राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘ के बंगाल में प्रवेश के पहले ही ममता का खेला !
अशोक भाटिया
स्मार्ट हलचल/मणिपुर से संघर्षभरी शुरुआत और असम में हिमंत बिस्वा सरमा से टकराव के बाद राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर रही है। ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी ने बंगाल में नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया हो, लेकिन जो संकेत दिया है वो उससे कम भी नहीं है।ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में लोक सभा चुनाव अकेले लड़ने के ऐलान के साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने ये भी साफ कर दिया है कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने का उसका कोई इरादा नहीं है। टीएमसी का ये रिएक्शन भी बिलकुल वैसा ही है जैसा सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर कांग्रेस की राष्ट्रीय गठबंधन समिति के नेताओं से मिलने को लेकर था।
बता दे कि असम के बाद भारत जोड़ो न्याय यात्रा 25 जनवरी को कूच बिहार से पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर रही है। असम के मुकाबले पश्चिम बंगाल में न्याय यात्रा को छोटा रखा गया है। असम में न्याय यात्रा के तहत 833 किलोमीटर की दूरी रखी गयी थी, जबकि पश्चिम बंगाल के लिए ये दूरी 523 किलोमीटर ही है। असम के 17 जिलों से गुजरने वाली राहुल गांधी की यात्रा पश्चिम बंगाल में सिर्फ 7 जिलों को कवर करेगी, जिसमें कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले मालदा और मुर्शिदाबाद भी शामिल हैं। बंगाल के बाद न्याय यात्रा बिहार पहुंचेगी, जहां पहले से ही नीतीश कुमार के ताजा हाव-भाव से उथल-पुथल मची हुई है। यही नहीं उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी भी अपने उम्मीदवार बिना सीट बंटवारे के घोषित करती जा रही है । कल ही समाजवादी पार्टी ने लखनऊ से रविदास मेहरोत्रा को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है । पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बुधवार को साफ कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) राज्य की सभी 13 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करेगी। उन्होंने कहा कि पंजाब में हम कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे, हमारा कांग्रेस के साथ कुछ भी नहीं है। ऐसे में अब इंडिया गठबंधन को लेकर सवाल फिर से शुरू हो गए हैं। क्या इंडिया गठबंधन चुनाव तक स्थिर रह पाएगा, इंडिया गठबंधन का आगे क्या होगा, यह तमाम सवाल उठ रहे हैं।
ममता बनर्जी ने घोषणा की कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) राज्य में आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। ममता ने इसके लिए कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे पर बात नहीं बन पाने का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि मैंने उन्हें जो भी प्रस्ताव दिया, कांग्रेस ने सभी को अस्वीकार कर दिया। बनर्जी ने कहा कि तब से, हमने बंगाल में अकेले जाने का फैसला किया है।
डैमेज कंट्रोल करते हुए कांग्रेस ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के बिना विपक्षी गठबंधन की “कल्पना नहीं की जा सकती”। जयराम रमेश ने कहा कि इंडिया ब्लॉक पश्चिम बंगाल में गठबंधन की तरह लड़ेगा और उम्मीद है कि भविष्य में टीएमसी के साथ सीट-बंटवारे की बातचीत सफल होगी। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने साफ कहा कि ममता और टीएमसी भारत गठबंधन के बहुत मजबूत स्तंभ हैं। हम ममता जी के बिना इंडिया गठबंधन की कल्पना नहीं कर सकते। भाजपा के अमित मालविया ने कहा कि पश्चिम बंगाल में अकेले लड़ने का ममता बनर्जी का फैसला हताशा का संकेत है। अपनी राजनीतिक जमीन बरकरार रखने में असमर्थ, वह सभी सीटों पर लड़ना चाहती है, इस उम्मीद में कि चुनाव के बाद भी वह प्रासंगिक बनी रह सकती है। उन्होंने कहा कि वह लंबे समय से बाहर निकलने के लिए जमीन तैयार कर रही थीं। लेकिन तथ्य यह है कि राहुल गांधी के बंगाल में सर्कस आने से ठीक पहले उनकी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा आई.एन.डी.आई. गठबंधन के लिए एक मौत की घंटी है।
बताया जा रहा है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को दो से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थीं। 2019 के चुनाव में बंगाल में कांग्रेस ने सिर्फ दो सीटों पर ही जीत हासिल की थी। हालांकि, कांग्रेस पश्चिम बंगाल में ज्यादा सीटों की उम्मीद कर रही है। इतना ही नहीं, ममता बनर्जी के खिलाफ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी के बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी लगातार बयान देते रहे हैं। वे ममता बनर्जी की सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं। यह ममता बनर्जी को बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा था। सूत्र दावा कर रहे हैं की ममता बनर्जी ने कांग्रेस आलाकमान को इसकी शिकायत भी की थी। लेकिन उनकी ओर से कुछ नहीं किया गया। इतना ही नहीं, ममता बनर्जी इस बात से भी नाराज थीं कि इंडिया गठबंधन में कम्युनिस्ट पार्टी का बोलबाला है। ममता बनर्जी ने कम्युनिस्ट पार्टी को ही हराकर बंगाल में सत्ता हासिल किया है।
राजनीतिक पंडितों की ओर से दावा किया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन को कांग्रेस के घमंडियां रुख ने ले डूबा। कांग्रेस बड़ा दिल दिखाने की बात करती है लेकिन अभी भी बिग ब्रदर जैसा बर्ताव कर रही है। ममता और आप ऐसे दो दल हैं जो इंडिया गठबंधन में बड़ी भूमिका रखते हैं। ऐसे में इन दोनों के इस दावे के बाद इंडिया गठबंधन की नींव कमजोर हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक यह भी दावा कर रहे हैं कि इंडिया गठबंधन एक राजनीतिक जुगाड़ था, जनता की मांग नहीं। इन तमाम चीजों से यह साफ हो चुका है। कांग्रेस खुद को अभी भी बड़ी पार्टी मानती है। ऐसे में क्षेत्रीय दल कांग्रेस को बहुत ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है। हालांकि, कांग्रेस की ओर से इस गठबंधन को बरकरार रखने की कोशिश की जाएगी ताकि चुनाव में मनोवैज्ञानिक लाभ मिल सके। लेकिन, इसके सभी दल चुनाव तक बरकरार रहेंगे या नहीं, इस पर सवाल है। ममता बनर्जी ने बड़ा कदम उठाते हुए अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार जैसे नेताओं को यह संकेत दे दिया कि अगर बात नहीं बन पाती है तो गठबंधन से दूरी बनाई जा सकती है।
वैसे कांग्रेस महासचिव को अब भी पूरी उम्मीद है कि जो बातचीत चल रही है उसमें बीच का रास्ता निकाला जाएगा और पश्चिम बंगाल में सभी सहयोगी दल मिल कर चुनाव लड़ेंगे – हालांकि, कांग्रेस नेता की बातें लकीर पीटने जैसी ही लगती हैं। अब तो बस एक ही रास्ता है, कांग्रेस दो सीटों पर चुनाव लड़ने की हामी भर दे, और ममता बनर्जी इतनी दया कर देंगी।
देखा जाए तो पिछली भारत जोड़ो यात्रा तमिलनाडु से शुरू हुई थी, जहां डीएमके के साथ कांग्रेस का गठबंधन है। जो थोड़ा बहुत टकराव देखने को मिला था वो केरल, तेलंगाना और कर्नाटक में ही, जब कर्नाटक मेंभाजपा की सरकार हुआ करती थी। वैसे तो हरियाणा कीभाजपा सरकार से भी राहुल गांधी को गुजरना पड़ा था, लेकिन कोई खास दिक्कत नहीं हुईं।भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तो शुरुआत ही मणिपुर में टकराव के साथ हुई है, जहांभाजपा की सरकार है। आगे बढ़ते ही असम आ गया, लेकिन जिस पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी को सपोर्ट मिल सकता था, वो भी नहीं मिलने जा रहा है।
बेशक ममता बनर्जी का साथ न मिले, लेकिन पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी के लिए पूरा मौका है। आखिर आपदा में भी तो अवसर होता ही है। अगर वो चाहें तो ममता बनर्जी के खिलाफ अधीर रंजन चौधरी को सपोर्ट करके कांग्रेस के लिए कुछ और संभावनाएं जगा सकते हैं – लेकिन इसके लिए पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के प्रति कांग्रेस को स्टैंड बदलना होगा। जैसे 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में राहुल गांधी एक ही रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ही तराजू में तौल रहे थे, एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ वैसा ही गरम मिजाज अख्तियार करना होगा।
कम से कम पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश से तो बेहतर ही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अमेठी हार चुकी है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इस बार भी अधीर रंजन चौधरी को यकीन है कि दोनों सीटें अकेले दम पर जीत लेंगे। अगर ऐसी ही कुछ और सीटों पर कांग्रेस कोशिश करे तो भाजपा को वोट नहीं देने वाले ममता बनर्जी की जगह कांग्रेस को वोट दे सकते हैं। विधानसभा चुनाव की बात और थी, जिसे ममता बनर्जी ने ‘एक पैर से जीत’ लिया था, लेकिन दो पैरों से दिल्ली जीत पाना अब भी उनके लिए मुश्किल साबित हो सकता है।