पवन वर्मा
स्मार्ट हलचल|भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में लगातार पहचान बनाने वाले इंदौर के एक और अभियान ने देश का ध्यान आकर्षित किया है। यह पहल है नो कार डे। एक ऐसा दिन जब लोग अपनी निजी कारों का इस्तेमाल न करके पैदल चलने, साइकिल चलाने, ऑटो, ई-रिक्शा या सार्वजनिक परिवहन साधनों का सहारा लेते हैं। नो कार डे में यहां के संभागायुक्त हो या कलेक्टर या अन्य अफसर सभी कार की जगह पर दो पहिया वाहन पर चलते हैं। पहली नजर में यह एक प्रतीकात्मक कदम लग सकता है, लेकिन इसका संदेश गहरा है। इंदौर न केवल स्वच्छता की मिसाल पेश कर रहा है, बल्कि अब पर्यावरणीय जिम्मेदारी और टिकाऊ शहरी जीवनशैली की दिशा में भी उदाहरण बन रहा है। इंदौर में हर साल 22 सितंबर को नो कार डे मनाया जाता है। इस बार भी नो कार डे पर यहां के संभागायुक्त सुदाम खाडे और कलेक्टर शिवम वर्मा भी दो पहिया वाहनों पर घूमते हुए नजर आए।
कार संस्कृति और शहरों की समस्या
बीते तीन दशकों में भारत के शहरों में कारों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 1991 के उदारीकरण के बाद मध्यमवर्ग की आय बढ़ी, कार लोन सस्ते हुए और निजी गाड़ियों को सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाने लगा। आज आलम यह है कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चैन्नई, पुणे, कोलकाता जैसे बढ़े शहरों से लेकर इंदौर, भोपाल, लखनऊ जैसे मध्यम आबादी वाले के साथ ही छोटे-छोटे शहरों की सड़कें कारों से पटी रहती हैं।
कारें केवल ट्रैफिक जाम का कारण नहीं बनतीं, बल्कि वायु प्रदूषण, शोर प्रदूषण, सड़क दुर्घटनाओं और ऊर्जा खपत की सबसे बड़ी जिम्मेदार भी हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरों में वायु प्रदूषण का चालीस प्रतिशत हिस्सा परिवहन से आता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान निजी कारों का है।
इंदौर की पहल क्यों खास ?
इंदौर जैसे शहर जहां हर साल लाखों लोग काम और शिक्षा के लिए आते हैं, वहां ट्रैफिक दबाव लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में नो कार डे जैसी पहल न केवल प्रतीकात्मक है बल्कि यह शहर को नई दिशा दिखाती है। इंदौर लंबे समय से नागरिक भागीदारी वाले अभियानों के लिए जाना जाता है। स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार पहले स्थान पर बने रहना इसका उदाहरण है। जब नगर निगम और प्रशासन ने नो कार डे मनाने का निर्णय लिया, तो इसमें आम नागरिक, संस्थान, स्कूल-कॉलेज, सामाजिक संगठन और उद्योग जगत सभी ने सहयोग दिखाया। यह पहल इसलिए भी खास है क्योंकि यह केवल प्रशासनिक आदेश नहीं है। बल्कि इसमें जनसहभागिता को केंद्र में रखा गया है। लोग गर्व से सोशल मीडिया पर अपनी साइकिल चलाते, दो पहिया वाहन चलाते, पैदल चलते या ऑटो और बस का उपयोग करते हुए तस्वीरें साझा करते हैं।
पर्यावरण को भी मिलता है लाभ
कारों का प्रयोग कम होने से सबसे बड़ा फायदा वायु गुणवत्ता में सुधार के रूप में सामने आता है। इंदौर की आबादी और वाहन दबाव को देखते हुए यदि एक दिन में 10-15 प्रतिशत कारें भी सड़कों से हटें, तो पीएम 2.5 और कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी हो सकती है। डीजल और पेट्रोल कारों से निकलने वाला कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर सीधे फेफड़ों और दिल की बीमारियों से जुड़ा है। पेट्रोल-डीजल की खपत कम होगी। भारत हर साल अरबों डॉलर का तेल आयात करता है। हॉर्न, इंजन की आवाज और जाम की स्थिति से पैदा शोर कम होगा। कार्बन उत्सर्जन घटाने की दिशा में यह छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम है।


