1383वां प्राकट्य दिवस धूमधाम से सम्पन्न, शोभायात्रा–जागरण और प्रसादी वितरण से गूंजा शक्तिपीठ
चौहान वंश की कुलदेवी का प्रथम प्राकट्य स्थल आसलपुर: आस्था, सामाजिक एकता और उत्सव का अद्भुत संगम
अजय सिंह (चिंटू)
आसलपुर -स्मार्ट हलचल|भाद्रपद शुक्ल अष्टमी पर शनिवार को प्राचीन श्री आशापुरा शक्तिपीठ, आसलपुर में 1383वां प्राकट्य दिवस एवं 18वां वार्षिक मेला बड़े उत्साह और श्रद्धा भाव के साथ मनाया गया। जयपुर से 50 किलोमीटर पश्चिम और जोबनेर से 10 किलोमीटर दक्षिण स्थित यह मंदिर चौहान राजवंश की कुलदेवी आशापुरा माता का प्रथम प्राकट्य स्थल है। इस पावन अवसर पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।
ध्वज यात्रा और प्रसाद परंपरा
कार्यक्रम की शुरुआत राव समाज द्वारा ध्वज यात्रा से हुई, जिसमें ढोल-नगाड़ों और बैंड बाजों के साथ ध्वज को पूरे गांव में भ्रमण कराया गया। मंदिर प्रांगण में पुजारी मोहित पाराशर ने विधिविधान से ध्वज पूजन कराया। दोपहर 12 बजे माता रानी की विशेष आरती व भोग अर्पित किया गया। इसके बाद भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया, जो राव समाज के घरों से बने विविध पकवानों को मिलाकर तैयार किया गया था।
शोभायात्रा और रिमझिम बरसात
मंदिर परिसर से निकली भव्य शोभायात्रा ने पूरे गांव को भक्ति रंग में रंग दिया। शोभायात्रा राव मोहल्ले से निकलकर मुख्य बाजार, पंचायत भवन, कुमावत और रैगर मोहल्लों से होती हुई मंदिर तक पहुंची।
झांकियों में प्रस्तुत आशापुरा माता का अद्भुत स्वरूप श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर गया। सैकड़ों महिलाएं पारंपरिक राजस्थानी परिधान में झांकी के पीछे चल रही थीं। श्रद्धालु टोली बनाकर डीजे की धुनों पर माता के भजनों पर नृत्य करते हुए जयकारे लगा रहे थे।
शाम को हुई हल्की रिमझिम बारिश ने वातावरण को और पावन बना दिया। बूंदाबांदी और लाइटों से सजे मंदिर ने मिलकर पूरे आयोजन को दुल्हन-सा आभा प्रदान की।
सम्मान समारोह और विचार-विमर्श
मेला स्थल पर आयोजित सम्मान समारोह की अध्यक्षता शिवरतन सोनी (मौसूण) ने की। इस अवसर पर संरक्षक महावीर सिंह राव, पुजारी मोहित पाराशर, और श्री आशापुरा सेवा संस्था अध्यक्ष देवराज सिंह पहलावत सहित समाज के प्रबुद्धजनों ने मंच साझा किया।
अतिथियों का माला, साफा और माता रानी का स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया। समारोह में आगामी आयोजनों को और भव्य बनाने की बात कही गई। साथ ही मंदिर के पीछे चल रहे खनन व ब्लास्टिंग कार्य पर चिंता व्यक्त की गई और इसके समाधान पर विचार-विमर्श हुआ।
भक्ति संध्या और जागरण
भाद्रपद शुक्ल सप्तमी की रात विशाल भक्ति संध्या और जागरण का आयोजन किया गया, जिसमें ख्याति प्राप्त कलाकारों ने भक्ति गीत प्रस्तुत कर श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया।
सामाजिक-धार्मिक महत्व
आसलपुर का यह शक्तिपीठ न केवल चौहान वंश बल्कि राव समाज और अन्य जातियों की कुलदेवी का पूज्य स्थल है। हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी पर यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है, जो भक्ति, उत्साह और सामाजिक एकता का अद्भुत संगम बनकर सामने आता है।
पंजाबी बैंड ने अपने सुरों से भक्तों का अभिनंदन किया, वहीं आतिशबाज़ी ने रात को जगमग कर दिया। पहाड़ी पर स्थित मंदिर रंग-बिरंगी रोशनियों से दुल्हन की तरह सजा हुआ था।