(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
बलिया। स्मार्ट हलचल|भृगुमुनि की तपोभूमि सोमवार की संध्या लोक आस्था और श्रद्धा के सागर में डूबी रही। जिले के रानीगंज, बैरिया, बांसडीह, सहतवार, रेवती, मनियर, सिकंदरपुर, रसड़ा से लेकर बिल्थरारोड तक के घाटों पर महिलाएं सिर पर दउरा लिए, हाथों में पूजन सामग्री थामे, सोलह श्रृंगार में सजी मानो नई नवेली दुल्हन की भांति उमड़ीं। जब पश्चिम दिशा में सूर्यदेव ढलने लगे तो घाटों पर आस्था का अनुपम दृश्य दिखाई दिया—हजारों महिलाओं ने जल में उतरकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया और छठ मइया के गीतों से वातावरण भक्तिमय हो उठा।
शाम के करीब पांच बजे से ही घाटों पर महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। नदी किनारे पूजन सामग्री सजाई गई, बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, और गन्ने का मंडप बनाकर महिलाएं पूजा में लीन हो गईं। जैसे ही सूर्यदेव क्षितिज के करीब पहुंचे, वैसे ही श्रद्धालुओं ने जल में खड़े होकर ‘छठ मइया के जयकारे’ लगाए और अर्घ्य अर्पित किया। पूरा दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो आस्था ने धरती पर साक्षात रूप ले लिया हो।
महिलाओं ने बताया कि वे 36 घंटे का कठिन उपवास रख रही हैं और मंगलवार की प्रातः उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करेंगी। यह व्रत पुत्र की दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से हुई थी, उसके बाद खरना कर उपवास का संकल्प लिया गया। अब लगातार उपवास और भजन-कीर्तन के बीच महिलाएं रात्रि जागरण कर रही हैं। उनके गीतों में लोक संस्कृति की आत्मा झलक रही है—“काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…” जैसे गीत घाटों पर गूंजते रहे।
नघही घाट पर गन्ने का मंडप सबसे आकर्षक दिखा। वहां महिलाओं ने गन्ने की डंडियों से मंडप बनाकर पूजन सामग्री रखी और विधि-विधान से पूजा की। इस पर्व में गन्ने की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि यह नई फसल के स्वागत और समृद्धि का प्रतीक है। मान्यता है कि सूर्यपुत्र कर्ण ने भी इसी प्रकार जल में खड़े होकर सूर्यदेव की आराधना की थी, जिससे यह पर्व युगों-युगों से लोकपरंपरा बन गया।
पूरे जिले के घाटों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम रहे। पुलिस बल और स्वयंसेवक पूरी सतर्कता के साथ तैनात रहे। उभांव थाना क्षेत्र के बेल्थरा बाजार सहित सरयू नदी के छठ घाटों पर हजारों की संख्या में महिलाओं ने सूर्य को अर्घ्य दिया। सुरक्षा व्यवस्था में उपनिरीक्षक रीना यादव, मनीष कुमार पटेल, सर्वेश यादव, दरोगा हरिद्वार और अन्य पुलिसकर्मी मुस्तैद दिखाई दिए।
घाटों पर दीपों की लौ, जल में प्रतिबिंबित होते सूर्य के अंतिम किरण भक्तिमय गीतों की गूंज ने वातावरण को अलौकिक बना दिया। हर ओर आस्था, उल्लास और भक्ति का संगम था। महिलाएं एक स्वर में गा रही थीं।“छठ मइया तोहार महिमा अपार, करे जो भक्ति तहार, ओहिके पार उतारे संसार। भृगुनगरी की धरती पर यह नजारा लोक आस्था की अमर गाथा बन गया—जहां जल, सूर्य और श्रद्धा ने मिलकर भक्ति का महासागर रच दिया।


