— संजय अग्रवाला, जलपाईगुड़ी
स्मार्ट हलचल|भारत की अर्थव्यवस्था में कर सुधारों का महत्व किसी से छुपा नहीं है। जब 2017 में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लागू हुआ था, तब इसे देश की कर प्रणाली का ऐतिहासिक बदलाव माना गया था। लेकिन शुरुआती वर्षों से ही विभिन्न क्षेत्रों के व्यापारी, उद्योगपति और उपभोक्ता बार-बार यह सवाल उठाते रहे कि कई वस्तुओं और सेवाओं पर ऊँची दरें लगने से उनकी क्रय शक्ति प्रभावित हो रही है। जीएसटी काउंसिल ने समय-समय पर इस पर विचार किया और कई संशोधन किए, परंतु हाल ही में लिया गया निर्णय सबसे व्यापक और राहत देने वाला माना जा रहा है। यह फैसला न केवल आम आदमी के जीवन से जुड़ी सेवाओं को सस्ता करेगा, बल्कि उद्योगों के बोझ को भी कम करेगा। अभी तक जीएसटी की चार दरें: 5%, 12%, 18% और 28% लागू थीं। आम आदमी के लिए यह संरचना उलझनभरी और व्यापारियों के लिए बोझिल साबित हो रही थी। अब काउंसिल ने इसे दो मुख्य दरों वाले ‘सिंपल टैक्स’ में बदलने का निर्णय लिया है। इसमें 18% की मानक दर (स्टैंडर्ड रेट) और 5% की रियायती दर (मेरिट रेट) होगी। वहीं कुछ विशेष वस्तुओं और सेवाओं के लिए 40% की डि-मेरिट दर रखी जाएगी। यह कदम कर प्रणाली को पारदर्शी, सरल और नागरिक-हितैषी बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
काउंसिल ने उन वस्तुओं पर भी विशेष ध्यान दिया है, जिनका सीधा संबंध आम आदमी की ज़िंदगी से है। बालों का तेल, साबुन, शैंपू, टूथब्रश, टूथपेस्ट, साइकिल, टेबलवेयर, किचनवेयर और घरेलू सामान जैसे दैनिक उपयोग की चीज़ों पर जीएसटी की दरें 18% या 12% से घटाकर 5% कर दी गई हैं। इसी तरह खाद्य वस्तुओं पर भी व्यापक राहत दी गई है। पहले 12% या 18% जीएसटी लगने वाले नमकीन, भुजिया, सॉस, पास्ता, इंस्टेंट नूडल्स, चॉकलेट, कॉफी, संरक्षित मांस, कॉर्नफ्लेक्स, मक्खन और घी जैसे उत्पाद अब मात्र 5% की दर से टैक्स के दायरे में आएंगे। इससे आम उपभोक्ता को सीधे तौर पर राहत मिलेगी और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में भी नई ऊर्जा का संचार होगा।
दूध और दुग्ध उत्पादों पर भी बड़ा निर्णय लिया गया है। यूएचटी मिल्क, पैक्ड छेना और पनीर, तथा सभी भारतीय ब्रेड जैसे रोटी, पराठा, परोट्टा आदि को अब जीएसटी से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है। यानी इन पर अब कोई कर नहीं लगेगा। यह फैसला न केवल आम परिवारों की रसोई का बोझ कम करेगा बल्कि डेयरी उद्योग और छोटे उत्पादकों को भी प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने का अवसर देगा।
कृषि और किसानों के हित में भी यह बैठक अहम रही। ट्रैक्टर, कृषि, बागवानी या वानिकी से जुड़े उपकरण, मिट्टी की तैयारी या फसल काटने वाली मशीनरी, चारा बनाने की मशीनें, घास काटने की मशीनें, खाद बनाने वाले उपकरण, इन सभी पर जीएसटी की दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई है। यह कदम किसानों के लिए बड़ी राहत है क्योंकि अब खेती से जुड़े साधनों की लागत कम होगी और उनकी आय पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
श्रम-प्रधान उद्योगों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। हस्तशिल्प, संगमरमर और ग्रेनाइट ब्लॉक, बीच के स्तर के चमड़े के सामान जैसे उत्पादों पर भी दरें घटाकर 12% से 5% कर दी गई हैं। यह कदम ग्रामीण और कारीगर समुदायों की आजीविका को नई ताकत देगा और इन उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे ले जाएगा।
जहाँ तक औद्योगिक निर्माण क्षेत्र की बात है, तो सीमेंट जैसी महत्वपूर्ण निर्माण सामग्री पर जीएसटी को 28% से घटाकर 18% कर दिया गया है। इससे निर्माण क्षेत्र में लागत घटेगी और सस्ते आवास तथा बुनियादी ढाँचे के प्रोजेक्ट्स को गति मिलेगी। इसी तरह छोटे कार और 350 सीसी तक की मोटरसाइकिलों पर भी दरें घटाकर 28% से 18% कर दी गई हैं। अब सभी टीवी (32 इंच तक के) और अन्य घरेलू उपकरण जैसे एयर-कंडीशनर, डिशवॉशिंग मशीन आदि भी 18% पर टैक्स होंगे। यह उपभोक्ताओं के लिए बड़ी राहत है और घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोलता है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में भी अभूतपूर्व निर्णय लिए गए हैं। सबसे अहम बात यह है कि अब सभी व्यक्तिगत जीवन बीमा पॉलिसियाँ—चाहे वे टर्म इंश्योरेंस हों, यूएलआईपी हों या एंडोमेंट पॉलिसियाँ, पूरी तरह जीएसटी से मुक्त होंगी। इसी तरह सभी व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियाँ, चाहे वे परिवार फ्लोटर हों या वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष रूप से बनाई गई हों, भी अब जीएसटी से मुक्त कर दी गई हैं। बीमा पर पुनर्बीमा सेवाएँ भी इस छूट के दायरे में आएंगी। इसका उद्देश्य बीमा को आम आदमी के लिए सुलभ बनाना और देश में बीमा कवरेज को बढ़ाना है।
दवाओं और चिकित्सा उपकरणों पर भी व्यापक राहत दी गई है। 33 जीवन रक्षक दवाओं और औषधियों पर जीएसटी 12% से घटाकर शून्य कर दिया गया है, जबकि 3 दवाओं को, जो कैंसर, दुर्लभ बीमारियों और गंभीर दीर्घकालिक रोगों के इलाज में उपयोग होती हैं, 5% से शून्य पर ला दिया गया है। अन्य सभी दवाओं पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% कर दिया गया है। चिकित्सा उपकरणों और आपूर्ति पर भी व्यापक कटौती की गई है, जहाँ शल्य चिकित्सा, दंत चिकित्सा, पशु चिकित्सा या भौतिक-रासायनिक विश्लेषण में उपयोग होने वाले उपकरण अब 18% से घटाकर 5% टैक्स पर मिलेंगे, वहीं गॉज़, बैंडेज, डायग्नोस्टिक किट, ग्लूकोमीटर जैसी चिकित्सा आपूर्ति पर भी 12% से 5% जीएसटी होगा।
बात करें परिवहन क्षेत्र की। लंबे समय से ऑटोमोबाइल उद्योग यह मांग करता आ रहा था कि बसों, ट्रकों और एंबुलेंस पर लगने वाली 28% की ऊँची जीएसटी दर को कम किया जाए। आखिरकार काउंसिल ने इस पर सहमति जताई और दर घटाकर 18% कर दी। इस फैसले का सीधा असर परिवहन कंपनियों, स्वास्थ्य सेवाओं और सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र पर पड़ेगा। ट्रकों की कीमत कम होने से माल ढुलाई की लागत घटेगी, जिससे वस्तुओं की अंतिम कीमत पर भी दबाव कम होगा। एंबुलेंस पर कर दर घटने से अस्पताल और स्वास्थ्य संस्थान अपेक्षाकृत सस्ते दाम पर इन्हें खरीद सकेंगे, जिसका अप्रत्यक्ष लाभ मरीजों को मिलेगा। इसी तरह, ऑटो पार्ट्स पर लंबे समय से उलझन थी। अलग-अलग एचएस कोड के आधार पर उन पर अलग-अलग दरें लागू थीं, जिससे भ्रम की स्थिति बनी रहती थी। अब जीएसटी काउंसिल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सभी ऑटो पार्ट्स पर समान रूप से 18% की दर लागू होगी। इससे न केवल कर प्रशासन सरल होगा बल्कि उद्योग जगत को भी एक स्पष्ट संदेश मिलेगा। साथ ही, ऑटो उद्योग से जुड़े छोटे और मध्यम उद्यमों को भी राहत मिलेगी, क्योंकि उन्हें अब अलग-अलग दरों का हिसाब नहीं रखना होगा। तीन-पहिया वाहनों पर भी जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया गया है, जिससे ई-रिक्शा और ऑटो रिक्शा की कीमतें कम होंगी और आम लोगों की जेब पर बोझ घटेगा।
टेक्सटाइल क्षेत्र में लंबे समय से इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की समस्या बनी हुई थी। खासकर मैनमेड फाइबर और यार्न पर अलग-अलग दरें होने से असंतुलन पैदा हो रहा था। उदाहरण के लिए, फाइबर पर जीएसटी 18% और यार्न पर 12% था, जबकि कपड़ा तैयार उत्पाद अपेक्षाकृत कम दर पर बिकता था। इससे कपड़ा उद्योग को इनपुट पर अधिक टैक्स देना पड़ता था और आउटपुट पर कम टैक्स मिलने से रिफंड की समस्या खड़ी हो जाती थी। अब काउंसिल ने इस संरचना को सुधारते हुए मैनमेड फाइबर और यार्न दोनों पर जीएसटी घटाकर 5% कर दिया है। यह बदलाव न केवल कपड़ा उद्योग को प्रतिस्पर्धात्मक बनाएगा बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा देगा।
उर्वरक क्षेत्र में भी यही समस्या थी। सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड और अमोनिया जैसे रसायनों पर 18% जीएसटी लगता था, जबकि उर्वरक पर दर केवल 5% थी। इससे किसान संगठनों और उर्वरक कंपनियों को अक्सर शिकायत रहती थी कि इनपुट पर ऊँचा टैक्स देना पड़ता है और उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। अब सरकार ने यह असमानता दूर करते हुए इन रसायनों पर जीएसटी घटाकर 5% कर दिया है। इससे उर्वरक उद्योग की लागत कम होगी और किसानों तक उर्वरक अपेक्षाकृत सस्ते दाम पर पहुँच पाएगा। इसका प्रत्यक्ष लाभ कृषि क्षेत्र को मिलेगा और फसल उत्पादन की लागत घटेगी।
पुनर्नवीनीकरण ऊर्जा यानी रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में भी बड़ी राहत दी गई है। सौर पैनल, विंड टर्बाइन और इनके निर्माण में लगने वाले पुर्जों पर जीएसटी दर अब 12% से घटाकर 5% कर दी गई है। यह कदम प्रधानमंत्री के ‘हरित ऊर्जा’ के लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभाएगा। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि इस राहत से न केवल निवेश बढ़ेगा बल्कि घरेलू स्तर पर सोलर और विंड एनर्जी उपकरणों की मांग भी तेज होगी। आम उपभोक्ता के लिए भी यह बड़ी राहत होगी, क्योंकि बिजली के वैकल्पिक साधन अब और अधिक सस्ते व सुलभ होंगे।
होटल उद्योग भी लंबे समय से कर कटौती की मांग कर रहा था। अब होटल आवास सेवाओं पर, जहाँ प्रति दिन का किराया 7,500 रुपये या उससे कम है, जीएसटी दर 12% से घटाकर 5% कर दी गई है। इससे देश के पर्यटन क्षेत्र को सीधा लाभ होगा। छोटे और मध्यम दर्जे के होटलों में ठहरने वाले यात्रियों के लिए यह एक स्वागत योग्य कदम है, जिससे घरेलू पर्यटन को और गति मिलेगी।
सौंदर्य और स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं को भी सस्ता किया गया है। जिम, सैलून, योग केंद्र और नाई की दुकानों जैसी सेवाओं पर अब जीएसटी दर 18% से घटाकर केवल 5% कर दी गई है। यह कदम आम आदमी की जीवनशैली से सीधे जुड़ा हुआ है, क्योंकि ये सेवाएँ अब हर वर्ग के लिए किफायती होंगी। इससे फिटनेस और स्वास्थ्य क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और अधिक लोग नियमित रूप से इन सेवाओं का लाभ उठा पाएंगे।
जीएसटी काउंसिल ने केवल दरों में ही बदलाव नहीं किया है बल्कि न्यायिक ढाँचे को भी मज़बूत करने का निर्णय लिया है। काउंसिल ने अनुशंसा की है कि जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण यानी जीएसटीएटी को सितंबर 2025 के अंत तक कार्यान्वित कर दिया जाए ताकि अपीलें स्वीकार की जा सकें और दिसंबर 2025 से इसकी सुनवाई शुरू हो सके। इससे व्यापारियों और करदाताओं को एक उचित मंच मिलेगा जहाँ वे अपने विवादों का निपटारा करा सकेंगे। वर्षों से लंबित पड़े कई मामले अब तेज़ी से निपट सकेंगे। इन सभी बदलावों का क्रियान्वयन 22 सितंबर 2025 से शुरू होगा, जब सेवाओं पर नई दरें लागू होंगी। काउंसिल का कहना है कि यह बदलाव चरणबद्ध तरीके से किए जा रहे हैं ताकि उद्योग और उपभोक्ता दोनों को समय पर राहत मिल सके और सरकार को भी कर संग्रहण में संतुलन बनाए रखने का अवसर मिले।
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि इन सुधारों से न केवल महँगाई पर नियंत्रण में मदद मिलेगी बल्कि उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता भी बढ़ेगी। परिवहन लागत घटने से आपूर्ति शृंखला मज़बूत होगी, कपड़ा और उर्वरक उद्योग को नई ऊर्जा मिलेगी, होटल और पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और आम आदमी को स्वास्थ्य एवं सौंदर्य सेवाओं में राहत मिलेगी। साथ ही, हरित ऊर्जा उपकरणों की कीमतों में कमी से पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी। कुल मिलाकर यह फैसला जीएसटी व्यवस्था को और अधिक तर्कसंगत, न्यायसंगत और उपभोक्ता-अनुकूल बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यदि इसे सही ढंग से लागू किया गया, तो यह न केवल उद्योगों को राहत देगा बल्कि आम जनता के जीवन स्तर को भी सुधार देगा। अब निगाहें इस बात पर हैं कि इन नए बदलावों का व्यावहारिक असर बाजार में कब और कैसे दिखने लगता है