Homeराजस्थानउदयपुर-राजसमन्द9मई महाराणा प्रताप की 484वीं जयंती आज

9मई महाराणा प्रताप की 484वीं जयंती आज

महाराणा प्रताप की 484वीं जयंती आज
(9मई रविवार1540 को जन्म)
मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास के कारण यहा के शासकों को”हिंदुआ सूरज”कहा जाता है प्राचीन काल में मेवाड़ को”मेदपाट”भी कहते थे।
स्मार्ट हलचल/महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई रविवार1540 ईस्वी विक्रम संवत 1597 जेष्ठ शुक्ल तृतीया को हुआ था।यह महाराणा उदय सिंह और जयवंता बाई(जीवंत कंवर) (पाली के अखैराज सोनगरा की पुत्री)के पुत्र थे प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ दुर्ग(राजसमंद)में”पगला पोल”के पास (झालिया का मालिया)झाली रानी का महल में हुआ बचपन में प्रताप को”कीका” के नाम से जाना जाता था आज उसी वीर शिरोमणि प्रताप की 481वीं जयंती है।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक पिता उदय सिंह की मृत्यु के बाद 28 फरवरी गुरुवार 1572 ईस्वी होली के दिन हुआ मेवाड़ परंपरा अनुसार महाराणा प्रताप उस दिन”अहेड़ा का शिकार”करने जंगल गए।
मुगल सम्राट अकबर को मेवाड़ की स्वतंत्रता खटकने लगी तो अकबर ने चार प्रतिनिधि मंडल महाराणा प्रताप के पास समझाने के लिए भेजें सितंबर 1572 में जलाल खाँ कोरची,अप्रैल1573में आमेर के राजा मानसिंह,सितंबर-अक्टूबर 1573 में भगवंतदास,दिसंबर 1573 में राजा टोडरमल।
सुलह न होने पर विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ इस युद्ध में मानसिंह में अपना पड़ाव खमनोर गांव से 2 मील दूर”मोलेला गांव”में डाला जबकि प्रताप ने”लोसिंग गांव”में अपना पड़ाव डाला मुगल सेना में हरावल का नेतृत्व सैयद हाशिम कर रहा था उसके साथ मोहम्मद बादख्शी रफी,राजा जगन्नाथ और आसफ खाँ थे।प्रताप की सेना में हरावल का नेतृत्व हकीम खाँ सूर कर रहा था और महाराणा प्रताप स्वयं भामाशाह व उसके भाई ताराचंद के साथ केंद्र में थे।
18 जून 1576 को प्रातः काल युद्ध आरंभ हुआ जिसको हल्दीघाटी के युद्ध के नाम से जाना जाता है इस युद्ध में प्रताप की तरफ से हाथी”लूना”का मुकाबला मुगलों के हाथी”गजमुक्त”से हुआ गजमुक्त घायल होकर भागने वाला ही था कि लूना का महावत तीर लगने से घायल हो गया और लूना लौट पड़ा तब राणा प्रताप के प्रसिद्ध हाथी”रामप्रसाद”को मैदान में उतारा गया जिसका संचालन राम साह का पुत्र प्रताप सिंह तंवर कर रहा था मुगल सेना का हाथी”गजराज”रामप्रसाद का सामना कर रहा था गजराज हारने लगा तो मुगल सेना ने एक और हाथी”रणमंदर”को मैदान में उतार दिया दोनों हाथियों को रामप्रसाद ने धूल चटा दी परंतु दुर्भाग्य से रामप्रसाद का महावत मारा गया तब हुसैनखाँ ने अपने हाथी से उछलकर रामप्रसाद को अपने बस में कर लिया था।
मानसिंह “मरदाना”नामक हाथी पर सवार था प्रताप को जब मानसिंह नजर आया तो प्रताप के घोड़े चेतक में अपने दोनों पैर हाथी के मस्तक पर टिका दिए और प्रताप ने अपने भाले से मानसिंह पर बार किया पर मानसिंह बच गया हाथी की सूंड में बंधे खंजरो से चेतक घायल हो गया प्रताप को चारों तरफ से सैनिकों से घीरा देखकर बड़ी सादड़ी के झाला बीदा ने राजकीय छत्र उतारकर स्वयं धारण कर लिए इससे मुगल सैनिकों का ध्यान प्रताप से हट गया और हाकिम खाँ सूर प्रताप को युद्ध क्षेत्र से बाहर ले गया 2 मील दूर बलीचा गांव में चेतक घायल होने के कारण शहीद हो गया।रणक्षेत्र मे झाला बीदा ने लडते हुये अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
इस भीषण युद्ध में मानसिंह ना तो प्रताप को पकड़ सका और ना पराजित कर सका आरंभ में महाराणा प्रताप की सेना का आक्रमण इतना भयंकर था की मुगल सेना के पैर उखड़ गए परंतु मुगल सेना का चंदावल (सबसे पीछे की पंक्ति)का नेतृत्व मिहत्तर खा कर रहा था जो यह चिल्लाता हुआ आया”कि बादशाह सलामत एक बड़ी सेना लेकर स्वयं आ रहे हैं”यह सुनकर मुगल सैनिको के पांव वापस युद्ध में जम गए और वे उत्साह से लड़ने लगे
इसके बाद प्रताप ने अपनी राजधानी कमलनाथ पर्वत पर”आवरगढ़”बनाई और अकबर ने महाराणा प्रताप को कुचलने के लिए 3वार शाहवाज खाँ को भेजा पर वह तीनों ही बार असफल रहा।
अंत में महाराणा प्रताप ने अपनी राजधानी चावंड को बनाया जहां पर धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय इस वीर को चोट लगी जिसके कारण 19 जनवरी 1597 को प्रताप का निधन हुआ चावंड के पास 2 मील दूर बडोली गांव के निकट बहने वाले नाले के किनारे प्रताप का दाह संस्कार किया गया जहां पर तलाब के मध्य में आज भी प्रताप की छतरी(स्मारक)बने हुए हैं जिनके दर्शन करने का सौभाग्य लेखक को मिला है।

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