बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष आलेख
महात्मा बुद्ध ने बताया दुःखों से मुक्ति पाने का अष्टांगिक मार्ग
मदन मोहन भास्कर
हिण्डौन सिटी, करौली
स्मार्ट हलचल/वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या पीपल पूर्णिमा कहा जाता है। प्रत्येक वर्ष वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा वह पूर्णिमा का दिन है जो गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय और महासमाधि की प्राप्ति का स्मरण कराता है। इस बार यह पूर्णिमा 23 मई को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन की तीन अहम बातें – बुद्ध का जन्म, बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति और बुद्ध का निर्वाण के कारण भी विशेष तिथि मानी जाती है। इस दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म भी हुआ था और संयोग से इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की भी प्राप्ति हुई थी। जिसे बुद्ध जयंती या वैशाख की पहली पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, यह दिन भगवान गौतम बुद्ध की जयंती के रूप में विशेष महत्व रखता है, जिनका जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व लुंबिनी, वर्तमान नेपाल में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम के रूप में हुआ था। बौद्ध धर्मावलंबी दुनिया भर में बुद्ध पूर्णिमा को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा एशिया के कई देशों थाईलैंड, चीन, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तिब्बत आदि देशों में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन बौद्ध मतावलंबी बौद्ध विहारों और मठों में इकट्ठा होकर एक साथ उपासना करते हैं। दीप प्रज्वलित कर बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करने का संकल्प लेते हैं। गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी जीवन और सफलता पाने के सूत्र छिपे हैं।
अष्टांगिक मार्ग
बुद्ध ग्रंथों के अनुसार महात्मा बुद्ध ने कहा कि तृष्णा ही सभी दुखों का मूल कारण है। तृष्णा के कारण संसार की विभिन्न वस्तुओं की ओर मनुष्य प्रवृत्त होता है और जब वह उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता अथवा जब वे प्राप्त होकर भी नष्ट हो जाती हैं तब उसे दुख होता है। तृष्णा के साथ मृत्यु प्राप्त करने वाला प्राणी उसकी प्रेरणा से फिर भी जन्म ग्रहण करता है और संसार के दुख चक्र में पिसता रहता है। अत: तृष्णा को त्याग देने का मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है।
भगवान बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग वह माध्यम है जो दुख के निदान का मार्ग बताता है। उनका यह अष्टांगिक मार्ग ज्ञान, संकल्प, वचन, कर्म, आजीव, व्यायाम, स्मृति और समाधि के सन्दर्भ में सम्यकता से साक्षात्कार कराता है। गौतम बुद्ध ने मनुष्य के बहुत से दुखों का कारण उसके स्वयं का अज्ञान और मिथ्या दृष्टि बताया है। महात्मा बुद्ध ने पहली बार सारनाथ में प्रवचन दिया था। उनका प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है जो उन्होंने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। भेदभाव रहित होकर हर वर्ग के लोगों ने महात्मा बुद्ध की शरण ली व उनके उपदेशों का अनुसरण किया। कुछ ही दिनों में पूरे भारत में ‘बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघ शरणम् गच्छामि’ का जयघोष गूंजने लगा। उन्होंने कहा कि केवल मांस खाने वाला ही अपवित्र नहीं होता बल्कि क्रोध, व्यभिचार, छल, कपट, ईर्ष्या और दूसरों की निंदा भी इंसान को अपवित्र बनाती है। मन की शुद्धता के लिए पवित्र जीवन बिताना जरूरी है।
भगवान बुद्ध का महानिर्वाण
भगवान बुद्ध का धर्म प्रचार 40 वर्षों तक चलता रहा। अंत में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में पावापुरी नामक स्थान पर 80 वर्ष की अवस्था में ई.पू. 483 में वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही महानिर्वाण प्राप्त हुआ। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर के महापरिनिर्वाण मंदिर में एक महीने तक चलने वाले विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें देश विदेश के लाखों बौद्ध अनुयायी यहां पहुंचते हैं। योग संस्कृति में, बुद्ध पूर्णिमा किसी भी आध्यात्मिक साधक के जीवन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यह पृथ्वी के सूर्य के उत्तरायण होने के बाद की तीसरी पूर्णिमा है। बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के दिन के रूप में देखा जाता है। लगभग आठ वर्षों तक शरीर को नष्ट करने के अत्यधिक प्रयासों के बाद, गौतम बहुत कमजोर हो गए थे। चार साल तक वह समाना रहे। समाना के लिए मुख्य साधना थी चलना और कभी भी भोजन की तलाश न करना – बस चलना और उपवास करना। इससे उसका शरीर लगभग मृत्यु की स्थिति तक नष्ट हो गया। इस समय, वह निरंजना नदी के पास आये, जो आज भारत की कई अन्य नदियों की तरह सूख कर लुप्त हो गयी है। यह नदी वास्तव में एक बड़ी जलधारा थी जिसमें घुटनों तक पानी तेजी से बहता था। उसने नदी पार करने की कोशिश की लेकिन आधे रास्ते में ही उनका शरीर शारीरिक रूप से इतना कमजोर हो गया कि वे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सके लेकिन वे हार मानने वालों में से नहीं थे इसलिए उन्होंने वहां मौजूद एक मृत शाखा को पकड़ लिया और वहीं खड़े रहे।क्षीण सिद्धार्थ गौतम गौतम बुद्ध बन जाते हैं। यह पत्थर की मूर्ति अब लाहौर संग्रहालय में है, जो दूसरी शताब्दी ई.पू. की है। कहा जाता है कि वह कई घंटों तक वैसे ही खड़े रहे।
बुद्ध की कहानी
लगभग 2500 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी में शुरू होती है। ऐसा माना जाता है कि जब सिद्धार्थ या बुद्ध का जन्म हुआ, तो उन्होंने सात कदम उठाए और हर कदम पर कमल का फूल खिल गया। बुद्ध का ज्ञान प्राप्त करना,जिसे निर्वाण कहा जाता है, बौद्धों के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटना है। कुछ बौद्ध लेखों के अनुसार, सिद्धार्थ ने बिहार के बोधगया में एक बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया और वहीं उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ।
कुशीनगर वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने परिनिर्वाण के रूप में अपनी अंतिम सांस ली थी। उनका निधन जीवन और मृत्यु के चक्र से उनकी अंतिम मुक्ति माना जाता है। इस दिन, बौद्ध सूत्र पढ़ते हैं और फूल और धूप चढ़ाते हैं। वे मंदिरों में भी जाते हैं और बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं और उद्धरण एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
बुद्ध पूर्णिमा गौतम बुद्ध का सम्मान करने के लिए एक शुभ बौद्ध कार्यक्रम है।
गौतम ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था और उन्हें शाक्यमुनि (शाक्यों के ऋषि) के रूप में भी जाना जाता है, तथागत को ‘पूर्णतः जागृत व्यक्ति’ माना जाता है।
अपने पूरे जीवन में, बुद्ध ने 45 वर्षों तक धर्म, अहिंसा, सद्भाव, दया और ‘निर्वाण’ के मार्ग का प्रचार किया।
बौद्ध धर्म की स्थापना
भगवान बुद्ध की शिक्षाओं, ‘सुत्तस’ नामक संकलन पर की गई है। उन्होंने बोधगया में बोधि (बरगद) वृक्ष के नीचे 49 दिनों तक ध्यान करने के बाद ज्ञान प्राप्त किया और ‘दुख’ को समाप्त करने का रहस्य जाना।
भले ही उनका जन्म एक शाही परिवार में हुआ था, उन्होंने अपना विलासितापूर्ण जीवन त्याग दिया और 30 वर्ष की उम्र में सत्य की खोज में घर छोड़ दिया, जो किसी को दुख की पीड़ा से मुक्त कराता है।
गौतम बुद्ध के उद्धरण
तीन चीज़ें अधिक समय तक छुपी नहीं रह सकतीं- सूर्य, चंद्रमा और सत्य।
अतीत में मत रहो, भविष्य के सपने मत देखो, मन को वर्तमान क्षण पर केंद्रित करो। स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है,संतोष सबसे बड़ा धन है, वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता है,हमें हमारे अलावा कोई नहीं बचा सकता। कोई नहीं बचा सकता और कोई नहीं बचा सकता। हमें स्वयं ही इस मार्ग पर चलना होगा। शांति भीतर से आती है। इसे बाहर मत खोजो। मन ही सब कुछ है। आप जो सोचते हैं वही बन जाते है। स्वयं को जीतना दूसरों को जीतने से भी बड़ा काम है।
क्रोध को पाले रखना गर्म कोयले को किसी और पर फेंकने के इरादे से पकड़ने के समान है; इसमें आप ही जलते हैं। एक मोमबत्ती से हजारों मोमबत्तियाँ रोशन की जा सकती हैं, और मोमबत्ती का जीवन छोटा नहीं होगा। खुशियाँ बांटने से कभी कम नहीं होतीं। अंत में, केवल तीन चीजें मायने रखती हैं: आप कितना प्यार करते थे, आप कितनी विनम्रता से रहते थे, और कितनी शालीनता से आपने उन चीजों को जाने दिया जो आपके लिए नहीं थीं।