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गरिमा खोता देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’,joke of bharat ratna award

गरिमा खोता देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’

c235f696 7095 4689 94bc bf6cb2dcfae2तनवीर जाफ़री

स्मार्ट हलचल/देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ का वितरण जितना इस बार विवादों में है उतना पहले कभी नहीं रहा। निश्चित रूप से पूर्व की सरकारों ने भी कई ऐसी हस्तियों को इस सर्वोच्च अलंकरण से नवाज़ा जिनकी विचारधारा पूर्व की सरकारों से मेल खाती थी। परन्तु लोकसभा के आम चुनावों से ठीक पहले देश का इस सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ का वितरण कम से कम ‘रेवड़ियों ‘ की तरह तो कभी नहीं किया गया। ‘भारत रत्न’ दिये जाने से सम्बंधित निर्देशावली में भारत सरकार द्वारा स्वयं यह नियम बनाया गया है कि एक वर्ष में अधिकतम केवल तीन हस्तियों को ही यह सम्मान दिया जा सकता है। 1954 में जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल के दौरान जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल में भारत रत्न देने की शुरुआत की गयी थी उस समय भी प्रथम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन व महान वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन जैसी तीन विशिष्ट हस्तियों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। परन्तु एक ही वर्ष में नियम के विरुद्ध जाकर पांच पांच ‘भारत रत्न’ घोषित किये जाने का कोई इतिहास नहीं मिलता। बेशक यह सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न किसे दिया जाना चाहिए इसकी कोई ख़ास योग्यता,परिभाषा या पैमाना निर्धारित नहीं है। परन्तु माना यही जाता है कि अलग अलग क्षेत्रों में देश के लिए सेवा करने में अपना अतुलनीय योगदान देने वाले अति विशिष्ट लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया जाता है। अति विशेष परिस्थितियों में यह पुरस्कार विदेशी नागरिकों को भी दिया जा सकता है। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार केंद्र में बनी थी उस समय तो सरकार ने इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न को स्थगित ही कर दिया था। परन्तु जैसे ही कांग्रेस ढाई वर्षों बाद ही पुनः सत्ता में आई उसने 1980 में पुनः यह सम्मान देना शुरू कर दिया।

कांग्रेस के शासनकाल में जिन प्रमुख हस्तियों को भारत रत्न से नवाज़ा जा चुका है उनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू,डॉ राजेंद्र प्रसाद,इंदिरा गाँधी,पी डी टंडन,लाल बहादुर शास्त्री,राजीव गाँधी,मदर टेरेसा,ख़ान ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान,सरदार वल्लभ भाई पटेल,नेल्सन मंडेला,जे आर डी टाटा,ए पी जे अब्दुल कलाम से लेकर सत्यजीत रे,लता मंगेषकर,पंडिरवि शंकर,भीम सेन जोशी,शहनाई वादक बिस्मिल्लाह ख़ान व सचिन तेंदुलकर जैसे विभिन्न क्षेत्रों के अति विशिष्ट लोगों के नाम उल्लेखनीय हैं।

परन्तु केवल इसी वर्ष यानी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिस प्रकार 15 दिन के भीतर 5 लोगों के नामों की घोषणा भारत रत्न दिये जाने हेतु की गयी और उसके जो राजनैतिक ‘साइड इफ़ेक्ट ‘ दिखाई दे रहे हैं या फिर जिन राजनैतिक समीकरणों को साधने की ग़रज़ से एक के बाद एक कर पांच भारत रत्न नामित किये गए हैं उसे लेकर इस अतिविशिष्ट सम्मान की महत्ता पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है। पिछले 15 दिनों के अंतराल में जिन 5 हस्तियों को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भारत रत्न हेतु नामित कर एक ही वर्ष में पांच लोगों को भारत रत्न दिए जाने का कीर्तिमान स्थापित करते हुये भारत रत्न प्रदान करने के नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गयीं वे हैं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर,भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के अतरिक्त पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह व नरसिम्हा राव तथा हरित क्रांति का जनक समझे जसने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन।

परन्तु इस बार उपरोक्त 5 भारत रत्न नामितों की घोषणा के बाद राजनैतिक विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग इन नामों,घोषणा के समय व संभावित प्रभावों को लेकर यह साफ़ तौर पर कहने लगा है कि इसबार रेवड़ियों की तरह किया जाने वाला ‘भारत रत्न’ अलंकार का वितरण पूरी तरह से राजनैतिक व चुनावी लाभ हासिल करने के मद्देनज़र लिया जाने वाला फ़ैसला है। इनमें जिन चार हस्तियों को भारत रत्न से नवाज़ा गया है निश्चित रूप से देश उनके योगदान का ऋणी है जबकि लाल कृष्ण आडवाणी का महत्वपूर्ण योगदान उस भाजपा को खड़ा में सबसे महत्वपूर्ण है जिसपर आज आडवाणी कृपा से ही नरेंद्र मोदी का नियंत्रण है। परन्तु इन नामों की घोषणा के बाद तत्काल जो राजनैतिक साईड इफ़ेक्ट नज़र आये वे यही हैं कि कर्पूरी ठाकुर के नाम की घोषणा होते ही पाला बदलने की आस में बैठे नितीश कुमार I. N. D. I. A. गठबंधन छोड़ पुनः एन डी ए में जा मिले। इसी तरह चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने पर आर एल डी नेता व चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयन्त चौधरी भी एन डी ए में इन शब्दों के साथ जाते हुये दिखाई दिये कि -‘किस मुंह से इंकार करूँ ‘ ? इसी तरह मोदी सरकार ने इस बार कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव व इससे पूर्व 2019 में प्रणब मुखर्जी के नाम की घोषणा कर यह संदेश दिया था कि नेहरू गांधी परिवार से नाम मात्र मतभेद रखने वाले नेताओं को भी सम्मान दिया जा सकता है। सीधे शब्दों में इनको दिया जाने वाला सम्मान इन नेताओं के सम्मान में कम गांधी परिवार के विरोध का प्रतीक अधिक है। रहा सवाल एमएस स्वामीनाथन का तो देश जानता है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर ही आज न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिये देश के किसान लंबे समय से संघर्षरत हैं। परन्तु स्वामीनाथन आयोग की इन सिफ़ारिशों को मानने के बजाय स्वामीनाथन को भारत रत्न दिये जाने की घोषणा कर देना,इसे आख़िर किस नज़रिये से देखा जाना चाहिये ?

भारत रत्न के लिये इन नामों की घोषणा के बाद एक सवाल यह भी उठने लगा है कि जिस भाजपा के लोग 22 जनवरी के अयोध्या आयोजन को मोदी व भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बता रहे थे और उसी भरोसे पर मीडिया की जुगलबंदी से ‘अब की बार चार सौ पार ‘ का माहौल बनाने में जुट गये थे, वही भाजपा क्या अब ‘राम कृपा ‘ पर विश्वास नहीं कर पा रही जो उसे भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान को भी रेवड़ियों की तरह बांटकर विपक्षी नेताओं को अपने ख़ेमे में जोड़ने के हथकण्डे इस्तेमाल करने पड़ रहे हैं ? क्या भारत रत्न भी अब राजनैतिक लाभ उठाने का ‘अलंकरण ‘ बन कर रह जायेगा ? और यदि ऐसा हुआ तो निश्चित रूप से देश का यह ‘भारत रत्न’ रुपी सर्वोच्च सम्मान अपनी गरिमा पूरी तरह खो बैठेगा।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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