मनोज खंडेलवाल
मंडावर।स्मार्ट हलचल|खंडेलवाल समाज की प्रतिष्ठित महिला, उदार हृदय और धार्मिक मूल्यों की सजीव प्रतिमूर्ति सुनीता देवी पत्नी स्वर्गीय कृष्णा झालानी, निवासी गढ़ रोड मंडावर का सोमवार को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लंबी लड़ाई के बाद आकस्मिक निधन हो गया। वे मंडावर के प्रमुख उद्योगपति एवं वर्तमान खंडेलवाल समाज अध्यक्ष रमेश झालानी की भाभी तथा व्यापारी विपुल उर्फ नानू झालानी की माता थीं। सुनीता देवी की अंतिम यात्रा मंगलवार को मंडावर के पाखर रोड स्थित मोक्ष धाम में संपन्न हुई, जहां जनसमुदाय की गहन उपस्थिति ने उनके सामाजिक प्रभाव की गंभीरता को स्पष्ट कर दिया।
सुनीता देवी के स्वर्गीय पति कृष्णा झालानी जो कि मंडावर क्षेत्र के वरिष्ठ व्यापारी और खंडेलवाल समाज मंडावर के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं, जिनकी विनम्रता, न्यायप्रियता और दयालु कार्यशैली आज भी समाज में प्रेरणा का विषय है। उन्हीं की धर्मपत्नी सुनीता देवी ने उनके निधन के पश्चात भी न केवल परिवार को दृढ़ता से संभाले रखा बल्कि समाज में अपनी संवेदनशीलता, सेवा भावना और सामाजिक धर्मनिष्ठा से एक आदर्श स्त्री का स्थान प्राप्त किया। सुनीता देवी ने अपने जीवन में सदा जरूरतमंदों के सहयोग को प्राथमिकता दी, चाहे वह समाज के भीतर हो या बाहर का कोई असहाय, हर पीड़ित की मदद हेतु वह सदैव तत्पर रहीं।
उनकी दो विवाहित पुत्रियाँ सोनाली व मीनाक्षी (सोनू व मोनू) जो कि अपने अपने ससुराल में अपने परिवार के साथ बेहद खुश है। वहीं सुनीता देवी का एकमात्र पुत्र विपुल उर्फ (नानू) झालानी, जो वर्तमान में अपने चाचा प्रमुख उद्योगपति रमेश झालानी के मार्गदर्शन में पारिवारिक व्यवसाय को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं, आज उनके तप, संस्कार और त्याग के जीवंत प्रमाण हैं। सुनीता देवी पिछले तीन वर्षों से कैंसर से जूझ रही थीं और जयपुर सहित देश के विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में उनका इलाज चलता रहा, किंतु अंततः उन्होंने सोमवार को अंतिम सांस ली।
उनके निधन की सूचना मिलते ही मंडावर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण क्षेत्र, व्यापारी वर्ग, खंडेलवाल समाज एवं उनके निजी स्नेह संबंधों में शोक की लहर दौड़ गई। अंतिम दर्शन हेतु समाज के गणमान्य नागरिक, व्यापारीगण, जनप्रतिनिधि एवं क्षेत्रीय जनता बड़ी संख्या में मोक्षधाम पहुँची और नम आँखों से उन्हें अंतिम विदाई दी।
सुनीता देवी का यह असामयिक निधन न केवल एक परिवार के लिये अपूरणीय क्षति है, बल्कि मंडावर समाज के उस अध्याय का अवसान है जिसमें सेवा, श्रद्धा, करुणा और आस्था के भाव एक ही जीवन में जीवंत रहते हैं। वे अपने पीछे एक समृद्ध, सुसंस्कृत और संगठित परिवार छोड़ गई हैं, जिसकी जड़ें अब भी उनके द्वारा रोपे गए मूल्यों से पोषित हैं।