पोटलां ।समुद्र, झीलों, नदियों और बांधों में पाए जाने वाले विरासत में मिले मगरमच्छों की बदौलत से भीलवाड़ा जिले में बहुतायत संख्या में मगरमच्छों के कारण बहुचर्चित पोटलां तालाब से विलुप्त होते मगरमच्छ अब शर्मशार होने का कारण बन रहे हैं राजसमंद, चित्तौड़गढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा यानी कि बात की जाए तो मेवाड़ के चारों जिलों में कहीं भी इतनी तादाद में मगरमच्छ नहीं थी जितने मगरमच्छ पोटलां तालाब में हुआ करते थे | आप पोटलां तालाब की पाल पर गुमने निकलो तो आपको तालाब में बने टापुओं पर अब यदा कदा मगरमच्छों को देखने का मौका मिल सकता है तालाब के बीचो-बीच विरासत कालीन उदयपुर स्टेट के समय का गढ़ है यहां गढ़ में महाराजा वंशज श्री जवान सिंह जी का किला हुआ करता था जिसमें जवान सिंह जी निवास करते थे और उनकी सुरक्षा के लिए गढ़ अवधि में चारों तरफ खाई बनी हुई थी जिसमें मगरमच्छ उनकी सुरक्षा के लिए थे अब खाई भी मिट्टी से भर गई है और उस गढ़ में मगरमच्छों की अब गुफाएं बनी हुई है गुफाओं में मादा मगरमच्छ अंडे देती हैं इनके अंडे मुर्गी के अंडों से तीन-चार गुना ज्यादा बड़े होते हैं यह अंडे देने के बाद उन्हें गुफा में ही मिट्टी में दबा देती है और बच्चे होने की अवधि में अंडों को निकाल कर मादा मगरमच्छ द्वारा फोड़ दिया जाता है | मगरमच्छों की देखने, सुनने, और सूंघने की क्षमता जबरदस्त होती है इनकी पाचनशक्ति इतनी जोरदार होती है कि हड्डियों तक को आसानी से पचा लेंते हैं तालाब से जल दोहन के कारण इनके जीवन पर बन आती है तालाब खाली हो तब यह अपनी भूख मिटाने के लिए गुफाओं से अधिकतर रात के समय में बाहर निकलते हैं तालाब सूखने के बाद ही यह अपना गुजारा तालाब की गीली मिट्टी खाकर करते हैं गुफा से आते जाते समय श्वानों से सामना होने के कारण इनकी जान खतरें में पड़ जाती है श्वान इनका भक्षण करने में तनिक भी देर नहीं करते हैं ऐसी स्थिति में संरक्षण के अभाव में इनका भक्षण होना लाजिमी है ग्रामीणों ने तो यहां तक अंदेशा जताया है कि तालाब सूखने पर इनकी तस्करी तक हो जाती है इनकी सूंघने की क्षमता के कारण यह पानी की दिशा का पता लगा लेते हैं जिसके कारण यह पानी की दिशा में निकल पड़ते हैं यहां से पलायन होने से आस-पास के मातृकुंडिया, राईथलियास जैसे बांध व अन्य कई तालाबों में मगरमच्छों के होने की पुष्टि हुई थी जबकि पोटलां तालाब के अलावा और कहीं मगरमच्छ नहीं हुआ करते थे पोटलां के ग्रामीण मगरमच्छों के प्रति काफी उदार भाव रखते हैं और अपने कस्बे की धरोहर बताते हैं और यही वजह है कि ग्रामीणों ने भी कभी नुकसान पहुंचाने का प्रयास नहीं किया है तालाब से मगरमच्छ बाहर निकलने पर इसकी सुचना ग्रामीणों को देकर इकठ्ठा होकर इनको पकड़कर वापस तालाब में छोड़ देते हैं मगरमच्छों के प्रति युवाओं की ऐसी दिवानगी है कि युवा मोबाइल कवर और वालपेपर पर इनकी फोटो लगाते देखें गए हैं खेती किसानी करने वाले बुजुर्गों से लेकर वर्तमान के 25 से 30 वर्षीय युवाओं का बचपन अधिकतर समय इस तालाब में नहा कर निकला है स्कूल से छूटने के बाद युवा घंटों इस तालाब नहाते थे और कई बार तालाब को एक छोर से दूसरे छोर पार भी करते थे पर कभी मगरमच्छों ने किसी व्यक्ति को नुक्सान नहीं पहुंचाया पर आज से 11-12 वर्ष पुर्व एक 15 वर्षीय लड़का तालाब में नहाने गया इसी दौरान वह एक छोर से दूसरे छोर तैरकर तालाब को पार कर रहा था और उसने 2बार पार भी कर लिया था तिसरी बार लड़का तालाब पार करने के दौरान तालाब के बिच में पहुंचा था कि संयोगवश लड़का मगरमच्छ की चपेट में आ गया एक साथी लड़का जो साथ नहाने आया वो किनारे खड़ा था घटनाक्रम की जानकारी ग्रामीणों को दी गई थी ग्रामीणों ने प्रशासन को सुचना दी प्रशासन अपनी व्यवस्था से पहुंचा और ग्रामीणों की मदद से जाल डालकर बच्चे को छुड़ा लिया गया पर तब तक मौत हो गई थी तब से कई लोगों ने तालाब में नहाना छोड़ दिया है ग्रामीणों बताते हैं कि सरकार और विभागों की तरफ से इस क्षेत्र में मगरमच्छों के भक्षण को रोकने एवं संरक्षण, सहायता हेतु उचित कदम नही उठाया है और ना ही क्षेत्र सहित यहां से चूने जाने वाले जनप्रतिनिधियों द्वारा इस तरफ कदम उठाकर इनके भक्षण को रोककर संरक्षण के प्रति गंभीरतापूर्वक नजर आएं हैं कभी यहां सैकड़ों की संख्या में मगरमच्छों की तादाद हुआ करती थी पर अब निरंतर संख्या घटती जा रही है और घटकर नाम मात्र की रह गई है एवं मगरमच्छ अपनी विलुप्तता की ओर है तालाब में मगरमच्छ होने की सूचना के कई सावधानी बोर्ड लगा रखे थे पर अब अन्य विभागों के विवरण बोर्ड बन गए हैं ।
फोटो कैप्शन -: चीनू तिवारी