दिल्ली की तिहाड जेल में कैदी ना सो सकते हैं-ना बैठ सकते हैं, क्षमता से चार गुना अधिक भरे पड़े हैं कैदी,
– चीफ जस्टिस व मानवाधिकार आयोग सहित दिल्ली के उप राज्यपाल के समक्ष पहुंचाया कैदियों का दर्द-दर्ज कराई शिकायतें :- एडवोकेट राजेन्द्र सिंह तोमर
– पांच हजार दो सौ क्षमता वाली तिहाड जेल में भरे पड़े हैं तेरह हजार नौ सौ पचास कैदी
(शिवराज बारवाल मीना)
जयपुर/दिल्ली।स्मार्ट हलचल/देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सबसे बड़ी और सबसे सुरक्षित कही जाने वाली तिहाड जेल की सच्चाई जानकर आप सभी दंग रह जाएंगे, यूं तो दिल्ली में दो महिला जेलों सहित कुल सोलह जेले हैं, परन्तु कैदियों को अन्य सुविधाओं की बात तो दूर यहां की जेलों में कैदियों को सोने और बैठने तक की सुविधा के लाले पड़े हुऐ हैं।
यह सब बाते मिडिया के समक्ष दिल्ली हाईकोर्ट के एडवोकेट और हिन्दुस्तान शिवसेना के राष्ट्रीय प्रमुख राजेन्द्र सिंह तोमर उर्फ राजा भईया ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा दिल्ली के उप राज्यपाल महोदय के नाम इस बाबत दिए शिकायत पत्रों की प्रतियाँ देते हुए सारी सच्चाई बताई, उन्होंने बताया की तिहाड जेल परिसर में नौ जेलें हैं, जिनमें एक महिला जेल है, रोहिणी दिल्ली में एक जेल और पूर्वी दिल्ली स्थित मंडोली में महिला जेल सहित छ जेले हैं, सभी जेलों का नियंत्रण व संचालन तिहाड जेल के अधिकारियों और कर्मचारियों के द्वारा किया जाता है। हाल ही में दिल्ली के एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र में उपरोक्त बाबत एक समाचार प्रकाशित हुआ था जिसे आधार बनाकर एडवोकेट राजेन्द्र सिंह तोमर (राजा भईया) ने तिहाड जेल में क्षमता से दोगुने, तिगुने और चारगुना भरे कैदियों के दर्द को लिखित शिकायत के माध्यम से माननीय मुख्य न्यायधीश महोदय दिल्ली हाईकोर्ट सहित अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व दिल्ली के मुख्य प्रशासक एवं उप राज्यपाल महोदय तक पहुंचाया है और इस बाबत सभी दिल्ली के जिला जज, न्यायिक मजिस्ट्रेट व दिल्ली पुलिस के आलाधिकारियों को उचित दिशा-निर्देश देने की मांग की है। एडवोकेट होने के नाते राजेन्द्र सिंह तोमर उर्फ राजा भईया ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट पूर्व में कई ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय दे चूका है कि जिन केसों में सात साल या उससे कम की सजा का प्रावधान है, उन केसों में आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल ना भेजा जाए बल्कि उन्हें पुलिस बेल पर या सीआरपीसी की धारा 41 ए का नोटिस देकर थाने से ही जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए और जमानत प्रार्थना पत्रों पर सभी संबन्धित न्यायाधीशों व मजिस्ट्रेटों को भी उदारता दिखानी चाहिए और बनते मामलों में आरोपियों को जमानत का लाभ देना चाहिए। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई आदेशों में तो यहां तक टिपणी कि है कि “बेल एक रूल है और जेल एक अपवाद है” परन्तु इन आदेशों का कड़ाई से पालन नहीं किया जा रहा है और इसी का नतीजा है कि दिल्ली की सभी जेलों में लगातार कैदियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और जेल प्रशासन जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखने के लिए मजबूर है। कैदियों की बढ़ती भीड़ के कारण उन्हें जेल में चिकित्सा सुविधा व अन्य जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। यहां तक कि उन्हें सोने, बैठने, नहाने धोने के साथ-साथ शौचालय तक की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, इन्हीं मुद्दो को लेकर कैदी सैकड़ों बार आपस में भिड़ जाते हैं और एक दूसरे पर जेल में ही जानलेवा हमले तक कर देते हैं। इसी की आड़ में दबंग कैदी भी गरीब कैदियों का जमकर शोषण करते हैं, ऐसे में जेल बंदी मानसिक व शारीरिक पीड़ा भी झेलते रहते हैं और उनके संवैधानिक तथा मौलिक अधिकारों का हनन भी होता है। अब देखना यह होगा कि एडवोकेट राजेन्द्र सिंह तोमर की यह मुहिम कब तक और कहां तक तिहाड़ जेल के इन कैदियों की पीड़ा को कम करवा पाती है और संबन्धित न्यायिक, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी आखिर कब तक इस ओर अपना ध्यान देकर इस विकट समस्या का समाधान कर पाएंगे।