Homeराजस्थानअलवरमुनि द्वय निष्पक्षसागर संघ का हुआ भव्य मंगलप्रवेश

मुनि द्वय निष्पक्षसागर संघ का हुआ भव्य मंगलप्रवेश

नगरवासियो ने कौमी एकता की मिसाल की पेश

रणवीर सिंह चौहान

स्मार्ट हलचल/ भवानी मंडी/भवानीमंडी में आचार्य विद्यासागर महाराज के परम प्रभावी शिष्य मुनिद्वय 108 निष्पक्षसागर व निस्पृहसागर महाराज का गुरुवार को नगर में भव्य मंगलप्रवेश हुआ। जिसकी अगवानी रामनगर के नंदूबाई शंकरलाल आदर्श विद्या मंदिर से भव्य जुलूस के साथ प्रारंभ हुई जिसमें ढोल, बैंड, बाजे, बग्घी, हाथों में कलश लिए चल रही बालिका मंडल, छतरी कलश के साथ चल रहे महिला मंडल, आष्टा से आए हुए दिव्योदय जयघोष द्वारा किया गया वादन, वेदपाठी बालकों द्वारा किया गया शंखनाद व स्वस्ति वाचन आकर्षण के प्रमुख केंद्र रहे। मार्ग में कई स्थानों पर नगरवासियों द्वारा मुनिद्वय का पाद प्रक्षालन व आरती की गई। समाजजनों द्वारा मुनिद्वय के स्वागत हेतु मार्ग को कई स्वागत द्वारों व रंगोली कलाकारों द्वारा संपूर्ण मार्ग को आकर्षक रंगोली से सजाया गया। शोभायात्रा रामनगर के आदर्श विद्या मंदिर से प्रारंभ होकर आबकारी चौराह, बालाजी चौराह, स्टेशन तिराह होते हुए श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर पहुंची जहां जिनेंद्र दर्शन के पश्चात शोभायात्रा का मेड़तवाल धर्मशाला में समापन किया गया।

कौमी एकता की मिसाल की पेश

नगर में मुनिद्वय के आगमन पर जैन समाजजन सहित नगरवासियों द्वारा मुनिद्वय का पाद प्रक्षालन व आरती कर आशीर्वाद प्राप्त किया गया, वही इस दौरान श्री आदिनाथ चौथ माता मंदिर कमेटी, मुस्लिम समाज, श्री भवानीश्वर शिवालय मंदिर कमेटी, श्वेतांबर जैन समाज सहित नगरवासियों द्वारा महाराजश्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया गया। इस दौरान संपूर्ण नगर आचार्य विद्यासागर महाराज के जयकारों से गुंजायमान हो उठा।

सीढ़ियां उन्हें मुबारक हो जिन्हें छत तक जाना है, हमारी मंजिल तो आसमान से ऊपर है रास्ता हमें खुद बनाना है : मुनि निष्पक्षसागर महाराज

मुनि निस्पृहसागर महाराज ने अपने प्रवचन मे आचार्य विद्यासागर महाराज की आज्ञा को रामायण के दृष्टांत के माध्यम से बताया कि गुरु की आज्ञा का पालन करना ही गुरु की सच्ची सेवा है। एक पिता तभी निश्चिंत होकर सन्यास ग्रहण कर सकता है जब उनका कोई पुत्र उनकी आज्ञा का पालन करें। समझदार व्यक्ति कभी उलझनो में उलझना नहीं चाहेगा, यह लौकिक संसार उलझाने वाला है, इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए उतना अच्छा है। जैन मुनि गुरु आज्ञा को ही अपना दीक्षा व मोक्ष मान लेते हैं। वैभव कभी गुरु चरणों से अधिक श्रेयस्कर व प्रभावी नहीं हो सकता है। मां की छत्रछाया हमेशा सुखदाई होती है। आचार्य निष्पक्ष सागर महाराज ने अपने प्रवचन में बताया कि जैन दर्शन भाव प्रधान है, जब तक भावों से सच्चे देव शास्त्र गुरु की शरण में नहीं जाएंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता। अब भावों को संभालने की तैयारी है। गुरु की आज्ञा उनके वचन प्रमाण होते हैं। गुरु की आज्ञा पालन ही सबसे बड़ा अनुशासन है। भारतीय संस्कृति में जैन दर्शन में चातुर्मास का अत्यधिक महत्व है। चातुर्मास ही एक ऐसा अवसर है जिसका प्रत्येक दिन पर्व का ही रूप है। साथ ही बताया कि चातुर्मास एक सीढ़ी के समान है, लेकिन सीढ़ी उन्हें मुबारक हो जिन्हें छत तक जाना हो, हमारी मंजिल तो आसमान से ऊपर है रास्ता हमे खुद बनाना है। मुनियों का मंगल प्रवेश अपने आप में मांगलिक होता है। हम आचार्य ज्ञानसागर महाराज की कर्म स्थली व उनके प्रथम शिष्य आचार्य विद्यासागर महाराज की दीक्षा स्थली प्रांत की धरा पर आए है। इस धारा ने इस युग को श्रमण संस्कृति को आचार्य विद्यासागर महाराज के रूप में जिनशासन का ऐसा सूर्य प्रदान किया है जो दिगंबरत्व के इतिहास में मील का पत्थर साबित हो गए, जिन्होंने संपूर्ण विश्व में अहिंसा धर्म की पताका को फहराया है। विगत 500 वर्षों के इतिहास में आचार्य विद्यासागर महाराज ऐसे पुरोधा पुरुष हुए है जिन्होंने श्रमण संस्कृति को हिमालय की ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, इस धरा पर आकर हम स्वयं को अभिभूत महसूस कर रहे हैं।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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