राजेश कोठारी
करेड़ा, स्मार्ट हलचल। कस्बे सहित उपखंड क्षेत्र में लगातार हो रही मूसलधार बारिश अब किसानों के लिए आफत बन चुकी है। खरीफ सीजन की प्रमुख फसलें मक्का, मूंग, उड़द, कपास और हरी मिर्च भारी जलभराव के कारण पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं। खेतों में पानी भरा हुआ है और किसान बेबस होकर सिर्फ नुकसान गिन रहे हैं।
जहां एक ओर देशभर में मानसून की शुरुआत को खेती के लिए शुभ संकेत माना जाता है, वहीं भीलवाड़ा के कई गांवों में यह बारिश अब कृषि आपदा का रूप ले चुकी है। करेड़ा क्षेत्र के गांव किड़ीमाल, चाड़ों का बाड़िया, सुराज, धावड़िया, चावंडिया, डेलास और खेड़ी माता के किसानों ने बताया कि उन्होंने इस सीजन की बुआई के लिए बैंकों, सहकारी समितियों और निजी साहूकारों से कर्ज लेकर बीज, खाद, कीटनाशक और सिंचाई पर हजारों रुपए खर्च किए थे। लेकिन भारी बारिश ने उनकी मेहनत और पूंजी दोनों को तबाह कर दिया।
स्थानीय किसान पारस गुर्जर ने बताया कि इस बार सोचा था कि मक्का, मूंग और मिर्च बेचकर बच्चों की स्कूल फीस और बेटी की शादी का खर्च निकाल लूंगा। लेकिन अब खेत में सिर्फ पानी है, फसल तो कहीं दिखती ही नहीं। कर्ज़ पहले से था, अब उसे चुकाने की कोई संभावना नहीं बची। अगर हालात ऐसे ही रहे तो आत्महत्या ही आखिरी रास्ता होगा।
पिछले साल भी बारिश से नुकसान हुआ था। सर्वे भी हुआ, लेकिन मुआवज़ा आज तक नहीं मिला। किसान गोकुल बलाई ने कहा कि अब फिर वही सर्वे हो रहा है, वही वादे किए जा रहे हैं। लेकिन हमारे बच्चे भूखे हैं, स्कूल नहीं जा पा रहे, इलाज के पैसे नहीं हैं। वादों से घर नहीं चलता।
किसान धर्मी चंद गुर्जर ने बताया कि बारिश का पानी अब सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रहा। गांवों में भी भारी जलभराव की स्थिति बन गई है। सड़कें बंद हैं, जिससे आवागमन ठप है। गांवों में बिजली-पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई है। स्वास्थ्य सेवाएं बाधित हो रही हैं और बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।
अब तक जिला प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट राहत पैकेज या तत्काल मुआवज़े की घोषणा नहीं की गई है। किसानों का कहना है कि हर बार सर्वे होता है, लेकिन मदद कागज़ों तक ही सीमित रह जाती है।