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वक्फ संशोधन अधिनियम पर अंजुमन कमेटी के सचिव बिफरे, बोले- ‘यह मुसलमानों को टारगेट करने की साज़िश

*मुसलमानों को लगातार निशाना बनाने की साजिश
*वक्फ बोर्ड में भी केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही होने चाहिए
*अन्याय के खिलाफ खड़ा होना हमारा इतिहास रहा

(हरिप्रसाद शर्मा)

अजमेर/स्मार्ट हलचल|वक्फ (संशोधन) अधिनियम-2025 को लेकर दरगाह शरीफ अजमेर की खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान खुद्दामे ख्वाजा साहब द्वारा एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई। इस दौरान अंजुमन के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने इस कानून को लेकर अपनी स्पष्ट राय रखते हुए कहा कि यह मुसलमानों को लगातार निशाना बनाने की साजिश है और इसे पूरी तरह से गलत ठहराया।

सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि कुछ लोग इस कानून के पक्ष में चाटुकारिता कर रहे हैं, जो समाज के लिए घातक है। उन्होंने साफ किया कि अंजुमन इस कानून का विरोध करता है और इसे तुरंत रद्द करने की मांग करता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को खारिज करने की अपील करते हुए कहा कि आवश्यकता पड़ी तो अंजुमन आंदोलन भी करेगा।

उन्होंने सवाल उठाया कि अगर वक्फ से लाभ लेने के लिए धार्मिक रूप से पालन करने वाला मुसलमान होना जरूरी है, तो क्या उनके धार्मिक आचरण पर निगरानी रखने के लिए चेंबर में कैमरे लगाए जाएंगे? उन्होंने कहा कि “वक्फ बाय यूजर” को खत्म कर दिया गया है और सीमितता अधिनियम लागू किया जा रहा है, जिससे किराएदार ही मालिक बन सकता है, जो पूरी तरह अनुचित है।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार गैर-मुसलमानों को वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में शामिल करना चाहती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (धार्मिक आधार पर भेदभाव का निषेध), अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन) और अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक स्वतंत्रता) का सीधा उल्लंघन है।उन्होंने सवाल उठाया कि जब हिंदुओं के लिए एंडोमेंट बोर्ड, सिखों के लिए प्रबंधन कमेटी और जैन समाज के लिए उनके स्वयं के बोर्ड हैं, तो वक्फ बोर्ड में भी केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही होने चाहिए।

सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि जब संसद में यह अधिनियम पारित हुआ, तो ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए गए, जिससे स्पष्ट होता है कि यह कानून बीजेपी के सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि आप हमारे हितैषी कब से हो गए? पिछले 11 वर्षों में तीन तलाक, लव जिहाद, सीएए, यूसीसी, वक्फ एक्ट, मॉब लिंचिंग, यूएपीए, मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और दरगाहों को निशाना बनाया जा रहा है। कोई यह न समझे कि मुसलमान इससे अछूते रहेंगे। हमें अपनी नस्लों को इसका जवाब देना होगा।

उन्होंने कहा कि उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी देखा है, जिसने तीन तलाक और बाबरी मस्जिद जैसे मामलों में ठोस नेतृत्व नहीं दिया। अब जरूरत है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रवैया आक्रामक हो, जिसका मतलब हिंसा कतई नहीं बल्कि वह सभी मुस्लिम समुदायों के प्रभावशाली और सक्रिय लोगों को शामिल कर एकमत से निर्णय ले। उन्होंने कहा कि केवल मंच की सजावट के लिए बैठे लोगों से कोई लाभ नहीं होगा, बिना बलिदान दिए और बिना सड़कों पर उतरे बात नहीं बनेगी। उन्होंने कहा कि हम देश के संविधान और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोग हैं। हमारे सामने बद्र, हुनैन, खैबर, खंदक और करबला की मिसालें हैं। हम अली (अ.स.) की बहादुरी और हुसैन (अ.स.) की सोच के कायल हैं, और अन्याय के खिलाफ खड़ा होना हमारा इतिहास रहा है।

उन्होंने मांग की कि इस मामले पर निर्णय संविधान पीठ से लिया जाए। उन्होंने कहा कि यह एक लंबी लड़ाई है, जिसे धैर्य और जरूरत के मुताबिक लड़ा जाएगा। उन्होंने किसान आंदोलन को एक उदाहरण बताते हुए कहा कि इसी तरह का संघर्ष करना होगा। प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने शेरवानी उतारकर बैठने को प्रतीकात्मक इशारा बताते हुए कहा कि यह संदेश है कि अब नेतृत्व को बदलाव की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि 1935 की वक्फ जेपीसी (काजमी बिल) को अंजुमन ने प्रस्ताव पास कर खारिज किया था, वहीं 2002 की जेपीसी फॉर वक्फ में अंजुमन ने भाग लिया था। अगस्त 2024 के वक्फ बिल को भी अंजुमन ने प्रेस वार्ता कर अस्वीकार किया था। प्रेस वार्ता में अंजुमन के सदर गुलाम किबरिया सहित अन्य पदाधिकारी भी मौजूद थे, जिन्होंने इस मुद्दे पर एकजुटता जताते हुए कानून का विरोध किया। अंजुमन का यह बयान वक्फ अधिनियम के खिलाफ एक मजबूत रुख को दर्शाता है।

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