सुनेल 1सितंबर
स्मार्ट हलचल|झालावाड़ जिले की अहिल्या देवी की ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी सुनेल में धूमधाम से डोल ग्यारस का पर्व मनाया गया. यहां जलझूलनी एकादशी के अवसर पर सुनेल में सभी मंदिरों के भगवान पालकी में सवार होकर नगर के भ्रमण पर निकले, जगह जगह सैकड़ों की तादाद सेवकों व श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना की गई प्रसाद भी चढ़ाया गया .भगवान के दर्शन कर मनोकामना की. वैसे तो होल्कर स्टेट के समय से ही लगभग 400 वर्षों से परम्परा चली आ रही हैँ. ऐतिहासिक राममंदिर परिसर में सभी मंदिरों के भगवान पालकी में सवार होकर एकत्रित हो जाते हैं.उसके बाद भगवान श्री रामचन्द्रजी और श्री लक्ष्मणजी को शाही स्नान करवाया गया. प्रभु की आरती के बाद भगवान की बाल प्रतिमा की शोभायात्रा भगवान के गर्भगृह से सोने-चांदी की पालकी में बिराजमान करके परिसर में ले जाती हैँ.
सुनेल के आराध्य देव श्री रामचन्द्रजी अपने निजी मंदिर से स्वर्ग सी आभा में मृंदग, शहनाई, बैंण्ड बाजों की मधुर ध्वनि के साथ ठाकुर जी की जय के जयकारों के साथ मंदिर प्रांगण में आए. प्रभु की एक झलक पाने के लिए मंदिर चौक की छतें और पाण्डाल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. जिधर देखो उधर ही श्रद्धालु नजर आ रहे थे. इस दौरान भक्तजनों और श्रृद्धालुओं ने जगह-जगह प्रभु के बेवाण पर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया. शोभायात्रा के सबसे आगे श्री राम चंद्रजी का देव विमान उसके बाद सभी मंदिरों के देव विमान चल रहे थे. इस अवसर पर लोगों की श्रद्धा देखते ही बन रही थी, पूरा नगर धर्ममय लग रहा था. श्री रामचन्द्रजी की जय, प्रभु आपकी जय हो का उद्घोष करते हुए झूम रहे थे. डोल ग्यारस का महत्व पुजारी हिमांशु त्रिवेदी पुजारी ने बताया कि डोल ग्यारस को राजस्थान में ‘जलझूलनी एकादशी’ कहा जाता है. इस अवसर पर गणपति पूजा, गौरी स्थापना की जाती है. इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है फिर शाम को इन मूर्तियों को वापस लाया जाता है. डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है.