दृष्टिकोण
डॉ. सुधाकर आशावादी
स्मार्ट हलचल।भारतीय पर्वों में रक्षा बंधन का विशेष महत्व है। कच्चे धागों की डोर से भाई बहन के पावन रिश्तों में भाई द्वारा बहन की पक्की सुरक्षा का वचन निभाने का प्रतीक पर्व व्यक्ति में नेह, त्याग व समर्पण की भावना के समाहित होने का बोध कराता है। यूँ तो आधुनिक युग में भौतिकता इतनी सर चढ़कर बोल रही है, कि भाई के बहन के रिश्तों में भी औपचारिकता का अधिक निर्वाह होने लगा है, फिर भी प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा पर बहन अपने भाई के स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की कामना करती है तथा अपने और परिवार पर आने वाले किसी संकट के समय अपनी सुरक्षा का वचन लेती है। भारतीय परिवार व्यवस्था में भाई बहन का सम्बंध सबसे पवित्र है भी, इसमें कोई संदेह नही है।
यह तो रही रक्षा बंधन पर्व की महत्ता की बात। अब राष्ट्र के प्रति जनमानस के दायित्व निर्वहन का प्रश्न है कि जनमानस राष्ट्र के प्रति कितना समर्पित एवं वचनबद्ध है। रक्षा बंधन पर्व पर ऐसा कौन सा सूत्र हो, जो उसे राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व निर्वहन का बोध करा सके। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर राष्ट्र के प्रति अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति समर्पित होकर किस प्रकार से राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहने का संकल्प लिया जाए, यह विचारणीय बिंदु है।
विडम्बना है कि जब राष्ट्र विकास के मार्ग पर अग्रसर है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व भर में भारत अपने विशिष्ट कौशल के कारण बड़ा नाम कमा रहा है, तब देश के भीतर एवं बाहर भारत विरोधी शक्तियाँ देश में विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र रचकर देश को बदनाम करने पर आमादा है। भारत की सीमाओं पर शत्रु अतिक्रमण करने हेतु कुचक्र रच रहे हैं। जिनका साथ देते हुए भारत विरोधी तत्व कभी सेना के शौर्य पर सवाल उठाते हैं, कभी विदेशी षड्यंत्रकारियों के मंसूबों का समर्थन करके राष्ट्र के प्रति अपनी नकारात्मक सोच का परिचय दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि भारत की न्यायिक प्रणाली या जनमानस उनकी भारत विरोधी मानसिकता से अपरिचित हो, फिर भी ऐसे तत्व सक्रिय हैं। यह देश का दुर्भाग्य है कि जहां देश की विदेश नीति तथा आम आदमी का राष्ट्र के प्रति समर्पण आवश्यक है, वहाँ अराजक तत्व विशुद्ध मानवीय दृष्टिकोण की उपेक्षा करके देश को क्षेत्र, धर्म,जाति व भाषा के आधार पर बाँटने का कुत्सित प्रयास करने में जुटे हैं। देश के प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन, जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति से जैसे जनमानस को कोई सरोकार न हो। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा, कि लोग सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुक़सान पहुँचाने से भी कोई परहेज़ नहीं करते। किसी भी राजनीतिक दल के सक्रिय सदस्य, पदाधिकारी या जन प्रतिनिधि बनकर अपना घर भरने की दौड़ में शामिल लोग राष्ट्र के प्रति कितने समर्पित व निष्ठावान हैं, यह तथ्य किसी से छिपा नही है। फिर भी देश गतिशील है। ऐसे में क्यों न वैचारिक धरातल पर कोई ठोस निर्णय लिया जाए। समाज में परिवर्तित जीवन मूल्यों के बीच कोई ऐसा सूत्र निर्मित किया जाए, जिसके माध्यम से देश का प्रत्येक नागरिक दलगत, जातिगत, क्षेत्रीय, भाषाई व धार्मिक आस्थाओं से ऊपर उठकर केवल राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने के लिए संकल्प व वचनबद्ध हो।