सुनील बाजपेई
कानपुर। स्मार्ट हलचल|यहां के तीन हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलवाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी के महत्वपूर्ण पदाधिकारी चर्चा का विषय लगातार बने हुए हैं।पार्टी सूत्रों की माने तो बीते चुनाव में कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र की 10 में 6 लोक सभा सीटों को हरवाने को लेकर भी चर्चा में रह चुके इस भाजपा नेता पदाधिकारी ने बीती 30 मई को कानपुर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने के नाम पर कई लोगों से अच्छी खासी कमाई भी की है। इसमें सबसे ज्यादा पैसा हिस्ट्रीशीटर अपराधी रह चुके लोगों से लेने की भी चर्चा पार्टी कार्यकर्ताओं की बीच हो रही है।
जानकार सूत्रों और कानपुर बुंदेलखंड के भी अनेक कार्यकर्ताओं के मुताबिक सबसे खास बात यह भी कि इस पदाधिकारी नेता को भली भांति मालूम था कि वह लिस्ट में नाम भेज कर जिन तीन लोगों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करा रहा है, वे हिस्ट्रीशीटर अपराधी रहे हैं, लेकिन फिर भी उसने आर्थिक लाभ के लालच में ऐसा किया।
पार्टी के भरोसेमंद सूत्र सवाल उठाते हैं कि पदाधिकारी नेता द्वारा अगर पैसे लेकर प्रधान मंत्री से मिलवाने की बात सही नहीं है तो फिर उसने प्रधानमंत्री से मिलने वालों की लिस्ट में हिस्ट्रीशीटर अपराधी रहे लोगों का नाम क्यों शामिल किया ? क्या उसे भाजपा में किसी न किसी पद के भी धारक अपराधिक इतिहास वाले संदीप ठाकुर, वीरेंद्र दुबे और अरविंद राज त्रिपाठी छोटू के हिस्ट्रीशीटर अपराधी रह चुकने की जानकारी नहीं थी ? और क्या उसे या फिर ऐसा करने वाले किसी भी पदाधिकारी नेता को यह नहीं पता था कि अगर हिस्ट्रीशीटर अपराधियों की मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करवाई जाएगी तो ऐसा करना न केवल प्रधानमंत्री की सुरक्षा के खिलाफ होगा बल्कि पार्टी की छवि खराब होने के साथ ही विरोधियों को भाजपा के खिलाफ मौका भी मिलेगा।
पार्टी के प्रति समर्पण और निष्ठा की उपेक्षा से नाराज समर्पित कार्यकर्ता इस चर्चित प्रकरण में जिस तरह के सवाल उठाते हैं ,उसके मुताबिक जिस नेता पदाधिकारी ने हिस्ट्रीशीटर अपराधियों को प्रधानमंत्री से मुलाकात करने का मौका अपने आर्थिक स्वार्थ पूर्ति के इरादे से दिया। जिसने प्रधानमंत्री की सुरक्षा और पार्टी की छवि के भी खिलाफ इस तरह का गंभीर आचरण और अपराध किया। उसके खिलाफ भी पार्टी हाई कमान को कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए ? अब जहां तक इसमें पुलिस और प्रशासन की भूमिका का सवाल है। वह इसके लिए दोषी है या नहीं ? इसका सटीक जवाब तो कुछ सवाल ही दे देते हैं। मसलन प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वालों की लिस्ट में हिस्ट्रीशीटर रह चुके उपरोक्त तीनों का नाम किसने शामिल किया ? तीनों पुराने हिस्ट्रीशीटर हैं। आम जनता में आज भी उनका दबदबा है। लोग आज भी उनसे डरते हैं। यह जानकारी होने के बाद भी उन्हें भाजपा का पदाधिकारी भी किसने बनाया ? हां ! अगर लिस्ट बनाने वाले पदाधिकारी नेता पुलिस प्रशासन को इस आशय की सूचना लिखित में दे देते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने वालों की लिस्ट में हिस्ट्रीशीटर रहे संदीप ठाकुर, वीरेंद्र दुबे और अरविंद राज त्रिपाठी छोटू के भी नाम शामिल हैं। या फिर उनका पूरा आपराधिक इतिहास ना सही, केवल उनके नाम के साथ मात्र हिस्ट्रीशीटर ही लिखकर भेज देते। अथवा पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को केवल फोन मात्र से ही प्रधानमंत्री से मिलने वालों की लिस्ट में हिस्ट्रीशीटरों का भी नाम शामिल होने की जानकारी से अवगत करा देते ,तो फिर इसके लिए पार्टी का कोई भी पदाधिकारी नेता को दोषी कदापि नहीं माना जाता ,क्योंकि यदि प्रधानमंत्री से मिलने वालों की लिस्ट में उक्त तीनों के नाम के साथ उनके हिस्ट्रीशीटर होने से भी संबंधित जानकारी दी गई होती तो फिर पुलिस कमिश्नर के रूप में अखिल कुमार की अगुवाई वाली कमिश्नरेट पुलिस की वजह से हिस्ट्रीशीटर अपराधी रहे लोग प्रधानमंत्री से मुलाकात करने के रूप में पार्टी की छवि खराब करने और प्रधानमंत्री की सुरक्षा के खिलाफ आचरण में भी किसी भी कीमत पर कदापि सफल नहीं हो पाते।
फिलहाल हिस्ट्रीशीटरों की प्रधानमंत्री से मुलाकात करने को लेकर यह नेता पदाधिकारी चर्चा का विषय लगातार बना हुआ है, क्योंकि एन केन प्रकारेण अपनी हिस्ट्रीसीट खत्म करवा लेना एक अलग बात है , लेकिन जहां विषय जन भावनाओं से जुड़ा होता है, वहां हिस्ट्रीशीट खत्म करा लेने में सफलता भी कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि ऐसे लोगों का भय ,उनका घोषित या घोषित आतंक और उनका दबदबा आम जनमानस के बीच सदैव कायम रहता है। वह हिस्ट्री शीट को खत्म करा लेने अथवा पक्ष में मुकदमे का निस्तारण हो जाने से खत्म नहीं हो जाता। इसीलिए हिस्ट्रीशीटर अपराधी रहे लोगों की मुलाकात प्रधानमंत्री से करवाना आम जनमानस और कानून की भी नजर में किसी भी हालत में उचित नहीं माना जा सकता।
जहां तक इस मामले में चर्चा का विषय बने पदाधिकारी नेता की भूमिका का सवाल है। नाम नहीं छापने की शर्त पर जमीन से जुड़े अनेक कार्यकर्ता और भरोसेमंद सूत्र भी जिस आशय का दावा करते हैं। उसके मुताबिक महत्वपूर्ण पद की कुर्सी संभालने के बाद नेताजी ने उसी के माध्यम से कमाने का शौक पाल लिया , और इसी चक्कर में दूसरे दलों में अंदरूनी तौर पर आज भी निष्ठा रखने वाले ऐसे भी लोगों को पार्टी में शामिल किया जो पात्र नहीं थे।
सूत्रों का दावा है कि आर्थिक स्वार्थ पूर्ति के इरादे से जुड़े इसी खेल के फलस्वरुप नेताजी की आर्थिक हैसियत वर्तमान में 10 गुना बढ़ गई है। और जिसे भी इस बात पर यकीन ना हो वह खुद छानबीन कर ले कि पद हासिल करने के पहले नेताजी की आर्थिक हैसियत क्या थी और पद हासिल करने के बाद किस-किस रूप में और कितनी हो गई है ?
पार्टी सूत्रों का यह भी दावा है कि हिस्ट्रीशीटर रहे लोगों की मुलाकात प्रधानमंत्री से करवाने के मुद्दे को लेकर पार्टी के खिलाफ सबसे बुरा असर जमीन से जुड़े पार्टी कार्यकर्ताओं में पड़ा है। उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का मौका तो उन्हें मिलना चाहिए था जो कि पार्टी के पक्ष में ना केवल चुनावी सफलता दिलाते हैं बल्कि अपने लगातार कठोर परिश्रम से उसे मजबूत करने में भी लगे रहते हैं। इनमें से जमीन से जुड़े ऐसे भी कई भाजपाई हैं, जिनका लगभग पूरा जीवन ही दरी उठाते और वोट बैंक मजबूत करते बीत गया, जिनमें हर कार्यक्रम को सफल बनाने वाले अपने अथक परिश्रम से पार्टी को चुनाव में जीत दिलाने वाले पार्षदी आदि का चुनाव लगातार कई बार जीत कर आम जनता मतदाताओं के बीच अपनी मजबूत पकड़ का प्रमाण देने वाले ,राम जन्मभूमि आंदोलन में जेल भी जाने वाले और पार्टी तथा जनता के हित में अनेक आंदोलन करने वाले जमीन से जुड़े हुए पार्टी के समर्पित और निष्ठावान लोग भी शामिल हैं। चर्चा का विषय बने इस प्रकरण में असली दोषियों के खिलाफ क्या वास्तव में कुछ किया जाएगा। यह आने वाला वक्त ही बताएगा।