आखिर यहां कोठारी नदी के किनारे हुए भवनों के निर्माण की जांच कब तक
भीलवाड़ा, स्मार्ट हलचल । (राजेश कोठारी)
उत्तराखंड के उत्तरकाशी के धराली में मंगलवार को हुई महा तबाही से भीलवाड़ा जिला प्रशासन को भी वक्त रहते सबक ले लेना चाहिए, अन्यथा भारी बारिश के दौरान भविष्य में कभी यहां भी ऐसी तबाही और जनहानि झेलने के लिए तैयार रहें। अक्सर किसी दुखद घटना के बाद राज्य व केंद्र सरकार और स्थानीय प्रशासन अलर्ट मोड़ पर आता है। जिसका ताजा उदाहरण झालावाड़ में स्कुली बच्चों के हुई दुखांतिका है। इसके बाद राज्य सरकार, शिक्षा विभाग व स्थानीय प्रशासन सतर्क मोड़ पर आया और देशभर के स्कूलों की बिल्डिंग का सर्व शुरू किया गया, जो जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इससे पुर्व में मानसून सत्र में किसी को भी ऐसे भवनों की सुध लेने या मरम्मत करवाने की जहन में नहीं आई। मासुमों की जान गई तो हड़कंप मचा और सार संभाल शुरू हुई। अब आगे आते हैं, शिर्षक के विषय पर यानी के वस्त्रनगरी कहे जाने वाले भीलवाड़ा की कोठारी नदी के किनारे किनारे हुए निर्माण की बात पर। इस नदी के दोनों किनारों पर होटल्स, हॉस्पिटल, सामाजिक भवन और मंदिर तक बने हुए हैं। ऐसे में कभी उत्तराखंड में हुए जलप्रलय जैसी घटना यहां होती है तो किसी बड़ी तरह की जनहानि से इंकार नहीं किया जा सकता। प्राकृतिक प्रवाह के दौरान तबाही का कोई रूप नहीं होता है। कहते हैं की “नियती देर नहीं करती है, जो लेती है, वो देती है” चाहें वो पर्यावरण संरक्षण हो या पर्यावरण विनाश। इसलिए समय रहते नदी के पेटे हुए सभी भवनों के निर्माण की जांच होना आवश्यक है। क्या इन भवनों के निर्माण को लेकर कानूनी व पर्यावरणीय मंजूरी दी गई है। स्थानीय और राष्ट्रीय कानूनों के तहत आवश्यक मंजूरी ली गई है। क्या एनजीटी के नियमों, दिशा निर्देश की पालना को ध्यान में रखा गया है, या नदी किनारे निर्माण करते समय बाढ़, भुस्खलन, अन्य प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का ध्यान रखा गया है। क्योंकि उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुई घटना के दौरान प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा सामने आया है की वहां महज 30 सेकंड में सैलाब से 10 मी. चौड़ी खीर नदी 30 मी. चौड़ी हो गई। लोग भाग भी नहीं पाए। कार, घर, इमारतें, टावर सैलाब आंखों के सामने सब बह गई। आंखों के सामने पूरा गांव मैदान सा बन गया। किसी का कुछ पता नहीं। चारों ओर 15 से 20 फीट का मलबा है। हर्षिल, मुखबा और धराली तीनों उत्तराखंड के बड़े पर्यटन स्थल हैं। धराली छोटा सा गांव है, जहां करीब 600 की आबादी रहती है।
एक नज़र नदी किनारे बसे भवनों पर…
भीलवाड़ा में कोठारी नदी के किनारे बने हॉस्पिटल, सामाजिक भवन, होटल्स, रिसोर्ट, मंदिर में हर वक्त बड़ी संख्या में लोगों की मोजुदगी रहती है। भारी बारिश के दौरान यहां मोजूद लोग अपने घरों के लिए नहीं निकल पाते हैं और इन स्थानों को सुरक्षित जगह मानकर बरसात रूकने और मौसम खुलने का इंतजार करते हैं। ऐसे में कभी ना थमने वाली बारिश से अचानक नदी उफान पर आ जाए तो उस वक्त के हालात को किस तरह से काबू किए जाएंगे ये सोच से परे है।
अब तक नहीं ढुंढ पाए “सुराख़ का सुराग”
कोठारी नदी में भविष्य के बहाव और आवागमन को देखते हुए, यहां पुलिया का निर्माण किया गया। लेकिन यह पूल भी शुरू होने से पुर्व अपने सुराख को लेकर विवादों में आ गया। जांच कमेटी बैठा दी गई। जयपुर से आई टीम ने जांच कर ली, लेकिन काफी वक्त गुजरने के बाद भी “सुराख के सुराग” को नहीं पकड़ पाए की आखिर पूल बनाने में इतनी बड़ी चुक और लापरवाही कैसे की गई है, कौन जिम्मेदार है ?


