प्रशासन ने भवन में बैठाने से किया इनकार, अभिभावकों में आक्रोश
बनेड़ा । शिक्षा का मंदिर अब खतरे की घंटी बनता जा रहा है—बनेड़ा कस्बे के मॉडल स्कूल परिसर में शुरू किया गया प्राइमरी सेक्शन इन दिनों संकट के साये में है। महज दो साल पहले शुरू हुई इस इकाई की इमारत इतनी जर्जर हो चुकी है कि बच्चे उसमें बैठने से भी डरते हैं। छत से टपकता पानी, दीवारों में गहरी दरारें और हर बारिश में रिसता भरोसा—इन्हीं हालातों के बीच यहां की मासूम जिंदगियां हर दिन पढ़ने आती हैं।
प्रशासन ने चेताया, पर जवाबदेही अब भी अधूरी
तहसीलदार के निरीक्षण के बाद साफ तौर पर आदेश दे दिए गए हैं कि इस भवन में बच्चों को बैठाना पूरी तरह से असुरक्षित है। प्रशासन ने संवेदनशीलता दिखाई, पर सवाल यही है कि इतनी जल्दी इमारत कैसे खस्ताहाल हुई?
गुणवत्ता में गड़बड़ी या जिम्मेदारियों से भागना?
स्थानीय लोगों और अभिभावकों की मानें तो निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही गुणवत्ता को लेकर संदेह जताए गए थे। अब वही अंदेशे सच साबित हो रहे हैं। क्या ठेकेदार को समय पर भुगतान करने की जल्दी थी या निर्माण एजेंसी ने निगरानी में ढिलाई की? जवाब आज भी हवा में हैं। भवन की तकनीकी जांच किसी स्वतंत्र विशेषज्ञ टीम से करवाई जाए। निर्माण कार्य में दोषी ठेकेदार व विभागीय अफसरों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई हो। जब तक नया भवन नहीं बनता, बच्चों के लिए सुरक्षित वैकल्पिक कक्षाएं सुनिश्चित की जाएं। भविष्य में इस तरह की लापरवाही न हो, इसके लिए गुणवत्ता नियंत्रण और निगरानी तंत्र को मजबूती दी जाए।
शिक्षा या लापरवाही—किसका मूल्य चुकाएंगे बच्चे?
बनेड़ा का यह मामला न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करता है कि सरकारी भवनों के निर्माण में जवाबदेही की कमी आखिर कब तक मासूम जिंदगियों को जोखिम में डालती रहेगी?