रमजान में रोजा व इबादत आखिरत के अकाउंट में मगफिरत की क्रेडिट है-मौलाना शाह आलम
जहन्नुम की आग से निजात का होता है रमजान का तीसरा अशरा
काछोला /स्मार्ट हलचल/रमजान शरीफ का पूरा महीना ही बरकतों वाला है, मगर रमजान महीने का तीसरा और अंतिम अशरा यानी 20 रमजान से 30 रमजान तक की अवधि की अपनी विशेष अहमियत है क्योंकि इसी अशरे में ” शबे-ए-कदर ” भी है। यानी पांच वह रातें जिसमें एक रात की इबादत का शवाब 70 हजार रातों की इबादत के बराबर है। यह बातें जामा मस्जिद के मौलाना मोहम्मद शाह आलम ने इफ्तारी के वक्त रोजेदारों को रमजान की फजीलत को बयान करते हुए कही।
उन्होंने बताया कि रमजान के 30 दिन के रोजे को 10-10 दिन के तीन भागों में बांटा गया है जिसमें पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से निजात (छुटकारा) का है। रमजान का 25 वां रोजा है और यह तीसरा अशरा चल रहा है। इस तीसरे अशरे में पाँच रातें ” शबे-ए-कदर ” हैं जो कि रमजान की 21वी, 23वी, 25वी, 27 वी एंव 29 वी शब ए कद्र को हैं।
इस एक रात की इबादत का सवाब 70 हजार रातों की इबादत (प्रार्थना) के बराबर होता है। इसलिए हर रोजेदार को चाहिए कि वह इन रातों में खूब इबादत करे और अल्लाह ताला से अपने गुनाहों की माफी मांगे। अल्लाह अपने नेक बन्दों के बड़े से बड़े गुनाहों को भी माफ़ फरमाता है।रब से गिड़गिड़ाकर बंदा जब अपने गुनाहों की माफी मांगता है और बुराईयों से बचने के लिए दुआ करता है यह आखिरत के अकाउंट में मगफिरत की क्रेडिट है इबादत।इस मौके पर सदर हाजी शरीफ मोहम्मद मंसूरी,मोहम्मद यूनुस रंगरेज,रफीक मोहम्मद मंसूरी,हाजी रमजान अली बिसायती,मुबारिक हुसैन मंसूरी,मोहम्मद शाबीर रंगरेज,आरिफ मोहम्मद,मुबारिक रंगरेज,नन्हे खान,शाहरुख, अकरम,साहिल,फिरोज,सहित सैकड़ों रोजेदार मौजूद थे।