AI becomes a new weapon in the fight against cancer
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने एक नया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल बनाया है, जो कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। यह नई तकनीक कैंसर के इलाज में एक बड़ी समस्या को हल करती है, कई बार ट्यूमर में एक जैसी नहीं, बल्कि अलग-अलग तरह की कोशिकाएं होती हैं। इसे ‘ट्यूमर हेटेरोजेनेटी’ कहा जाता है। हर तरह की कोशिका इलाज पर अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया करती है।
यह टूल कैंसर की हर एक कोशिका के अंदर होने वाली जीन की गतिविधि को गहराई से अध्ययन करेगा
कुछ कोशिकाएं इलाज से मर जाती हैं, लेकिन कुछ बच जाती हैं, जो आगे चलकर कैंसर की वापसी का कारण बनती हैं। ‘एएनेट’ नाम का एआई टूल ऑस्ट्रेलिया के गारवन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च और अमेरिका की येल स्कूल ऑफ मेडिसिन ने मिलकर बनाया है। यह टूल कैंसर की हर एक कोशिका के अंदर होने वाली जीन की गतिविधि को गहराई से अध्ययन करेगा।
अंतरराष्ट्रीय रिसर्च टीम ने बताया कि इस एआई टूल की मदद से ट्यूमर के अंदर 5 अलग-अलग तरह की कोशिकाएं पाई गईं
अंतरराष्ट्रीय रिसर्च टीम ने बताया कि इस एआई टूल की मदद से ट्यूमर के अंदर 5 अलग-अलग तरह की कोशिकाएं पाई गईं। हर एक का अपना अलग व्यवहार और फैलने के अलग-अलग खतरे थे। पुराने तरीकों से डॉक्टर सभी कैंसर कोशिकाओं को एक जैसा मानकर इलाज करते थे, लेकिन अब इस नई तकनीक से बेहतर इलाज किया जा सकेगा।
ट्यूमर हेटेरोजेनेटी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि ट्यूमर का इलाज सभी कोशिकाओं को एक जैसी मानकर किया जाता है
गारवन इंस्टीट्यूट की एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टीन चैफर ने बताया, “ट्यूमर हेटेरोजेनेटी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि ट्यूमर का इलाज सभी कोशिकाओं को एक जैसी मानकर किया जाता है। इसके तहत, हम एक ऐसी थेरेपी देते हैं, जो ट्यूमर की ज्यादातर कोशिकाओं को एक खास तरीके से मारती है। लेकिन हर कोशिका उस इलाज से नहीं मरती, और वे बचकर कैंसर को दोबारा फैला सकती हैं। एएनेट एआई टूल हमें ट्यूमर के अंदर की विविधता को जैविक रूप से पहचानने में मदद करता है।”
येल यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर स्मिता कृष्णास्वामी इस एआई टूल की सह-निर्माता हैं
नया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल अब इलाज के लिए तैयार है
यह तकनीक अब इलाज के लिए तैयार है। ‘कैंसर डिस्कवरी’ नामक जर्नल में छपे इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि यह तकनीक स्तन कैंसर में तो सफल साबित हुई ही है, साथ ही यह दूसरे तरह के कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियों के लिए भी फायदेमंद हो सकती है, जो पर्सनलाइज्ड मेडिसिन की दिशा में एक बड़ा कदम है।


