राजेश कोठारी
करेड़ा। जैन साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा कि गुरु भवसागर पार पाने में नाविक का दायित्व निभाते हैं। वे हितचिंतक, मार्गदर्शक, विकास प्रेरक एवं विघ्न-विनाशक होते हैं। उनका जीवन शिष्य के लिए आदर्श बनता है। उनकी सीख जीवन का उद्देश्य बनती है। अनुभवी आचार्यों ने भी गुरु की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए लिखा है- गुरु यानी वह अर्हता, जो अंधकार में दीप, समुद्र में द्वीप, मरुस्थल में वृक्ष और हिमखंडों के बीच अग्नि की उपमा को सार्थकता प्रदान कर सके।
साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा ने कहा – गुरु पूर्णिमा के चांद जैसा और शिष्य आषाढ़ी बादल जैसा। गुरु के पास चांद की तरह जीए गए अनुभवों का अक्षय कोष होता है इसीलिए इस दिन गुरु की पूजा की जाती है इसलिए इसे ‘गुरु पूजा दिवस’ भी कहा जाता है।
साध्वी चन्दन बाला ने कहा भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत ऊंचा और आदर का स्थान है। माता-पिता के समान गुरु का भी बहुत आदर रहा है और वे शुरू से ही पूज्य समझे जाते रहे हैं। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान समझकर सम्मान करने की पद्धति पुरातन है। ‘आचार्य देवो भव:’ का स्पष्ट अनुदेश भारत की पुनीत परंपरा है और वेद आदि ग्रंथों का अनुपम आदेश है।
साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा ऐसी मान्यता है कि हरिशयनी एकादशी के बाद सभी देवी-देवता 4 मास के लिए सो जाते हैं इसलिए हरिशयनी एकादशी के बाद पथ-प्रदर्शक गुरु की शरण में जाना आवश्यक हो जाता है। परमात्मा की ओर संकेत करने वाले गुरु ही होते हैं। गुरु एक तरह का बांध है, जो परमात्मा और संसार के बीच तथा शिष्य और भगवान के बीच सेतु का काम करते हैं । इस अवसर पर ताल, देवगढ़, भीम, ब्यावर, सहित आस पास के धर्म प्रेमी उपस्थित थे ।