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डोबरा महादेव मंदिर: घने जंगलों की गोद में बसा रहस्यमयी और चमत्कारी शिवधाम

सावन में अष्टमी को पहाड़ी पर स्थित डोबरा महादेव मंदिर पर लगाता है भव्य मेला। पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु महादेव के दर्शन को पहाड़ी पर स्थित मंदिर।

बूंदी- स्मार्ट हलचल|राजस्थान के बूंदी जिले की पहाड़ियों और घने जंगलों की गहराई में एक ऐसी अद्भुत और रहस्यमयी जगह छिपी है, जिसके बारे में जानकर और वहां पहुंचकर कोई भी सहज नहीं रह सकता. यह स्थान है डोबरा महादेव मंदिर, एक ऐसा शिवधाम, जो न केवल श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि इतिहास, अध्यात्म और रहस्य का जीवंत संगम भी है.

बूंदी शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थल रामगढ़ टाइगर रिजर्व की सुरम्य और घनी पहाड़ियों के बीच छिपा हुआ है. यहां पहुंचने के लिए पथरीले रास्तों, टूटी सड़कों और जंगली जानवरों के डर से गुजरना पड़ता है, लेकिन फिर भी श्रद्धालुओं की आस्था हर कठिनाई को मात देती है. खासकर सावन के महीने में तो यहां मानो आस्था का समंदर उमड़ पड़ता है.

घने जंगल के बीच स्थित है डोबरा महादेव मंदिर

यह मंदिर 700 साल पुराना शिवधाम है। करीब 700 से 800 वर्ष पुराने इस मंदिर की दिव्यता आज भी वैसी ही महसूस की जा सकती है. मंदिर में पंचमुखी महादेव, रघुनाथजी और बालाजी की प्राचीन मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं. पुजारी अभिषेक शर्मा बताते हैं कि यह स्थान प्राचीनकाल में साधु-संतों की तपोभूमि रहा है. उनका कहना है कि गहन वन क्षेत्र की शांति, निर्जनता और पवित्रता ने कई संतों को यहां साधना के लिए आकर्षित किया।

डोबरा महादेव मंदिर

पुजारी अभिषेक शर्मा ने बताया कि बूंदी रियासत के एक राजा ने यहां मंदिर का भव्य निर्माण करवाया था. डोबरा महादेव के पास ही एक पहाड़ी की गुफा में आज भी एक जीवित समाधि स्थित है, जिसके बाहर विक्रम संवत 1515 खुदा हुआ है. यह इस स्थान की ऐतिहासिक प्रामाणिकता का साक्षी है. डोबरा महादेव सिर्फ शिवभक्तों का तीर्थस्थल ही नहीं, बल्कि इतिहास में भी अपनी एक खास जगह रखता है।

सावन में लगता है आस्था का मेला

पुजारी अभिषेक शर्मा बताते हैं कि सावन की पहली अष्टमी को यहां डोबरा महादेव और चामुंडा माता का विशाल मेला लगता है। इस दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु जंगल और पहाड़ियों के बीच से गुजरकर मंदिर तक पहुंचते हैं। इसके अलावा हर सोमवार और शनिवार को बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं. डोबरा महादेव तक पहुंचना आसान नहीं है। यहां तक आने के दो रास्ते हैं, एक दलेलपुरा से टीवी टावर के पास से और दूसरा पुराने चुंगी नाके के पास से है।

कठिनाइयों के बावजूद अटूट श्रद्धा।

दोनों रास्ते मिलकर घने जंगलों और पथरीली पहाड़ियों से होते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं. सड़कें टूटी हुई हैं, बिजली नहीं है और रामगढ़ टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आने से जंगली जानवरों का भय बना रहता है. फिर भी लोगों की आस्था इतनी प्रबल है कि वे पैदल, दुपहिया या फिर चार पहिया वाहनों से भी इस स्थान तक पहुंचते हैं. सावन में तो जैसे यहां आस्था की बाढ़ सी आ जाती है।

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