संजीव शर्मा
स्मार्ट हलचल|हिमाचल प्रदेश में ‘क्वीन ऑफ हिल्स’ शिमला के सबसे लोकप्रिय स्थान मॉल रोड पहुंचते ही दूर पर्वत की चोटी पर विराजमान पवनपुत्र हनुमान जी की प्रतिमा बरबस ही सभी का ध्यान खींच लेती है। इस प्रतिमा और बादलों की आंख मिचौली से शिमला के बदलते मौसम का अंदाजा भी लगता रहता है क्योंकि कभी यह प्रतिमा बादलों में छिपकर अदृश्य हो जाती है तो कभी सूर्य की किरणें को आत्मसात कर दिव्यता से चमकने लगती है।
यह प्रतिमा इस तरीके से स्थापित की गई है कि मॉल रोड से लेकर इसके आसपास के कई इलाकों से आप हनुमान जी के दर्शन कर सकते हैं और अब यह मॉल रोड के एक प्रमुख आकर्षणों में से एक है।
इस पहाड़ को जाखू हिल्स और हनुमान जी को ‘शिमला के रक्षक’ कहा जाता है। आख़िर, हनुमान चालीसा में ऐसे ही थोड़ी लिखा गया है..’तुम रक्षक काहू को डरना।’
जाखू वाले हनुमान जी केवल एक मंदिर या पर्यटन स्थल नहीं है बल्कि यहां की गाथा रामायण काल से जुड़ी है और यह अकाट्य आस्था का स्थान है। शिमला की ऊंची चोटियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 8 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह जाखू मंदिर आस्था, प्रकृति और रोमांच का एक अद्भुत संगम है एवं शिमला के ‘ताज’ से कम नहीं है।
मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि लंका विजय के दौरान युद्ध में मेघनाथ द्वारा शक्ति बाण चलाने से मूर्छित लक्ष्मण को बचाने के लिए जब हनुमान आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय की और जा रहे थे तो अचानक उनकी दृष्टि जाखू पर्वत पर तपस्या में लीन यक्ष ऋषि पर पड़ी।
संजीवनी बूटी का परिचय जानने के लिए हनुमान जी यहां पर उतर गए। बताया जाता है कि उनके वेग से जाखू पर्वत जो पहले काफी ऊँचा था, आधा पृथ्वी के गर्भ में समा गया। बूटी का परिचय प्राप्त करने के उपरान्त हनुमान द्रोण पर्वत की और चले गए। जाखू पर्वत पर जिस स्थान पर हनुमान जी उतरे थे वहां पर आज भी उनके चरण चिन्हों को संगमरमर से निर्मित करके सुरक्षित रखा गया है।
हनुमान ने ऋषि यक्ष को वापसी में इसी स्थान पर उनसे मिलते हुए लौटने का वचन दिया था। परन्तु यात्रा के दौरान हनुमान को मार्ग में कालनेमी राक्षस के कुचक्र सहित कई बाधाओं को पार करना पड़ा और समय अधिक लग गया। तब हनुमान समय पर संजीवनी बूटी लक्ष्मण तक पहुंचाने के लिए इस रास्ते की बजाए दूसरे छोटे मार्ग से अयोध्या होते हुए लंका चले गए। जाखू हिल्स पर अन्न जल त्यागकर हनुमान की प्रतीक्षा कर रहे ऋषि यक्ष की व्याकुलता बढ़ने लगी। उनकी व्याकुलता देख हनुमान जी ने ऋषि को दर्शन दिए और न आने का कारण बताया। उनके अंतर्ध्यान होने के तुरन्त बाद यहां बजरंग बली की एक स्वयंभू मूर्ति प्रकट हुई जो आज भी मन्दिर में पूजी जाती है।
यक्ष ऋषि ने ही हनुमान जी के यहां ठहराव की स्मृति में इस मन्दिर का निर्माण किया। ऋषि ‘यक्ष’ के नाम पर ही पर्वत का नाम पहले ‘यक्ष’ था, जो समय के साथ बदलते हुए ‘याक’, फिर ‘याखू’ और अंत में ‘जाखू’ बन गया।
जाखू मंदिर का अब सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ स्थापित हनुमान जी की 108 फीट ऊँची सिंदूरी प्रतिमा है । वर्ष 2010 में स्थापित यह मूर्ति इतनी विशाल है कि इसे शिमला के लगभग हर कोने से देखा जा सकता है। यह प्रतिमा शहर की पहचान बन चुकी है और इसे ‘प्राइड ऑफ शिमला’ भी कहा जाता है। अब यहां विशाल ध्वज भी स्थापित कर दिया गया है।
जाखू मंदिर तक पहुँचना भी अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है। पर्यटक मॉल रोड के रिज मैदान से जाखू मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल या टैक्सी का उपयोग कर सकते हैं। पैदल रास्ता घने देवदार के जंगल से होकर गुज़रता है, जो ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए स्वर्ग जैसा है। वहीं संकरे पहाड़ी कच्चे-पक्के मार्ग पर टैक्सी की सवारी भी किसी रोमांच से कम नहीं है। वहीं, जो पर्यटक खड़ी चढ़ाई से बचना चाहते हैं उनके लिए जाखू रोपवे एक बेहतरीन विकल्प है।
रिज मैदान से शुरू होकर यह रोपवे कुछ ही मिनटों में सीधे मंदिर परिसर तक पहुँचा देता है, साथ ही शिमला शहर के मनमोहक नज़ारे भी दिखाता है। जाखू पहाड़ी की चोटी से शिमला शहर, आसपास की चोटियों और घाटियों का मनोरम और विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है।
कुल मिलाकर जाखू मंदिर केवल पत्थर और मूर्तियों का ढांचा नहीं है, बल्कि यह वह सिद्ध स्थान है जहाँ देवत्व और प्रकृति का मिलन होता है इसलिए शिमला की यात्रा जाखू हनुमान के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है।


