♠भारत का इतिहास♠
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♠उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है, जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में भारतवर्ष अर्थात् भरत का देश’ तथा यहाँ के निवासियों को भारती अर्थात्भरत की संतान कहा गया है। यूनानियों ने भारत को इंडिया तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के नाम से संबोधित किया है।
♠भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है।
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65,000 साल पहले, पहले आधुनिक आदमी, या होमो सेपियन्स, अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंचे थे, जहां वे पहले विकसित हुए थे। ♦About 65,000 years ago, the first modern humans, or Homo sapiens, arrived in the Indian subcontinent from Africa, where they had first evolved.♦
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सबसे पुराना ज्ञात आधुनिक मानव आज से लगभग 30,000 साल पहले दक्षिण एशिया में रहता है।
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6500 ईसा पूर्व के बाद, खाद्य फसलों और जानवरों के वर्चस्व के लिए सबूत, स्थायी संरचनाओं का निर्माण और कृषि अधिशेष का फिटिंग मेहरगढ़ और अब बलूचिस्तान के अन्य स्थलों में दिखाई दिया।
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ये धीरे-धीरे सिंधु घाटी सभ्यता में विकसित हुए, दक्षिण एशिया में पहली शहरी संस्कृति, जो अब पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में 2500–1800ई.पू. ।
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मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (ईसा2000 ईसा-पूर्व से 2500 ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं।
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सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरम्भ काल लगभग 3300 ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं।
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इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है।
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सिन्धु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी।
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पुरात्त्व प्रमाणों के आधार पर 1900 ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अकस्मात पतन हो गया है।
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19वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर 2000 ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई है।
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आर्यों द्वारा उत्तर और मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं।
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प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे अधिक सभ्यता है जिसका सम्बन्ध आर्यों के आगमन से है।
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इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है।
➽आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म “वैदिक धर्म” या “सनातन धर्म” के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा था।
➽वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई।
➽आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल2000 ईसा पूर्व से600 ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल 3000 ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यों के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है।
➽हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है।
➽हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की 2400 बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 245 बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी।
➽पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी।
➽इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से 6000 साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी।
➽ईसा पूर्व 8 वीं और शुरूआती 8वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए।
➽अशोक (ईसापूर्व 245-261) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था।
➽पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका।
➽दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले।
➽संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई।
➽भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व 7 वीं और शुरूआती 6 वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे।
➽अति महत्वपूर्ण गणराज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य और वैशाली के लिच्छवी गणराज्य थे।
➽गणराज्यों के अलावा राजतंत्रीय राज्य भी थे, जिनमें से कौशाम्बी (वत्स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्वपूर्ण थे।
➽इन राज्यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्यक्तियों के पास था, जिन्होंने राज्य विस्तार और पड़ोसी राज्यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी।
➽तथापि गणराज्यात्मक राज्यों के तब भी स्पष्ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्यों का विस्तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया।
➽आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबों का अधिकार हो गया।
➽यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है।
➽बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया।
➽दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे।
➽1557में विजय नगर का पतन हो गया।
➽सन् 1526 में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया।
➽उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले 300 सालों तक चला।
➽ इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था।
➽बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ।
➽उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया।
➽1659 में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया।
➽औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया।
➽उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे।
➽औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया।
➽औरंग़ज़ेब के मरते ही 1707 मुगल साम्राज्य बिखर गया।
➽अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और 1857 के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए।
➽भारत को आज़ादी 1947 में मिली जिसमें महात्मा गांधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था।
➽1947 के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है।
➽आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है।
भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में बाँटा गया है
♦1. प्राचीन भारत |
♦2. मध्यकालीन भारत |
3. आधुनिक भारत |
➽प्रागैतिहासिक काल (3300 ईसा पूर्व तक)
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण 100,000 से 80,000 वर्ष पूर्व का है।। पाषाण युग (भीमबेटका, मध्य प्रदेश) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम 40,000 ई पू से 9000 ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने 9000 वर्ष पूर्व स्वरुप लिया।
भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग द्रविड़ों का था। |
➽पहला नगरीकरण (3300 ईसापूर्व–1500 ईसापूर्व)
➽सिन्धु घाटी सभ्यता
➽आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के ‘पश्चिमी पंजाब प्रांत’ के ‘माण्टगोमरी ज़िले’ में स्थित ‘हरियाणा’ के निवासियों को शायद इस बात का किंचित्मात्र भी आभास नहीं था कि वे अपने आस-पास की ज़मीन में दबी जिन ईटों का प्रयोग इतने धड़ल्ले से अपने मकानों का निर्माण में कर रहे हैं, वह कोई साधारण ईटें नहीं, बल्कि लगभग 5,000 वर्ष पुरानी और पूरी तरह विकसित सभ्यता के अवशेष हैं।
➽इसका आभास उन्हें तब हुआ जब 1856 ई. में ‘जॉन विलियम ब्रन्टम’ ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछवाने हेतु ईटों की आपूर्ति के इन खण्डहरों की खुदाई प्रारम्भ करवायी।
खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता के प्रथम अवशेष प्राप्त हुए, जिसे इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ का नाम दिया गया।
➽हड़प्पा लिपि
➽हड़प्पा लिपि का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला था पर स्पष्टतः यह लिपि 1923 तक प्रकाश में आई।
➽सिंधु लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न एवं 205 से 400 तक अक्षर हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।
➽यह लिपि चित्रात्मक थी।
➽यह लिपि अभी तक गढ़ी नहीं जा सकी है।
➽इस लिपि में प्राप्त सबसे बड़े लेख में क़रीब 17 चिह्न हैं।
➽कालीबंगा के उत्खनन से प्राप्त मिट्टी के ठीकरों पर उत्कीर्ण चिह्न अपने पार्श्ववर्ती दाहिने चिह्न को काटते हैं।
इसी आधार पर ‘ब्रजवासी लाल’ ने यह निष्कर्ष निकाला है – ‘सैंधव लिपि दाहिनी ओर से बायीं ओर को लिखी जाती थी।’
➽मृण्मूर्तियां
➽हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त मृण्मूर्तियों का निर्माण मिट्टी से किया गया है।
➽इन मृण्मूर्तियों पर मानव के अतिरिक्त पशु पक्षियों में बैल, भैंसा, बकरा, बाघ, सुअर, गैंडा, भालू, बन्दर, मोर, तोता, बत्तख़ एवं कबूतर की मृणमूर्तियां मिली है।
➽मानव मृण्मूर्तियां ठोस है पर पशुओं की खोखली।
➽नर एवं नारी मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां ठोस हैं, पर पशुओं की खोखली।
➽नर एवं नारी- मृण्मूर्तियां में सर्वाधिक नारी मृण्मूर्तियां मिली हैं।
➽हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषताएं
➽हड़प्पा संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी- इसकी नगर योजना।
➽इस सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थलों के नगर निर्माण में समरूपता थी।
➽नगरों के भवनो के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे।
➽हडप्पा जनजीवन
➽हडप्प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केन्द्रीय शक्ति से संचालित होती थी।
➽वैसे यह प्रश्न अभी विवाद का विषय बना हुआ है, फिर भी चूंकि हडप्पावासी वाणिज्य की ओर अधिक आकर्षित थे, इसलिए ऐसा माना जाता है कि सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता का शासन वणिक वर्ग के हाथ में था।
➽ह्नीलर ने सिंधु प्रदेश के लोगों के शासन को ‘मध्यम वर्गीय जनतंन्त्रात्मक शासन’ कहा और उसमें धर्म की महत्ता को स्वीकार किया।
➽स्टुअर्ट पिग्गॉट महोदय ने कहा ‘मोहनजोदाड़ों का शासन राजतन्त्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक’ था।
मैके के अनुसार ‘मोहनजोदड़ों का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथों था।
➽वैदिक सभ्यता (1500 ईसापूर्व–600 ईसापूर्व)
➽भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था।
➽श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है।
➽भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभु मनु ने व्यवस्था सम्भाली।
➽इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे।
➽उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे।
➽इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे।
➽तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे।
➽इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया।
➽इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया।
➽वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा।
➽इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला।
➽इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया।
➽यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था।
➽राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ।
➽ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे।
➽ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया।
➽पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था।
➽भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।
➽दूसरा नगरीकरण (600 ईसापूर्व–200 ईसापूर्व)
➽1000 ईसा पूर्व के पश्चात 16 महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं।
➽500 ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए।
➽उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोड़ी
➽180 ईसवी के आरम्भ से, मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीक, इंडो-स्किथिअन, इंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए
➽तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का “स्वर्णिम काल” कहलाया।
➽दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, कदम्ब, पल्लव तथा पांड्य चले
➽विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले.
♦मौर्य काल, मौर्य साम्राज्य ♦
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यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित ‘प्रेसिआई’ देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि सिकन्दर की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई. में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया।
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वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया।
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इस घटना के बाद ही मगध पर चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 322 ई. पू.-298 ई. पू.) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को हरा दिया।
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ईसापूर्व छठी सदी के प्रमुख राज्य थे – मगध, कोसल, वत्स के पौरव और अवंति के प्रद्योत।
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चौथी सदी में चन्द्रगुप्त मौर्य ( चंद्र नंद ) मोत्तर भारत को यूनानी शासकों से मुक्ति दिला दी।
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इसके बाद उसने मगध की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया जो उस समय नंदों के शासन में था।
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जैन ग्रंथ परिशिष्ठ पर्वन में कहा गया है कि सम्राट धनानंद ने चाणक्य को अपने राजमहल से बाहर निकाल दिया इसलिए चंद्रगुप्त मौर्य को बड़का कर धनानंद को मरवा दिया चंद्र नंद से चंद्रगुप्त मौर्य बन गया इसके बाद चन्द्रगुप्त ने दक्षिण की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
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चन्द्रगुप्त ने सिकंदर के क्षत्रप सेल्यूकस को हाराया था जिसके फलस्वरूप उसने हेरात, कंदहार, काबुल तथा बलूचिस्तान के प्रांत चंद्रगुप्त को सौंप दिए थे।
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चन्द्रगुप्त के बाद बिंदुसार के पुत्र अशोक ने मौर्य साम्राज्य को अपने चरम पर पहुँचा दिया।
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कर्नाटक के चित्तलदुर्ग तथा मास्की में अशोक के शिलालेख पाए गए हैं।
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चुंकि उसके पड़ोसी राज्य चोल, पांड्य या केरलपुत्रों के साथ अशोक या बिंदुसार के किसा लड़ाई का वर्णन नहीं मिलता है इसलिए ऐसा माना जाता है कि ये प्रदेश चन्द्रगुप्त के द्वारा ही जीता गया था।
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अशोक के जीवन का निर्णायक युद्ध कलिंग का युद्ध था।
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इसमें उत्कलों से लड़ते हुए अशोक को अपनी सेना द्वारा किए गए नरसंहार के प्रति ग्लानि हुई और उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
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फिर उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भी करवाया।
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चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में यूनानी राजदूत मेगास्थनीज़ , सेल्यूकस के द्वारा उनके दरबार में भेजा गया।
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उसने चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य तथा उसकी राजधानी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) का वर्णन किया है।
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इस दौरान कला का भी विकास हुआ
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मौर्यों के बाद
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शुंग राजवंश
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मौर्यों के पतन के बाद शुंग राजवंश ने सत्ता सम्हाली।
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ऐसा माना जाता है कि मौर्य राजा वृहदृथ के सेनापति पुष्यमित्र ने बृहद्रथ की हत्या कर दी थी जिसके बाद शुंग वंश की स्थापना हुई।
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शुंगों ने 187 ईसापूर्व से 75 ईसापूर्व तक शासन किया।
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इसी काल में महाराष्ट्र में सातवाहनों का और दक्षिण में चेर, चोल और पांड्यों का उदय हुआ।
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सातवाहनों के साम्राज्य को आंध्र भी कहते हैं जो अत्यन्त शक्तिशाली था।
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पुष्यमुत्र के शासनकाल में पश्चिम से यवनों का आक्रमण हुआ।
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इसी काल के माने जाने वाले वैयाकरण पतंजलि ने इस आक्रमण का उल्लेख किया है।
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कालिदास ने भी अपने मालविकाग्निमित्रम् में वसुमित्र के साथ यवनों के युद्ध का चर्चा किया है।
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इन आक्रमणकारियों ने भारत की सत्ता पर कब्जा कर लिया।
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कुछ प्रमुख भारतीय-यूनानी शासक थे – यूथीडेमस, डेमेट्रियस तथा मिनांडर।
➽मिनांडर ने बौद्ध धर्म अपना लिया था तथा उसका प्रदेश अफगानिस्तान से पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था।
➽इसके बाद पह्लवों का शासन आया जिनके बारे में अधिक जानकारी उपल्ब्ध नहीं है।
➽तत्पश्चात शकों का शासन आया।
➽शक लोग मध्य एशिया के निवासी थे जिन्हें यू-ची नामक कबीले ने उनके मूल निवास से खदेड़ दिया गया था।
➽इसके बाद वे भारत आए।
➽इसके बाद यू-ची जनजाति के लोग भी भारत आ गए क्योंकि चीन की महान दीवार के बनने के बाद मध्य एशिया की परिस्थिति उनके अनूकूल नहीं थी।
➽ये कुषाण कहलाए।
➽कनिष्क इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
➽कनिष्क ने 78 ईसवी से 101 ईस्वी तक राज किया।
➽शक साम्राज्य एवं कुषाण साम्राज्य
➽मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और सातवाहन राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया।
➽सातवाहन वंश को आन्ध्र वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई. पू. से 225 ई. तक राज्य किया।
➽भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये।
➽इन आक्रमणकारी राजाओं में मिनाण्डर सबसे विख्यात है।
➽इसके बाद ही शक राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और महाराष्ट्र, सौराष्ट्र तथा मथुरा शक क्षत्रपों के शासन में आ गये।
➽इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईस्वीं पहली शताब्दी में कुजुल कडफ़ाइसिस द्वारा कुषाण वंश की शुरुआत से फिर स्थापित हो गयी।
इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईस्वीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।
➽गुप्त काल
➽सन् 320 ईस्वी में चन्द्रगुप्त प्रथम अपने पिता घटोत्कच के बाद राजा बना जिसने गुप्त वंश की नींव डाली।
➽इसके बाद समुद्रगुप्त (340 इस्वी), चन्द्रगुप्त द्वितीय, कुमारगुप्त प्रथम (413-455 इस्वी) और स्कंदगुप्त शासक बने।
➽इसके करीब 100 वर्षों तक गुप्त वंश का अस्तित्व बना रहा।
➽606 इस्वी में हर्ष के उदय तक किसी एक प्रमुख सत्ता की कमी रही।
➽इस काल में कला और साहित्य का उत्तर तथा दक्षिण दोनों में विकास हुआ।
➽इस काल का सबसे प्रतापी शासक “समुद्रगुप्त” था जिसके शासनकाल में भारत को “सोने की चिड़िया” कहा जाने लगा।
ग्यारहवीं तथा बारहवीं सदी में भारतीय कला, भाषा तथा धर्म का प्रचार दक्षिणपूर्व एशिया में भी हुआ।
➽प्रारंभिक मध्यकालीन भारत (200 ईसापूर्व–1200 ईसवी)
12वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालांकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में, अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये। |
➽तीन साम्राज्यों का युग (8वीं – 12वीं शताब्दी)
➽750 और 1000 ईस्वी के मध्य उत्तर भारत और दक्षिण भारत में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ।
➽इनमे से तीन वंश ऐसे थे, जिन्होंने आपस में संघर्ष किया।
➽यह संघर्ष कन्नौज पर आधिपत्य के लिए हुआ।
➽इनमें से एक था पाल वंश, जिसका नवीं सदी के मध्य तक पूर्वी भारत में एक शक्तिशाली राज्य था।
➽पश्चिमी भारत और उत्तरी गंगा की घाटी में दसवीं सदी तक प्रतिहार राजवंश का प्रभुत्व था।
➽उधर दक्षिण भारत में राष्टकूटों का वर्चस्व था, जो समय-समय पर उत्तर भारत के प्रदेशो पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते थे।
➽वस्तुतः इन तीनों शक्तिशाली साम्राज्यों के मध्य संघर्ष चलता रहा।
➽यधपि इन साम्राज्यों के शासन राष्ट्रकूट वंश ने किया। व
➽ह न केवल उस काल का सबसे का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था, बल्कि उसके आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य सेतु का भी काम किया।
➽सांतवी सदी के पूर्वाद्ध से ही कन्नौज भारत की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा था।
➽उस काल में उत्तरी भारत पर आधिपत्य का कोई भी दावा कन्नौज पर अधिकार के बिना निरर्थक था।
➽कन्नौज तथा उसके मध्यदेश का सामरिक महत्व भी था, क्योकि पालो के लिए मध्य भारत तथा पंजाब और प्रतिहारों एवं राष्ट्रकूटों के लिए गंगा दोआब में पहुँचने के मार्ग पर कन्नौज से ही नियंत्रण होता था।
➽इसके अतिरिक्त गंगा-यमुना दोआब, जो प्रचुर मात्रा में राजस्व का स्रोत था।
➽अतः इस पर बिना नियंत्रण किये कोई भी साम्राज्य शक्तिशाली नहीं हो सकता था.
➽त्रिपक्षीय संघर्ष का परिणाम
त्रिपक्षीय संघर्ष, तीनों शक्तिशाली (प्रतिहार, राष्ट्रकूट, पाल) शक्तियो के लिए विनाशकारी साबित हुआ। तात्कालिन परिणाम यह हुआ कि प्रतिहार कन्नौज पर अपना शासन स्थापित करने में सफल हुए तथा राष्ट्रकूट अपने पारंपरिक शत्रु प्रतिहारों की शक्ति विनष्ट करने में सफल हुए। चूँकि पालों ने इस संघर्ष से अपने को पहले से ही अलग कर लिया था, लेकिन वे अपनी खोई हुई शक्ति को दोबारा प्राप्त करने में सफल नहीं हो सके। इस संघर्ष के फलस्वरूप महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि इससे उत्तरी भारत की शक्तियों की फिर से गुटबंदी आरंभ हो गई। उत्तर भारत की राजनीति में अब राजपूत शासकों का प्रभाव बढ़ने लगा तथा क्षेत्रीय राज्यों की संख्या में निरंतर वृद्धि होने लगी जिससे कोई भी राजवंश उत्तर एवं दक्षिण भारत पर एकछत्र राज्य स्थापित नहीं कर सका तथा ब्रहा शक्तियाँ भारत पर आक्रमण करने लगी। |
➽भारत में इस्लाम का प्रवेश
➽712 ई. में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था।
➽मुहम्मद-इब्न-क़ासिम के नेतृत्व में मुसलमान अरबों ने सिंध पर हमला कर दिया और वहाँ के ब्राह्मण राजा दाहिर को हरा दिया।
➽इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार इस्लाम के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के हिन्दू राजा उसे फिर हटा नहीं सके।
➽परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने उसे आसानी से उखाड़ दिया।
➽इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमले करके पंजाब छीन लिया था और ग़ज़नी के सुल्तान महमूद ने 997 से 1030 ई. के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली, फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्त्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
➽आर्थिक सामाजिक जीवन, शिक्षा तथा धर्म 800 ई. से 1200 ई.
➽इस काल में भारतीय समाज में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
➽इनमें से एक यह था कि विशिष्ट वर्ग के लोगों की शक्ति बहुत बढ़ी जिन्हें ‘सामंत’, ‘रानक’ अथवा ‘रौत्त’ (राजपूत) आदि पुकारा जाता था।
➽इस काल में भारतीय दस्तकारी तथा खनन कार्य उच्च स्तर का बना रहा तथा कृषि भी उन्नतिशील रही।
➽भारत आने वाले कई अरब यात्रियों ने यहाँ की ज़मीन की उर्वरता और भारतीय किसानों की कुशलता की चर्चा की है।
➽पहले से चली आ रही वर्ण व्यवस्था इस युग में भी क़ायम रही।
➽स्मृतियों के लेखकों ने ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर तो कहा ही, शूद्रों की सामाजिक और धार्मिक अयोग्यता को उचित ठहराने में तो वे पिछले लेखकों से कहीं आगे निकल गए।
➽दिल्ली सल्तनत
➽1206 ई में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के पश्चात् उसके संतानहीन होने के कारण उसके साम्राज्य को उसके तीन गुलामो ने आपस में बाँट लिया।
➽इनमे यल्दौज को गजनी का राज्य क्षेत्र , कुंबांचा को सिंध और मुल्तान तथा कुतुबुद्दीन ऐबक को भारतीय राज्य क्षेत्रों पर अधिकार मिला।
➽गोरी के विश्वस्त गुलाम ऐबक ने तराईन के युद्ध के पश्चात भारत में राज्य विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
➽कुतुबुद्दीन ऐबक जिस वंश की नीव रखी, उसे मामलुक या गुलाम वंश कहते है, क्योकि वह मुहम्मद गोरी द्वारा ख़रीदा हुआ गुलाम था।
➽मामलुक वंश या गुलाम वंश
➽मुहम्मद गोरी के मृत्यु के पश्चात तुर्को द्वारा भारत के विजित क्षेत्रों पर तुर्की शासन की स्थापना हुई और इस क्षेत्र का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक बना।
➽1206 ई० से 1290 ई० के मध्य इस वंश में अनेक शासक हुए जिनमे प्रमुख शासक कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, रजिया सुल्तान और बलबन थे जिन्होंने तुर्क सत्ता को सुदुरुनीकर्ता किया ।
मामलुक वंश के शासकों का क्रम निम्न है:– |
1. कुतुब-उद-दीन ऐबक (1206-1210)- ग़ुलाम वंश दिल्ली में कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा 1206 ई. में स्थापित किया गया था। यह वंश 1290 ई. तक शासन करता रहा। इसका नाम ग़ुलाम वंश इस कारण पड़ा कि इसका संस्थापक और उसके इल्तुतमिश और बलबन जैसे महान् उत्तराधिकारी प्रारम्भ में ग़ुलाम अथवा दास थे और बाद में वे दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने में समर्थ हुए। |
2. आरामशाह (1210-1211) |
3. शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (1211-1236)- इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत में ग़ुलाम वंश का एक प्रमुख शासक था। वंश के संस्थापक ऐबक के बाद वो उन शासकों में से था जिससे दिल्ली सल्तनत की नींव मज़बूत हुई। वह ऐबक का दामाद भी था। |
4. रुक्नुद्दीन फिरोजशाह (1236) |
5. रजिया सुल्तान (1236-1240)- रज़िया का पूरा नाम-रज़िया अल्-दीन (1205 – 1240), सुल्तान जलालत उद-दीन रज़िया था। वह इल्तुतमिश की पुत्री तथा भारत की पहली मुस्लिम शासिका थी। |
6. मुईज़ुद्दीन बहरामशाह (1240-1242) |
7. अलाउद्दीन मसूदशाह (1242-1246) |
8. नासिरुद्दीन महमूद शाह (1246-1265) |
9. गयासुद्दीन बलबन (1265-1287)- ग़यासुद्दीन बलबन (1266-1286 ई.) इल्बारि जाति का व्यक्ति था, जिसने एक नये राजवंश ‘बलबनी वंश’ की स्थापना की थी। ग़यासुद्दीन बलबन ग़ुलाम वंश का नवाँ सुल्तान था। |
10. अज़ुद्दीन कैकुबाद (1287-1290 |
11. क़ैयूमर्स (1290) |
➽ख़िलजी वंश
➽ख़िलजी कौन थे? इस विषय में पर्याप्त विवाद है।
➽इतिहासकार ‘निज़ामुद्दीन अहमद’ ने ख़िलजी को चंगेज़ ख़ाँ का दामाद और कुलीन ख़ाँ का वंशज, ‘बरनी’ ने उसे तुर्कों से अलग एवं ‘फ़खरुद्दीन’ ने ख़िलजियों को तुर्कों की 64 जातियों में से एक बताया है।
➽फ़खरुद्दीन के मत का अधिकांश विद्वानों ने समर्थन किया है।
➽चूंकि भारत आने से पूर्व ही यह जाति अफ़ग़ानिस्तान के हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी, जिसे ख़िलजी के नाम से जाना जाता था।
➽सम्भवतः इसीलिए इस जाति को ख़िलजी कहा गया।
➽मामलूक अथवा ग़ुलाम वंश के अन्तिम सुल्तान शमसुद्दीन क्यूमर्स की हत्या के बाद ही जलालुद्दीन फ़िरोज ख़िलजी सिंहासन पर बैठा था, इसलिए इतिहास में ख़िलजी वंश की स्थापना को ख़िलजी क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासन के अंतिम समय में बड़े पुत्र खिज खां को उत्तराधिकारी से वंचित कर दिया और अपने सबसे छोटे अल्पवयस्क पुत्र (पांच या छ: वर्ष) शहाबुद्दीन उमर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। किन्तु अलाउद्दीन के अंतिम दिनों में मलिक काफूर के प्रभाव और शक्ति में वृद्धि हुई। उसने अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात अल्पवयस्क को सिंहासन से अपदस्थ करके स्वयं को उसका संरक्षण घोषित कर लिया तथा उसने शहाबुद्दीन की माँ से विवाह कर लिया जो देवगिरी के शासक रामचंद्र देव कि पुत्री थी। अलाउद्दीन अन्य पुत्रो को बंदी बना लिया गया। मालिक काफूर के व्यव्हार और शक्ति के दुरूपयोग करने से अधिकांश सामंत उसके विरुद्ध हो गये तथा उन्ही सामन्तो में कुछ मुबारक को समर्थन दे रहे थे। अतत: मलिक काफूर को 35 दिन तक सत्ता संचालन के बाद मार डाला गया और 19 अप्रैल, 1316 ई० को कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी को दिल्ली का सुल्तान बनाया गया। |
➽तुग़लक़ वंश
➽तुग़लक़ वंश दिल्ली सल्तनत का एक राजवंश था जिसने सन् 1320 से लेकर सन् 1414 तक दिल्ली की सत्ता पर राज किया।
➽ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की, जिसने 1414 तक राज किया।
➽इस वंश में तीन योग्य शासक हुए।
➽ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-51) और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ (1351-87)।
➽इनमें से पहले दो शासकों का अधिकार क़रीब-क़रीब पूरे देश पर था।
➽फ़िरोज का साम्राज्य उनसे छोटा अवश्य था, पर फिर भी अलाउद्दीन ख़िलजी के साम्राज्य से छोटा नहीं था।
➽फ़िरोज की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत का विघटन हो गया और उत्तर भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया।
➽यद्यपि तुग़लक़ 1414 तक शासन करत रहे, तथापि 1398 में तैमूर द्वारा दिल्ली पर आक्रमण के साथ ही तुग़लक़ साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए।
1-गयासुद्दीन तुग़लक़
2-मुहम्मद बिन तुग़लक़ 3-फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ इन तीनों योग्य शासकों के बाद कोई और शासक सही शासन न कर सके। इसके बाद तुग़लक़ वंश का पतन शुरू हो गया। इनके अलावा कुछ शासक और हुए जिनका नाम इस प्रकार है:- नसरत शाह तुग़लक़ महमूद तुग़लक़ |
➽मुग़ल
➽दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया।
➽वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी।
➽इसके फलस्वरूप 1526 ई. में बाबर ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका।
➽उसने पानीपत की पहली लड़ाई में अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को हरा दिया और मुग़ल वंश की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई. तक भारत पर शासन किया।
➽तीसरा मुग़ल बादशाह अकबर असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था।
➽उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का हृदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।
मुगल सम्राट | योगदान और उपलब्धि |
बाबर (1526- 1530 ईस्वी) | मुगल साम्राज्य की स्थापना की
भारत में पहली बार बारूद (गन पाउडर) का प्रयोग किया था | पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोधी को पराजित किया (1527 ईस्वी) खानवा का युद्ध (1527 ईस्वी) में राणा सांगा ( संग्राम सिंह ) को पराजीत किया चंदेरी की लड़ाई (1528 ईस्वी) में चंदेरी के मेदिनी राय को हराया था | अपनी आत्मकथा तुजुक -ए- बाबरी, तुर्की में लिखा था| |
हुमायूँ (1526- 1556 ईस्वी) | दीनपनाह (दिल्ली) को दूसरी राजधानी के रूप में स्थापित किया|
शेर शाह सूरी के साथ दो लड़ाइयां लड़ी – चौसा (1539 ईस्वी) की लड़ाई ; कन्नौज की लड़ाई (1540 ईस्वी) 1556 ई. में अपने पुस्तकालय भवन की सीढ़ियों से गिरने के कारण मृत्यु हो गई थी | हुमायूँ की जीवनी हुमायूं – नामा उसके सौतेली बहन गुलबदन बेगम ने लिखा था | अकबर (1566- 1565 ईस्वी) |
अकबर (1566- 1565 ईस्वी) | मनसबदारी प्रथा (रैंक के धारक) , सज्जनता और सेना को व्यवस्थित करने के लिए स्थापित किया।
गुजरात पर विजय के उपलक्ष्य में बुलंद दरवाजे का निर्माण करवाया था| राल्फ फिच पहले अंग्रेज थे जो 1585 में अकबर के दरबार में आया था | जजिया कर (1564 ईस्वी ) को समाप्त कर दिया; सुलह -ए- कुल (सभी के लिए शांति) पे जोर दिया था। इबादत खाना ( प्रार्थना के हॉल ) को फतेहपुर सीकरी में निर्मित किया 1579 में ” अचूकता की डिग्री” (Degree of infallibility) जारी किया था । दीन -ए- इल्लाहि ( 1582 ईस्वी) धर्म को निरुपित किया। दरबार के नौ रत्न (नवरत्न) बीरबल तानसेन फैजी महाराजा मान सिंह फकीर अजीओ दिन मिर्जा अजीज कोका टोडर मल अब्दुर रहीम खान -ए- खाना अबुल फजल नोट: मुल्ला -दो – प्याज़ा अकबर के नौ रत्नों में से एक था या नहीं इस बात पर अस्पष्टता नहीं है। कुछ सूत्रों का कहा गया है कि यह काल्पनिक चरित्र था और कुछ इससे अकबर का सलाहकार कहते हैं। |
जहाँगीर(1605-1627 ईस्वी) | सिखो के पांचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव को प्राणदंड दिया।
शाही न्याय के साधक के लिए आगरा फोर्ट पर ज़ंजीर -ए- अदल की स्थापना की। कैप्टन हॉकिन्स और सर थॉमस रो ने दरबार का दौरा किया था । अब्दुल हसन, उस्ताद मंसूर और बिशनदास दरबार के प्रसिद्ध चित्रकारों में से थे । |
शाहजहाँ (1628-1658 ईस्वी) | दो फ्रांसीसी बर्नियर और तवरनिेर और इतालवी मनुक्की ने दरबार का दौरा किया था |
आगरा में मोती मस्जिद और ताजमहल , दिल्ली में लाल किला और जामा मस्जिद निर्मित किया । अहमदनगर और बीजापुर को कब्जे में लिया और गोलकुंडा को अपने आधिपत्य के लिए बाध्य किया। |
औरंगजेब (1658-1707 ईस्वी) | इस्लामी धर्मशास्त्र और न्यायशास्त्र के महान विद्वान। उन्होंने हुक्म के मानक (फतवा-उल आलमगिरी) से आधिकारिक मार्ग संकलन करने के लिए और हनाफी के मार्गदर्शन के लिए फतवत -ए- आलमगिरी ‘ जारी किया गया, जिसको 1672 में पूरा किया गया और उलेमा के एक बोर्ड को नियुक्त किया था ।
महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य: मुताखाब -उल-लुबाब काफी खान द्वारा ; मिर्जा मोहम्मद काजिम द्वारा आलमगीर नामा ; मसिर -ए- आलमगिरी मुहम्मद साकी द्वारा ; फतुहत -ए-आलमगिरी ईस्वर दास द्वारा । 1675 ई में नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर को मार डाला। दरवेश या एक ज़िदा फकीर के नाम से जाना जाता है। सती प्रथा को अस्वीकृति दिया था । औरंगाबाद में बीवी का मक़बरा ; दिल्ली के लाल किले में मोती मस्जिद; जामी या बादशाही मस्जिद लाहौर में निर्मित किया। |
बहादुर शाह I (1707-1712 ईस्वी) | दूसरा नाम शाह आलम I
ख़फ़ी खान ने उन्हें शाही-ए- बेखबर नाम दिया था क्युकी बादशाह अपने पुरस्कार की अनुदान के लिए जाने जाते थे । उसके दो भाइयों की मौत हो गई, और जजऊ की लड़ाई में खां बख्श को हराने के बाद 1707 में सिंहासन पर काबिज़ हुआ । ये आखिरी मुग़ल शासक था जिसने मुग़ल शासन के सभी अधिकारो का आनंद लिया था। डेक्कन को सर्देश मुखी को इकट्ठा करने का और मराठों को चौथ को इकट्ठा करने का अधिकार नहीं दिया। |
जहंदर शाह (1712-1713 ईस्वी) | मारवाड़ के अजीत सिंह को ‘ महाराजा ‘ का ख़िताब और मालवा के जय सिंह को ‘ मिर्जा राजा’ का खिताब दिया था ।
इजारा प्रणाली को प्रोत्साहित किया ( राजस्व खेती / अनुबंध खेती ) और जज़िया को समाप्त कर दिया । प्रथम मुगल शासक जिसको सय्यद बन्धु- अब्दुल्लाह खान और अली हुसैन सैयद ने मार डाला ( हिन्दुस्तानी पार्टी के नेता थे)। |
फरूखसियार (1713-1719 ईस्वी) | शाहिद -ए- मज़लूम ‘ के रूप में और अजीम – ऊस -शाह के बेटे जाना जाता है।
चिन क्वीलच खान (निजाम -उल -मुल्क) को डेक्कन के गवर्नर बनया गया जिसने बाद में हैदराबाद के स्वतंत्र राज्य की नींव रखी| पेशवा बालाजी विश्वनाथ चौथ और सरदेश मुखी कर की स्वीकृत के लिए दरबार का दौरा किया। |
मुहम्मद शाह (1719- 1748 ईस्वी) | उसके नाम रोशन अख्तर था। इसके अलावा रंगीला बुलाया जाता था ।
मुगल इतिहास में पहली बार बाजीराव (मराठा) ने दिल्ली में छापा मारा था। फारस के नादिर शाह ने सआदत खान की मदद से मुगल सेना को पराजित किया (करनाल लड़ाई) । |
अहमद शाह (1748- 1754 ईस्वी) | अहमद शाह अब्दाली , नादिर शाह के पूर्व जनरल ने शासनकाल के दौरान भारत पर पांच बार आक्रमण किया। |
आलमगीर (1754- 1759 ईस्वी) | ‘अज़ीज़उद्दीन ‘ कहा जाता है ।
शासनकाल के दौरान, प्लासी की लड़ाई हुई थी। |
शाह आलम II (1759- 1806 ईस्वी) | ‘ अली गौहर ‘ नाम से लोकप्रिय था जो 1764 ईसवी में बक्सर की लड़ाई में हार गया था ।
पानीपत की तीसरी लड़ाई , इसी के शासनकाल में हुई थी । 1772 तक वह बिहार, बंगाल और उड़ीसा के अपने सभी दीवानी अधिकार नहीं था, लेकिन महजि सिंधिया की मदद के साथ 1772 के बाद , वह अपने सभी दीवानी अधिकार वापस ले लिया था । प्रथम मुगल शासक जो ईस्ट इंडिया कंपनी पेंशनभोगी था। |
अकबर II (1806- 1837 ईस्वी) | प्रथम मुगल शासक जिसको ब्रिटिश संरक्षण मिला था |
कार्यकाल के दौरान मुगल साम्राज्य केवल लाल किले तक सिमट के रह गयी थी । |
बहादुर शाह II (1837- 1857 ईस्वी) | · अकबर द्वितीय और राजपूत राजकुमारी लाल बाई का बेटा था
· अंतिम शासक मुगल साम्राज्य था। · शासनकाल के दौरान 1857 विद्रोह हुआ था और इनको विद्रोह का नेता बनाया गया था जिसके कारण रंगून ले जा कर बंधी बनाया गया था और वही इनकी मृत्यु हो गयी| वे बहुत अच्छे उर्दू कवि थे और जफर नाम से कविता लिखा करते थे । |
➽आधुनिक काल
➽प्रारंभिक आधुनिक भारत (1526 – 1858 ईसवी)
➽ईस्ट इंडिया कम्पनी
➽अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया।
➽उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने माहे, पांडिचेरी तथा चंद्रानगर पर क़ब्ज़ा कर लिया।
➽उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों को भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी।
➽वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे।
➽इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं।
➽ 1744-49 ई. में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में कर्नाटक की दूसरी लड़ाई छेड़ी।
➽गवर्नर-जनरलों का समय
➽भारत के महाराज्यपाल या गवर्नर-जनरल (१८५८-१९४७ तक वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल अर्थात राजप्रतिनिधि एवं महाराज्यपाल) भारत में ब्रिटिश राज का अध्यक्ष और भारतीय स्वतंत्रता उपरांत भारत में, ब्रिटिश सम्प्रभु का प्रतिनिधि होता था।
➽इनका कार्यालय सन 1773 में बनाया गया था, जिसे फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी का गवर्नर-जनरल के अधीन रखा गया था।
➽इस कार्यालय का फोर्ट विलियम पर सीधा नियंत्रण था, एवं अन्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का पर्यवेक्षण करता था।
➽सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण अधिकार 1833 में दिये गये और तब से यह भारत के गवर्नर-जनरल बन गये।
➽1858 में भारत ब्रिटिश शासन की अधीन आ गया था।
➽गवर्नर-जनरल की उपाधि उसके भारतीय ब्रिटिश प्रांत (पंजाब, बंगाल, बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, इत्यादि) और ब्रिटिष भारत, शब्द स्वतंत्रता पूर्व काल के अविभाजित भारत के इन्हीं ब्रिटिश नियंत्रण के प्रांतों के लिये प्रयोग होता है।
➽कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा।
➽ इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही।
➽मैसूर के साथ चार लड़ाइयाँ, मराठों के साथ तीन, बर्मा (म्यांमार) तथा सिखों के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी।
➽इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली।
➽प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
➽इस काल में सती प्रथा का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये।
➽राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया।
➽ उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लॉर्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सका।
➽अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेज़ी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेज़ों के हाथों में रहा।
➽आधुनिक और स्वतन्त्र भारत
➽बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संघर्ष चला।
➽इस संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1947 ई को सफल हुआ जब भारत ने अंग्रेजी शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की, मगर देश को विभाजन कर दिया गया।
➽तदुपरान्त 26 जनवरी, 1950 ई को भारत एक गणराज्य बना।
➽असहयोग और सत्याग्रह
➽भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कुछ सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे मोहनदास करमचंद गाँधी के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ।
➽इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे।
➽अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया
➽गाँधी जी के नेतृत्व मे चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इसमे असहयोग और व्यास काल की निती प्रमुखत: से अपनाई गई।
इस आंदोलन का व्यापक जन आधार था।
➽शहरी क्षेत्र मे मध्यम वर्ग तथा ग्रामिण क्षेत्र मे किसानो और आदीवासियो का इसे व्यापक समर्थन मिला।
➽इसमे श्रमिक वर्ग की भी भागिदारी थी।
➽इस प्रकार यह प्रथम जन आंदोलन बन गया।
➽1914-1918 के महान युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया था और बिना जाँच के कारावास की अनुमति दे दी थी।
➽अब सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली एक समिति की संस्तुतियों के आधार पर इन कठोर उपायों को जारी रखा गया।
➽इसके जवाब में गाँधी जी ने देशभर में ‘रॉलेट एक्ट’ के खिलाफ़ एक अभियान चलाया।
➽उत्तरी और पश्चिमी भारत के कस्बों में चारों तरफ़ बंद के समर्थन में दुकानों और स्कूलों के बंद होने के कारण जीवन लगभग ठहर सा गया था।
➽पंजाब में, विशेष रूप से कड़ा विरोध हुआ, जहाँ के बहुत से लोगों ने युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में सेवा की थी और अब अपनी सेवा के बदले वे ईनाम की अपेक्षा कर रहे थे।
➽लेकिन इसकी जगह उन्हें रॉलेट एक्ट दिया गया। पंजाब जाते समय गाँधी जी को कैद कर लिया गया। स्थानीय कांग्रेसजनों को गिरफ़तार कर लिया गया था।
➽प्रांत की यह स्थिति धीरे-धीरे और तनावपूर्ण हो गई तथा अप्रैल 1919 में अमृतसर में यह खूनखराबे के चरमोत्कर्ष पर ही पहुँच गई।
➽जब एक अंग्रेज ब्रिगेडियर ने एक राष्ट्रवादी सभा पर गोली चलाने का हुक्म दिया तब जालियाँवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाने गए इस हत्याकांड में लगभग 1,000 लोग मारे गए और 1600-1700 घायल हुए।
➽जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को ‘रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी’ की लंदन के ‘कॉक्सटन हॉल’ में बैठक में ऊधमसिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियाँ चला दीं।
➽जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई।
➽चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह जैसे महान् क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए।
➽कांग्रेस ने 1920 ई. में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी।
➽चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह असहयोग आंदोलन को दबा देने में सफल हो गयी।
➽इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई. में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया।
➽भारत का विभाजन
➽भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया।
➽इस अधिनियम में काहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जाएंगें और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी।
➽स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य और 15 अगस्त को भारतीय संघ की संस्थापना की गई।
➽इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया।
➽इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन और बर्मा को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है।
➽इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है।
➽15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने।
➽लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराॅय लुइस माउंटबैटन, करांची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके।
➽इसलिए पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया जाता है।