स्थिर और लाभदायक साबित होगी।
अब सभी की नजरें जीएसटी परिषद की अगली बैठक पर हैं, जो सितंबर में होने वाली है। अंतिम फैसला वही लेगी और उसके बाद यह तय होगा कि देश की कर व्यवस्था किस नए रूप में आगे बढ़ेगी। अगर परिषद इस प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो यह जीएसटी के इतिहास का सबसे बड़ा सुधार होगा, जिसने 2017 में लागू होने के बाद से ही अनेक बहसों को जन्म दिया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दो स्लैब वाली नई जीएसटी प्रणाली आम जनता, कारोबारियों और सरकार तीनों के लिए एक नई दिशा तय करेगी। सरलता, पारदर्शिता और विकासोन्मुखता – इन्हीं तीन स्तंभों पर आधारित यह बदलाव भारत की टैक्स प्रणाली को एक नए युग में प्रवेश दिला सकता है। अब देश इंतजार कर रहा है सितंबर की उस घड़ी का, जब जीएसटी परिषद इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगाएगी और करोड़ों उपभोक्ताओं और कारोबारियों के जीवन में यह बड़ा बदलाव उतरकर दिखाई देगा।