करेड़ा।स्मार्ट हलचल|आज़ादी के 77 वर्ष बाद भी राजस्थान के ब्यावर और भीलवाड़ा जिले की तीन ग्राम पंचायतें चैनपुरा, नारेली और शिवपुर एक व्यवस्थित श्मशान घाट से वंचित हैं। इन पंचायतों के लिए निर्धारित श्मशान भूमि की बदहाली ने हाल ही में एक ऐसा दृश्य सामने ला दिया, जिससे ग्रामीणों को गुस्से और बेबसी से भर दिया।
ऐसा ही कुछ देखने को मिला उप खंड क्षेत्र की नारेली पंचायत के पिपलिया गांव की 80 वर्षीय गंगा देवी रावत का अंतिम संस्कार जब इसी श्मशान घाट पर किया गया, तो परिजनों और ग्रामीणों को पानी से जूझना पड़ा। चारों ओर दो से तीन फीट पानी भरा होने के कारण अर्थी को श्मशान भूमि तक ले जाना संभव नहीं था। मजबूरन ग्रामीणों को पानी में खड़े होकर अंतिम संस्कार करना पड़ा। इस अमानवीय स्थिति ने शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया।
ग्रामीणों रूप सिंह रावत का कहना है कि बारिश के मौसम में पास का तालाब भरने से श्मशान भूमि जलमग्न हो जाती है। न तो जल निकासी की कोई व्यवस्था है और न ही मूलभूत सुविधाएं मौजूद हैं। न छाया के लिए टीन शेड, न बैठने की व्यवस्था और न ही रास्ता पक्का। शिकायतें बार-बार की गईं, लेकिन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने कभी स्थाई समाधान की दिशा में कदम नहीं उठाया।
ग्रामीण किशोर सिंह ने प्रशासन पर खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए कहा कि“श्मशान घाट सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं है, यह आस्था और संस्कार का स्थल है। यहां पानी भरना और संस्कार में बाधा आना धार्मिक भावनाओं का अपमान है।”तीनों पंचायतों के ग्रामीणों ने संयुक्त रूप से चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही स्थाई समाधान नहीं किया गया, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।“अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अगर हमारी आवाज़ अनसुनी की गई, तो आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।”वहीं ग्रामीणों ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि“सरकार गांव-गांव विकास के दावे करती है, लेकिन श्मशान घाट जैसे संवेदनशील स्थल पर एक भी मूलभूत सुविधा नहीं है। यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।”


