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कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर सरोवर में उमड़ा आस्था का सागर, लाखों श्रद्धालुओं ने लगाई पुण्य की डुबकी

भक्ति, विश्वास और भारतीय संस्कृति के अद्भुत संगम का प्रतीक

(हरिप्रसाद शर्मा)

स्मार्ट हलचल|अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुष्कर धार्मिक में बुधवार को कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर भीष्म पंचतीर्थ स्नान का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन रहा। ब्रह्म मुहूर्त में जैसे ही सूर्य की पहली किरणें सरोवर पर पड़ीं, वैसे ही हजारों श्रद्धालुओं ने ब्रह्म सरोवर में आस्था की डुबकी लगाई। यह स्नान पूरे दिन चलता रहा और श्रद्धालु दूर-दूर से आकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के दर्शन कर पुण्य अर्जन में लीन रहे।

मोक्ष और पाप विमोचन की मान्यता से उमड़ी भीड़
हिंदू परंपरा के अनुसार पंचतीर्थ स्नान के अंतिम दिन स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी आस्था के साथ देशभर से लाखों श्रद्धालु पुष्कर पहुंचे। सरोवर के 52 घाटों पर श्रद्धालु स्नान के बाद ब्रह्मा मंदिर सहित विभिन्न देवालयों में पूजन-अर्चना कर रहे हैं। इस बार महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक रही, जिससे घाटों पर विशेष चहल-पहल रही।

श्रद्धा, भक्ति और जयघोषों से गूंजा पुष्कर धाम
सुबह से ही ‘हर हर गंगे’ और ‘जय ब्रह्मा देव’ के जयकारों से पूरा पुष्कर धाम गूंज उठा। हवा में भक्ति का उत्साह घुल गया और सरोवर के चारों ओर दीपों की रोशनी से एक दिव्य वातावरण बना रहा। यह दिन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना बल्कि पुष्कर मेले की आध्यात्मिक परिणति का भी साक्षी रहा।

चार लाख से अधिक श्रद्धालुओं की उपस्थिति
पुष्कर मेले में इस वर्ष चार लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाई है ।सुरक्षा के मद्देनजर घाटों पर पुलिस बल, होमगार्ड और स्वयंसेवकों की अतिरिक्त तैनाती की गई। ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों से निगरानी रखी जा रही है, ताकि भीड़ प्रबंधन में कोई बाधा न आए। प्रशासन ने स्नान के दौरान स्वच्छता और सुविधा के लिए विशेष इंतजाम भी किए।

धार्मिक मेले का हुआ समापन, श्रद्धालु लौटे संतोष के साथ
आज के स्नान के साथ ही पुष्कर का प्रसिद्ध कार्तिक मेला संपन्न हो गया। स्नान और पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालु संतोष और आत्मिक शांति के साथ अपने घरों को लौटे। कार्तिक पूर्णिमा का यह महास्नान हर वर्ष की तरह इस बार भी भक्ति, विश्वास और भारतीय संस्कृति के अद्भुत संगम का प्रतीक बन गया।
शाम को जयपुर घाट सहित मुख्य घाटों पर महाआरती की गई। महाआरती के बाद धार्मिक मेले का समापन हुआ।

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