खरना व्रत के साथ ही शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला निराहार उपवास
जयपुर।स्मार्ट हलचल|बिहार समाज संगठन के प्रमुख महापर्व डाला छठ की शुरुआत मंगलवार से नहाए खाय के साथ शुरू हुआ । बिहार समाज संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन शर्मा ने बताया कि आज व्रती महिला एवं पुरुष निर्जला निराहार व्रत रखेंगे । शाम को मिट्टी की चुल्हे पर चावल व गुड़ से बनी खीर व सूखी रोटी एवं केले के पत्ते पर प्रसाद निकाल कर रखने के बाद तुलसी पत्ता रखकर घी की दीपक जलाकर भगवान सूर्य देव व छठी मईया को भोग लगाया, उसके बाद व्रती प्रसाद ग्रहण किये । प्रसाद ग्रहण करने के समय व्रती को किसी भी प्रकार का आवाज सुनाई नहीं दे । रिश्तेदार परिवार के पूरे समूह इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं आस-पास के पड़ोसी को भी जिनके यहां यह पर्व नहीं मनाया जाता है उनको बुलाकर प्रसाद खिलाया जाता है इस प्रसाद का बहुत बड़ा ही महत्व है इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत जो सोमवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद संपन्न होगा । राष्ट्रीय महामंत्री चंदन कुमार ने कहा की नहाय खाय के बाद जो महिलाएं व पुरुष व्रत किये , शुद्ध शाकाहारी भोजन जिसमें चावल चने की दाल और लौकी की सब्जी के रूप से ग्रहण किया। डाला छठ महापर्व को जयपुर में विभिन्न स्थानों पर जैसे की मुख्य आयोजन गलता जी तीर्थ , शास्त्री नगर स्थित स्वर्ण जयंती गार्डन के पीछे किशन बाग में, हसनपुरा दुर्गा विस्तार कॉलोनी , दिल्ली रोड ,प्रताप नगर, मालवीय नगर, रॉयल सिटी माचवा, मुरलीपुरा ,आदर्श नगर, विश्वकर्मा, जवाहर नगर, निवारू रोड ,झोटवाड़ा लक्ष्मी नगर, कानोता ,आमेर रोड , सोडाला, अजमेर रोड, हीरापुरा पावर हाउस, सिविल लाइंस, गुर्जर की थड़ी , आकेड़ा डुंगर इत्यादि जगहों पर बड़ी धूमधाम से सूर्य उपासना का महापर्व मनाया जाएगा । राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी सुरेश पंडित ने बताया की ठेकुआ प्रसाद होता है खास
प्रसाद की डाली में फल अधिक ही मात्रा में होता है पर छठ का प्रसाद ठेकुआ के बिना अधूरा है इसे तैयार करने के लिए गेहूं का आटा घर में तैयार करने की परंपरा है इस दौरान इस बात का खास ध्यान रखा जाता है की पूजा से संबंधित किसी भी सामग्री को कोई चाहे वह बच्चा हो चिड़िया हो या कोई जानवर हो झूठ ना करें मानता है कि ऐसा हो जाने पर सूर्य देव कुपित हो जाते हैं | लोकगीतों की अनुपम मिठास भगवान सूरज और सूर्य छठी मैया की आराधना में गाए जाने वाली लोक गीतों से युक्त होकर यह पर्व लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रचार करता है । दीपावली के बाद से ही छठ पर्व वाले घरों में यह लोकगीत केरवा जे फरे ला घवद से —- सबेरे चरण तोहार है कांच ही बांस के बहंगिया ,बहंगि लचकते जाए ,केलवा के पात पर उगऽ है सूरज देव अरघ के बेर आदि गीत गूंजने लगे हैं । गलता जी तीर्थ में समाज की ओर से स्वयंसेवक के रूप में सेवा देगें | जिसके घर में कोई मन्नत मांगी जाती है मन्नत पूरा होने पर कोसी भरा जाता है ।
भोर में कोसी के साथ गन्ना ठेकुआ आदि प्रसाद को एक साथ बांध दिया जाता है ।सूर्य देव को लालिमा से पहले कोसीया विसर्जन किया जाता है ।जिसमें मिट्टी के हाथी पर दो कलश गन्ने के साथ खड़ा किया जाता हैं | कोसी भरने में हाथी की प्रधानता दिया गया है|


