Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगपहाड़, अब सौंदर्य नहीं विनाश के प्रतीक,Symbol of destruction not beauty

पहाड़, अब सौंदर्य नहीं विनाश के प्रतीक,Symbol of destruction not beauty

तनवीर जाफ़री
स्मार्ट हलचल/गर्मियों से परेशान होकर प्रायः लोग पहाड़ों का रुख़ करते हैं। पहाड़ों पर जहां कम तापमान के चलते पर्यटकों को गर्मी से निजात मिलती है तथा शरीर व मस्तिष्क को सुकून मिलता है वहीँ हमेशा से ही पहाड़ों का प्राकृतिक सौन्दर्य,ऊँची ऊँची गगन चुम्बी चोटियां,हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं,ग्लेशियर्स,पहाड़ों के लगभग हर मोड़ पर बहने वाले झरने,हरे भरे जंगल, ऑक्सीजन से परिपूर्ण ताज़ी आब-ो-हवा,गर्मी में भी सर्दी का एहसास दिलाने वाला वातावरण भी पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। परन्तु अब पहाड़ों की हक़ीक़त बदलने लगी है। हिमाचल प्रदेश की शिमला जैसी प्राकृतक सौंदर्यों से भरपूर ठंडी व ख़ूबसूरत राजधानी भी अब जनसँख्या,पर्यटकों व वाहनों के बढ़ते बोझ के कारण गर्मी का एहसास दिलाने लगी है।
पिछले दिनों भीषण गर्मी से निजात पाने के लिये पर्वतीय सीमा क्षेत्र सांगला की लगभग 400 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान पहाड़ों की जो स्थिति देखी वह अत्यंत दुखदायी थी। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं अब हिम रहित हो चुकी हैं। जिन पर्वत श्रृंखलाओं पर करोड़ों वर्षों से बर्फ़ की मोटी चादर ढकी हुई थी वे अब अपना हिमावरण उतार चुकी हैं और पत्थरों के पहाड़ साफ़ नज़र आ रहे हैं। हिम रहित पर्वत श्रृंखलाओं के चलते ग्लेशियर भी लगभग समाप्त हो गए हैं। इसकी वजह से हिमाचल प्रदेश में लगभग पूरे वर्ष कल कल कर बहने वाले शीतल जल के झरने अब सूख चुके हैं। लगभग चार दशकों से पर्वतीय अंचलों की यात्रा के दौरान विभिन्न पर्वतीय राज्यों में मैं ने देखा है कि जिस जगह झरने /चश्मे प्रवाहित होते थे वहां पर्यटकों की अच्छी ख़ासी भीड़ जमा हो जाती थी। कोई नहाता था कोई अपनी गाड़ियां धोता था ,कोई शीतल जल पीकर सुकून हासिल करता था। लोग फ़ोटो खींच कर अपनी पर्वतीय यात्रा के यादगार लम्हों को कैमरों में क़ैद कटे थे। कुछ स्थानीय लोग मक्के की छल्लियाँ या ऋतु के अनुसार कोई स्थानीय फल आदि बेचकर अपना जीविकोपार्जन किया करते थे। परन्तु अब तो यह बातें गोया कहानी क़िस्से बन चुकी हैं।
पहाड़ शुष्क हो रहे हैं। पहाड़ों पर गर्मी बढ़ती जा रही है। शुष्क पर्वतों में भूस्खलन तेज़ी से हो रहा है। उस पर सोने पर सुहागा यह कि विकास के नाम पर सड़कों का चौड़ीकरण करने के लिये पर्वतों को काटा जा रहा है जिससे करोड़ों पेड़ धराशायी हो रहे हैं। पहाड़ों पर तेज़ धार से बहने वाली सतलुज,बसपा व स्पीति जैसी अनेक नदियां अब गोया नदी के बजाये नालों की शक्ल ले चुकी हैं। विद्युत उत्पादन के चलते जगह जगह इन नदियों की धार को रोककर जल विद्युत उत्पादन संयंत्र भी लगाए गए हैं। उधर पर्यटकों की संख्या भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से वाहनों का तांता लगा रहता है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्रदूषण बढ़ने का यह भी एक अहम कारण है। ज़ाहिर है इस विश्वस्तरीय आपदा का ज़िम्मेदार और कोई नहीं बल्कि स्वयं मानव है जिसके चलते स्वर्ग रुपी सुन्दर पृथ्वी दिन प्रतिदिन नर्क बनती जा रही है। लिहाज़ा यह कहना ग़लत नहीं होगा कि चित्त को चैन व आँखों को सुकून देने वाले पहाड़ अब सौंदर्य नहीं बल्कि विनाश के प्रतीक बनते जा रहे हैं।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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