( संजय पराते)
स्मार्ट हलचल|न्यूयॉर्क बंदरगाह के सामने खड़ी स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी ट्रंपियन अमेरिका की हार की घोषणा कर रही है। न्यूयॉर्क मेयर के चुनाव में जोहरान ममदानी की जीत मोदीयन इंडिया की हार की भी घोषणा है, क्योंकि ममदानी के चुनाव प्रचार में ट्रंप के लंगोटिया मित्र मोदी की आलोचना भी शामिल थी। अब मोदी और ट्रंप दोनों सन्निपात की अवस्था में है, क्योंकि इससे इन दोनों श्रीमानों की राष्ट्रवाद के नाम पर नफरत फैलाने वाली नस्लवादी राजनीति को करारा झटका लगा है। ममदानी की जीत एक अंतर्राष्ट्रीय परिघटना बनकर सामने आई है।
ट्रंप और मोदी, दोनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दोनों नवउदारवादी कॉरपोरेट नीतियों के समर्थक। एक विशुद्ध साम्राज्यवादी, तो दूसरा जन्मजात उसके तलुए चाटने वाला। एक अपने देश को श्वेत-ईसाई राष्ट्र बनाने में मशगूल, तो दूसरा अपने देश को मनु-आधारित हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने पर आमादा। दोनों घोर कम्युनिस्ट विरोधी और मुस्लिम विरोधी। दोनों अपने देश के लोकतांत्रिक स्वरूप और उदात्त पूंजीवादी मूल्यों को खत्म करके ‘निर्वाचित तानाशाही’ लादने और नागरिकों को ‘आज्ञापालक प्रजा’ में बदलने पर आमादा। लेकिन दोनों को अपने देश की ही जनता से चुनौतियां मिल रही है। ऐसे में ममदानी, जो अपने-आपको वामपंथी कहते है, जो जन्म से मुस्लिम है और जिसे अमेरिकी नागरिकता मिले मुश्किल से 7 साल ही हुए हैं, यदि जनता द्वारा अपार बहुमत से चुने जाते हैं, और चुने जाने के बाद अपने पहले ही भाषण में जवाहरलाल नेहरू को उद्धृत करते है, तो दोनों का सन्निपात की अवस्था में पहुंचना तय था। ममदानी का जीतना इस बात का ऐलान है कि अब अमेरिकी जनता ट्रंप की नीतियों के खिलाफ निर्णायक ढंग से खड़ी हो रही है, ठीक उसी प्रकार, जैसे भारत में लोकसभा चुनाव में भाजपा का पूर्ण बहुमत की स्थिति को खोना और दो बैसाखियों के सहारे सरकार बनाना, इस बात का ऐलान है कि भारतीय नागरिक भाजपा-आरएसएस और मोदी की नीतियों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।
दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई भारतवंशी जीतता है, तो भाजपाई खेमा और संघी गिरोह ‘भारतमाता की जय’ की पुकार लगाते हुए उछलकूद करने लगता है। ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने पर हमने ऐसा ही देखा था। वास्तव में ऐसी जीत का भारत से कोई संबंध नहीं होता था और न भारत को कोई फायदा, लेकिन यह बंदर-कूद इसलिए होती है कि भारतवंशी के नाम पर यहां राष्ट्रवादी उन्माद भड़काया जा सके। लेकिन ममदानी की जीत से भाजपा को फायदा उठाने का कोई मौका नहीं था, क्योंकि ममदानी का इतिहास नस्लवादी राष्ट्रवाद के खिलाफ तनकर खड़े होने और गरीबों और असहाय लोगों के पक्ष में संघर्ष करने का इतिहास रहा है। ये ममदानी ही थे, जिन्होंने अमेरिका के आवास संकट को उसके असली स्वरूप में पहचाना और समझा कि इस संकट की असली जड़ कॉरपोरेट मुनाफे की हवस और अश्वेतों के खिलाफ नस्लवादी मानसिकता है। न्यूयॉर्क का मेयर बनने से पहले वे न्यूयॉर्क राज्य विधानसभा से विधायक थे और एक विधायक के रूप में जनता के लिए उन्होंने ये संघर्ष किया है। ये ममदानी ही थे, जिन्होंने टैक्सी चालकों के साथ उनकी भूख हड़ताल में शामिल होकर उन्हें 45 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की ऋण राहत दिलाई थी। ये ममदानी ही थे, जिनके संघर्ष के कारण न्यूयॉर्क राज्य को मेट्रो सेवा में वृद्धि और किराया-मुक्त बस व्यवस्था के लिए राज्य के बजट में 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि का प्रावधान करना पड़ा था। ये ममदानी ही थे, जिन्होंने आम जनता को संगठित करके न्यूयॉर्क में प्रस्तावित एक प्रदूषणकारी बिजली संयंत्र को रोकने में सफलता हासिल की थी। इन संघर्षों ने कॉरपोरेट मुनाफे को सीधी चोट पहुंचाई है। ऐसे ममदानी से ट्रंप और मोदी, दोनों का हाजमा खराब ही होना था।
निकट अतीत में डेमोक्रेटिक पार्टी का ऐसा कोई नेता नहीं था, जो उनके जैसे संघर्षों की आग में तपा हो। वे डेमोक्रेटिक पार्टी के अंदर वामपंथ की धारा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और उन्होंने दक्षिणपंथ का प्रतिनिधित्व कर रहे न्यूयॉर्क राज्य के पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो को हराकर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवारी प्राप्त की थी। बाद में कुओमो स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में न्यूयॉर्क मेयर पद के चुनाव के लिए खड़े हुए। ये ममदानी ही थे, जिन्होंने ट्रंप की नीतियों के खिलाफ खुलकर फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष का समर्थन किया है, जिसके कारण ट्रंप ने उन पर यहूदीविरोधी होने का आरोप लगाते हुए उन्हें हराने की खुली अपील की और कुओमो को अपना समर्थन दिया। लेकिन कुओमो और रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लीवा, दोनों को हराकर, न्यूयॉर्क की आधी से ज्यादा जनता का समर्थन प्राप्त करके ममदानी निर्वाचित हुए। इसलिए ममदानी की जीत ट्रंप की इजरायलपरस्ती की भी हार है।
ममदानी का चुनाव अभियान और उसकी मांगें उनके संघर्षों से निकली थी। उन्होंने न्यूयॉर्क में रहने वाले लोगों को स्थिर किराए पर आवास उपलब्ध कराने, विश्वस्तरीय सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बनाने, बच्चों की देखभाल की निःशुल्क व्यवस्था करने और महंगाई से राहत देने के लिए सस्ती कीमतों वाली दुकानों का संचालन करने जैसी मांगों पर अभियान चलाया। ये मांगें एक कल्याणकारी राज्य के तो अनुकूल हैं, लेकिन नव-उदारवादी नीतियों के खिलाफ जाती है, क्योंकि ये नीतियां जनकल्याण के बजाए मुनाफे को प्राथमिकता देती है। ट्रंप के सत्ता में आने के बाद जनकल्याण बनाम कॉरपोरेट मुनाफे का संघर्ष बहुत तेज हो गया है। ममदानी की जीत इसी संघर्ष की अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि ममदानी की जीत से खफा ट्रंप अब न्यूयॉर्क की फंडिंग रोक देने की धमकी दे रहे हैं, तो ममदानी ने भी साफ विकल्प रखा है कि जन कल्याण के कार्यों के लिए राशि जुटाने के लिए वे अमीरों पर टैक्स बढ़ाएंगे। साफ है कि जब ट्रंप उदार लोकतांत्रिक अमेरिका को तबाह करने पर तुले हुए हैं, एक वामोन्मुख वैकल्पिक नीतियों के साथ उनका टकराव बढ़ने जा रहा है।
संघी गिरोह की भाषा में कहें, तो 34 साल के ममदानी लव जिहाद की संतान है : एक मुस्लिम पिता और हिंदू मां की संतान और दोनों ही प्रगतिशील और आधुनिक दृष्टिकोण के वाहक। उनके पिता एक प्रख्यात शिक्षाविद् हैं, तो मां प्रख्यात फिल्म निर्देशिका। भारत में मीरा नायर को सभी जानते हैं, जिन्होंने सलाम बॉम्बे, मिसिसिपी मसाला, मॉनसून वेडिंग जैसी अनेक महत्वपूर्ण फिल्में निर्देशित की हैं और अपनी फिल्मों के कारण संघी गिरोह के निशाने पर रही हैं। ममदानी इसी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले शख्स साबित हुए हैं। वे एक मुस्लिम होने के साथ वामपंथी भी हैं और भारतवंशी होने के साथ ही निष्ठावान अमेरिकी नागरिक भी। इस सबसे ऊपर सर्वोच्च मानवीय गुणों से लैस, जो किसी वामपंथी और कम्युनिस्ट की खासियत होती है। उनके अभियान की राजनीति हिंदू धर्म और हिंदुत्व तथा यहूदियों और यहूदीवाद के बीच स्पष्ट अंतर को रेखांकित करती थी। इस प्रक्रिया में, उन्होंने मोदी और नेतन्याहू पर निशाना साधने से भी परहेज नहीं किया। अपने विजय समारोह में ममदानी द्वारा जवाहरलाल नेहरू को इन शब्दों में उद्धृत करना अनायास नहीं था : “इतिहास में कभी-कभी ऐसा क्षण आता है, जब हम पुराने से नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त होता है और जब किसी राष्ट्र की लंबे समय से दबाई गई आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है। हमने पुराने से नए युग में कदम रख लिया है।”
मार्क्स के कम्युनिस्ट घोषणापत्र की पहली पंक्ति है — “यूरोप को एक भूत सता रहा है — कम्युनिज्म का भूत”। इस भूत का डर अब विश्वव्यापी हो गया है। कभी यह चे ग्वारा के रूप में सामने आता है, कभी जोहरान ममदानी के रूप में। जोहरान ममदानी हों या कोई और, यदि वह
“पुराने से नए युग में कदम रखने” की घोषणा करता है, तो ऐसे विश्व-नागरिकों से ट्रंप और मोदी दोनों खतरा ही महसूस कर सकते हैं। लेकिन ममदानी की जीत से पूरी दुनिया के लोगों को हौसला मिल रहा है, जो एक न्यायपूर्ण, समानता और अवसरों से भरी दुनिया के निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
न्यूयॉर्क में खड़ी स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी की प्रतिमा मुस्करा रही है। इस प्रतिमा के आधार स्तंभ पर एम्मा लाज़ारस की एक कविता उकेरी गई है : “द न्यू कोलोसस”। यह कविता इन प्रसिद्ध पंक्तियों के साथ समाप्त होती है : “मुझे अपने थके हुए, अपने गरीब / अपनी तरसती, सिकुड़ी हुई जनता को / अपने भीड़ भरे तट के दयनीय लोगों को / आज़ाद साँस लेने के लिए दे दो। / इन बेघरों, तूफ़ान से घिरे लोगों को मेरे पास भेज दो / मैं सुनहरे दरवाज़े के पीछे अपना दीया उठाती हूँ!”
ममदानी की जीत ने आने वाले दिनों में ट्रम्पवाद के खिलाफ संघर्षों का दीया जला दिया है, सुनहरे दरवाज़े के कपाट खुल गए हैं


