Homeराजस्थानउदयपुर-राजसमन्दअरावली ग्रीन वाॅल प्रोजेक्ट और नेचुरल क्लाइमेट सोल्यूशन पर हुई विशेष कार्यशाला

अरावली ग्रीन वाॅल प्रोजेक्ट और नेचुरल क्लाइमेट सोल्यूशन पर हुई विशेष कार्यशाला

रिटायर्ड पीसीसीएफ डाॅ. डीएन पाण्डे बोले- अरावली हमारा सुनहरा भविष्य, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता इकोसिस्टम को बचाने की हैे

उदयपुर, 6 अप्रेल। स्मार्ट हलचल/राजस्थान के रिटायर्ड पीसीसीएफ और वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. डीएन पाण्डे ने कहा है कि जैव विविधता से समृद्ध राजस्थान के लिए अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट हमारे सुखद भविष्य की महत्वाकांक्षी परियोजना है। इस पर राज्य सरकार भी संवेदनशील है और प्रकृति और प्राकृतिक तंत्रों के संरक्षण की बड़ी शुरूआत है। प्रोजेक्ट में पौधरोपण के साथ हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता इकोसिस्टम को बचाने की हो ताकि और बदतर स्थितियां पैदा न होने पाए।

डाॅ. पाण्डे उदयपुर के अरण्य भवन सभागार में ग्रीन पीपल सोसायटी और वन विभाग राजस्थान के तत्वाधान में आयोजित हुई अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट और नेचुरल क्लाइमेट सॉल्यूशन पर हुई विशेष कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।

इस मौके पर उन्होंने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से इस प्रोजेक्ट के विविध बिंदुओं के साथ-साथ राजस्थान की अन्य राज्यों की तुलना में स्थिति, दक्षिण राजस्थान की समृद्ध जैव विविधता, इस जैव विविधता को बचाने के लिए चुनौतियां और हमारे दायित्वों के बारे में चर्चा की। इसके साथ ही नेचुरल क्लाइमेट सॉल्यूशन पर मौजूद विशेषज्ञों के साथ विचार-मंथन किया। उन्होंने इस संपूर्ण कार्य में सरकार के साथ-साथ राजस्थान के हर एक व्यक्ति का दायित्व होने की बात भी कही। उन्होंने बताया कि देश के 6.6 लाख गांवों में 15 लाख से अधिक तालाब हैं जो हमारे इको सिस्टम को जीवनदान दे रहे हैं। उन्होंने नेचुरल क्लाइमेट सोल्युशन की दृष्टि से इन जल स्रोतों के संरक्षण की आवश्यकता भी प्रतिपादित की।

आरंभ में ग्रीन पीपल सोसाइटी के अध्यक्ष एवं रिटायर्ड सीसीएफ राहुल भटनागर ने मुख्य वक्ता डाॅ. पांडे का स्वागत किया और सोसायटी द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। इस मौके पर सोसायटी उपाध्यक्ष व रिटायर्ड आईएएस विक्रमसिंह सहित सोसायटी सदस्य और संभागियों ने विविध विषयों पर विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन सचिव व रिटायर्ड एसीएफ डाॅ. सतीश कुमार शर्मा ने किया जबकि आभार प्रदर्शन की रस्म शरद श्रीवास्तव ने अदा की।

अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट:

डाॅ. पाण्डे ने बताया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट अफ्रीका की ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना से प्रेरित है। इसका उद्देश्य उन पहाड़ियों पर हरित आवरण को बहाल करना है जो थार से दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत तक रेगिस्तान जैसी स्थितियों के विस्तार को रोकने वाली एकमात्र बाधा है। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य वर्ष 2027 तक चार राज्यों हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में लगभग 1.15 मिलियन हेक्टेयर वनों को बहाल करना है।

आरामपुरा जंगल जैसा नया जंगल विकसित करने में लगेंगे 1 हजार साल:

डाॅ. पांडे ने दक्षिण राजस्थान में वन संरक्षण की संस्कृति के तथ्य को उजागर किया और संतुष्टि जताई और कहा कि हमारे प्रतापगढ़ में आरामपुरा क्षेत्र जैसे सघन जंगल को अगर खत्म करना है तो कुछ ही साल लगेंगे परंतु इस प्रकार को जंगल को नए सिरे से तैयार करना हो तो कम से कम एक हजार साल लगेंगे। उन्होंने मौजूद पर्यावरणप्रेमियों और विशेषज्ञों से आह्वान किया कि आने वाली पीढ़ी के स्वर्णिम भविष्य के लिए उपलब्ध जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में प्रयास करना बेहद जरूरी है।

राजस्थान की सबसे क्लिन लेक है ‘बड़ी झील’:

डाॅ. पांडे ने कहा कि झीलों के शहर में स्थित बड़ी झील राजस्थान की सबसे क्लीन लेक है क्योंकि इसके चारों तरफ जंगल है और इसमें किसी प्रकार का सीवरेज नहीं आ रहा। उन्होंने चिंता जताई कि इसके आसपास होटल्स का निर्माण हो रहा है और यदि इसमें सीवरेज आया तो इसका विनाश कोई न रोक पायेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अर्बन फाॅरेस्ट का संरक्षण-संवर्धन जरूरी है क्योंकि अर्बन फॉरेस्ट के बिना कोई भी सिटी स्मार्ट सिटी नहीं बन सकती।

इन विषयों पर भी डाला प्रकाश:

डाॅ. पांडे ने विविध तथ्यों को उद्घाटित करते हुए बताया कि भारत वृक्ष प्रजातियों के लिए कई खतरों का हॉटस्पॉट है और इस प्रकार कार्बन, जैव विविधता और आजीविका खतरे में हैं। उन्होंने बताया कि भारत में, 2010-2011 में मैप किए गए बड़े पेड़ों में से लगभग 11 प्रतिशत 2018 तक गायब हो गए थे। इसके अलावा, 2018-2022 की अवधि के दौरान, 5 मिलियन से अधिक बड़े खेत के पेड़ भी गायब हो गए हैं। उन्होंने बताया कि नेचुरल क्लाइमेट सोल्यूशन की दृष्टि से राजस्थान 10 टॉप राज्यों में आता है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में घास मैदानों की वनस्पति की दृष्टि से देखें तो 188 वंश की 375 प्रजातियां विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में सबसे ज्यादा क्रॉप लैंड्स और ग्रास लैंड्स में संभावनाएं हैं परंतु लेंटाना और जुलिफ्लोरा हमारे लिए बड़ी चुनौती है।

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