Homeभीलवाड़ाआखिर, अब और कितनी चेतना या ऋतिक बोरवेल में फंसकर जान गवाएंगे...!

आखिर, अब और कितनी चेतना या ऋतिक बोरवेल में फंसकर जान गवाएंगे…!

कोटपूतली में मासुम चेतना की मौत, जिम्मेदारों पर छोड़ गई, कई सुलगते सवाल

राजेश जीनगर
भीलवाड़ा । *यहां,* हर किसी की किस्मत शायद मासूम प्रिंस जैसी नहीं है, जो 21 जुलाई 2006 में कुरूक्षेत्र से 40 किलोमीटर दूर हलदेहडी गांव के बोरवेल में गिरकर भी मौत को मात देकर जीवित निकल आया। लेकिन कोटपूतली में तमाम प्रयासों व करोड़ों रुपया खर्च करने बावजूद भी “मासुम चेतना” को नहीं बचाया जा सका। जबकि दस दिनों तक एनडीआरएफ टीम ने जी तोड़ मशक्कत की, सरकार के भी पांच करोड़ रुपए तक खर्च हो गए। अब “चेतना” की मौत लापरवाही और जिम्मेदारों पर कई सुलगते सवाल छोड़ गई है की आखिर अब और कितने ऋतिक व चेतना को बोरवेल में फंसकर अपनी जान गंवानी पड़ेगी और राज्य सरकारें कब जागकर ऐसी मौतों से सबक लेकर लापरवाहों पर कार्यवाही करेगी ताकी भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हों। कोटपूतली की घटना को लेकर *वस्त्रनगरी भीलवाड़ा शहरवासियों की मानें तो राज्य सरकारों को थानों की पुलिस व नगर निकाय, नगर पालिका अधिकारियों, उपखंड मुख्यालय स्तर पर व तहसीलदार, पटवारी, ग्राम सचिवों को पाबंद कर अपने अपने क्षेत्रों में बोरवेल “मौत के खुले मुंह” का सर्वे करवाकर रिपोर्ट तैयार करवा लें तो शायद काफी हद तक इन जैसे हादसों को रोका जा सकता है।* नगर निकाय में सफाईकर्मियों के जमादार व थानों के बीट कांस्टेबलों पर जिम्मेदारी तय कर देनी चाहिए की उनके हल्के में कहीं भी खुला बोरवेल है तो उसकी जांच पड़ताल कर नियत समय में जिला प्रशासन कलेक्टर सहित उच्च अधिकारियों को अवगत करवाए। जिससे की लापरवाह लोगों पर कार्यवाही हो सके और खुले बोरवेल पर ढक्कन लग सके और भविष्य में राज्य सरकारों का इस तरह की घटनाओं को लेकर मशीनरी पर करोड़ों रुपया खर्च ना हो।
सांसद, विधायक, पार्षद व सरपंच सहित स्वयंसेवी संगठन भी करें हस्तक्षेप तो…!.
ऐसी घटनाओं की रोकथाम को लेकर शहरी क्षेत्रों में जिले के सांसद, शहर विधायक, नगर निकाय, पालिका के पार्षद व ग्रामीण क्षेत्रों में सरपंच भी हस्तक्षेप कर संबंधित अधिकारियों को पाबंद कर ऐसी जगहों का सर्वे करवा सकते हैं, जहां खुले बोरवेल अनहोनी को न्योता दे रहे हो। ऐसे बोरवेल को बंद किया जा सके। वहीं जनहित में पार्षद, पटवारी, सरपंच, बीट कांस्टेबल और स्वयंसेवी संगठन भी अपनी जागरूकता का परिचय देते हुए अपने अपने क्षेत्रों में ऐसी जगहों की निगरानी भी रखें, जहां नये बोरवेल खोदे जा रहे हो। ताकी समय रहते उन्हें बंद करवाए जा सकें।
इनाम की राशि भी काफी हद तक रोक सकती है, हादसे ….
खुले बोरवेल से हादसों पर अंकुश लगाने के लिए नवाचार करते हुए अगर राज्य सरकारें, पुलिस विभाग, शहरी नगर निगम, उपखंड पालिका, सरपंच व जनप्रतिनिधि अगर खुले बोरवेल की शिकायतों पर इनाम की राशि तय कर दे तो काफी हद ऐसे हादसों में कमीं आ सकती है। इससे समय रहते प्रशासन को भी सुचना मिल जाएगी और कार्यवाही की जा सकेगी। वहीं इनाम की राशि लापरवाह लोगों से वसुल कर के सुचना देने वाले को दी जा सकती है।

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