Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगडॉ. भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष आलेख

डॉ. भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष आलेख


जाने- डॉ. बी.आर. अंबेडकर की मृत्यु दिवस या पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में क्यों और कैसे मनाते है ?

 

महापरिनिर्वाण शब्द का क्या अर्थ है और यह शब्द कहाँ से आया ?

 मदन मोहन भास्कर

स्मार्ट हलचल/संविधान के जनक डॉ. भीमराव अंबेडकर का दिल्ली में 6 दिसंबर 1956 को देहावसान हुआ था। उनकी पुण्यतिथि या मृत्यु दिन को को देश भर में महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। डॉ. अम्बेडकर भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और राजनीतिक व्यक्ति थे । डॉ. अम्बेडकर ने जवाहरलाल नेहरू की पहली कैबिनेट में कानून और न्याय मंत्री का पद भी संभाला और हिंदू धर्म त्यागने के बाद दलित बौद्ध आंदोलन के लिए प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य किया और अपना पूरा जीवन जातिवाद को खत्म करने और गरीबों, दलितों, पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए लगा दिया था।

महापरिनिर्वाण क्या अर्थ है और यह शब्द कहा से आया ?

महापरिनिर्वाण शब्द बौद्ध साहित्य- महापरिनिवान्न सुत्त से लिया गया है। महापरिनिर्वाण का मतलब है, मुक्ति या अंतिम मृत्यु। महापरिनिर्वाण का अर्थ है – कोई ऐसा व्यक्ति जिसने अपने जीवनकाल में और मृत्यु के बाद निर्वाण या स्वतंत्रता प्राप्त कर ली हो। संस्कृत में, परिनिर्वाण का अर्थ है- मृत्यु के बाद निर्वाण प्राप्त करना, यानी मृत्यु के बाद आत्मा का शरीर से मुक्त होना। पाली में, इसे परिनिब्बान के रूप में लिखा जाता है, जिसका अर्थ है निर्वाण की प्राप्ति। यह एक संस्कृत शब्द है और बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, बौद्ध धर्म के मुताबिक, जो व्यक्ति निर्वाण प्राप्त करता है, वह सांसारिक इच्छाओं और जीवन की पीड़ा से मुक्त हो जाता है। साथ ही, वह जीवन चक्र से भी मुक्त हो जाता है और बार-बार जन्म नहीं लेता। बौद्ध धर्म में निर्वाण उस अलौकिक ज्ञान और शांति को कहते हैं जिसे पाना सर्वोत्तम धार्मिक लक्ष्य माना जाता है।
निर्वाण प्राप्त करने के बाद, व्यक्ति के कोई भी कर्म शेष नहीं रहते।

डॉ. अम्बेडकर महापरिनिर्वाण दिवस क्यों और कैसे से मनाया जाता है ?

हर साल महापरिनिर्वाण दिवस पर लोग दादर में ‘चैत्य भूमि’ पर बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं। वे बौद्ध गुरु और समाज सुधारक के रूप में उनकी शिक्षाओं को याद करके उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। महापरिनिर्वाण दिवस के दिन लोग डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाते हैं। दीपक व मोमबत्तियां जलाकर और जय भीम का नारा लगाकर श्रद्धांजलि देते हैं। कई जगहों पर उनकी याद में विभिन्न तरीकों से अनेक कार्यक्रम होते हैं। डॉ. अम्बेडकर के विचारों को याद करने के अलावा उनकी संघर्ष गाथा भी बताई जाती है। बौद्ध ग्रंथ महापरिनिवाण सुत्त के अनुसार, 80 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध की मृत्यु को प्रारंभिक महापरिनिर्वाण माना जाता है। डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म का पालन किया। उन्होंने घोषणा की कि- मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा और बौद्ध धर्म अपनाने के दो महीने से भी कम समय बाद 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया। डॉ. अंबेडकर की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे एक सम्मानित बौद्ध नेता के रूप में जाने जाते हैं। इस प्रकार, ऐसा कहा जाता है कि 6 दिसंबर को समाज में बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर के अतुल्य योगदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।

जाने क्या था डॉ. अंबेडकर का असल नाम ?

डॉ. अंबेडकर के पिताजी का नाम रामजी मालोजी सकपाक था और माताजी का नाम भीमबाई था। डॉ.अंबेडकर का नाम भीमराव अंबेडकर माता-पिता और गाँव के नाम पर पड़ा। क्योंकि गाँव का नाम आम्बेडकर था। डॉ. अंबेडकर का सही नाम अंबेवाडेकर था। यही नाम उनके पिता ने स्कूल में दर्ज भी कराया था। लेकिन उनके एक अध्यापक ने उनका नाम बदलकर ‘अंबेडकर’ रख दिया। इस तरह विद्यालय रिकॉर्ड में उनका नाम अंबेडकर दर्ज हुआ। डॉ. भीमराव अंबेडकर सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था। उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मणिकांचन मेल था। उनकी यही अद्वितीय प्रतिभा अनुकरणीय है। डॉ. अम्बेडकर विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व के धनी थे। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण कामना में उत्सर्ग कर दिया। भारत के दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. अंबेडकर का जीवन संकल्प था।

डॉ. अम्बेडकर और भारतीय समाज में उनका योगदान

14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक दलित परिवार में जन्मे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर को अछूत होने के कारण बहुत उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और उन्हें सामाजिक-आर्थिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। हालाँकि दलितों को स्कूल जाने की अनुमति थी, लेकिन अंबेडकर और अन्य अछूत बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था और शिक्षकों द्वारा उन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। उन्हें न तो कक्षा के अंदर बैठने की अनुमति थी और न ही कक्षा में रखे बर्तन से पानी छूने या पीने की। ऊँची जाति का एक व्यक्ति ऊँचाई से पानी डालता था। आमतौर पर स्कूल का चपरासी युवा डॉ.अंबेडकर को पानी पिला देता था, लेकिन अगर वह मौजूद नहीं होता, तो डॉ.अंबेडकर को बिना पानी के रहना पड़ता था। उन्हें एक बोरी या दरी पर बैठना पड़ता था, जिसे उन्हें हर दिन अपने साथ घर से लाना पड़ता था। इन सभी घटनाओं और कई अन्य अपमानजनक घटनाओं ने डॉ.अंबेडकर के दिमाग पर गहरा असर डाला था। बचपन में डॉ. अम्बेडकर होनहार और प्रतिभाशाली छात्र थे और परीक्षा पास करने वाले तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले एकमात्र छात्र थे। मैट्रिकुलेशन के बाद उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय के अंतर्गत एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया, कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर किया और फिर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बार कोर्स पूरा किया। बाद में डॉ. अंबेडकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, विचारक और राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाई, जिनके तरकश में कई तीर थे। डॉ. अम्बेडकर ने जवाहरलाल नेहरू और गांधी के साथ मिलकर समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, उन्होंने दलित बौद्ध अभियान का नेतृत्व किया और उनके समान अधिकारों और बेहतरी के लिए लगातार काम किया।

 

 

भारत के विकास में डॉ. बी.आर. अंबेडकर का योगदान

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर वंचितों को सशक्त बनाने, उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने और उनकी चिंताओं को आवाज़ देने के लिए जाने जाते हैं। देश के विकास में डॉ. अम्बेडकर का महत्वपूर्ण योगदान है। अस्पृश्यता के खिलाफ़ डॉ.बीआर अंबेडकर की लड़ाई भारत के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान है। छुआछूत का बीज डॉ. अम्बेडकर के अंदर तब बोया गया जब उन्होंने स्कूल के दिनों में दलित होने के कारण भेदभाव का सामना किया, अछूतों को शिक्षित करने और उनकी समस्याओं का समाधान करने के प्रयास में अम्बेडकर ने 1924 में मुंबई में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की,डॉ.अम्बेडकर ने यह सुनिश्चित करने के लिए लड़ाई लड़ी कि दलितों को भी उच्च जातियों के समान जल आपूर्ति प्राप्त हो सके, 25 सितंबर 1932 को डॉ.अंबेडकर ने दलित वर्गों के लिए विधानमंडल में आरक्षित सीटें देने के लिए पूना समझौते पर हस्ताक्षर किए और उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति नाम दिया,डॉ. अम्बेडकर हिंदू जाति व्यवस्था से घृणा करते थे और अपनी पुस्तक ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में इसके खिलाफ कठोर लेख लिखे थे, डॉ. अम्बेडकर ने जीवन भर अस्पृश्यता प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी। भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, 1990 में बाबासाहेब डॉ.अंबेडकर को मरणोपरांत दिया गया था। महाराष्ट्र सरकार ने संविधान के प्रमुख निर्माता की 67वीं महापरिनिर्वाण दिवस पर घोषणा की कि मुंबई में इंदु मिल संपत्ति में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर को समर्पित विश्व स्तरीय स्मारक का निर्माण जल्द ही पूरा हो जाएगा।

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