जे पी शर्मा
बनेड़ा -अरावली पर्वतमाला की संरक्षणात्मक परिभाषा को उसके मूल, व्यापक एवं पारिस्थितिक स्वरूप में यथावत बनाए रखने की मांग को लेकर पर्यावरण संरक्षण मंच की और से सरदारनगर में आयोजित शिविर में शिविर प्रभारी एवं विकास अधिकारी धर्मपाल परसोया एवं तहसीलदार संतोष सुनारीवाल को ज्ञापन सौंपा
अरावली पर्वतमाला राजस्थान की पर्यावरणीय सुरक्षा, भू-जल पुनर्भरण, जलागम क्षेत्रों के संरक्षण एवं जैव विविधता के लिए रीढ़ के समान है। भीलवाड़ा जिला स्वयं अरावली क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां पर्वत, वन क्षेत्र, जलागम एवं स्थानीय पारिस्थितिकी सीधे तौर पर आमजन के जीवन और आजीविका को प्रभावित करती है।
यदि अरावली की परिभाषा को केवल सीमित, राजस्व या ऊंचाई आधारित दृष्टिकोण से संकुचित किया गया, तो इससे अरावली के प्राकृतिक संतुलन एवं पर्यावरणीय संरचना को गंभीर क्षति पहुंचने की आशंका है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI), माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा अरावली को एक समग्र भू-आकृतिक एवं पारिस्थितिक पर्वत प्रणाली के रूप में मान्यता दी गई है, जिसमें वन, गैर-वन, चारागाह, राजस्व एवं निजी भूमि पर स्थित पहाड़, रिज एवं जलागम क्षेत्र सम्मिलित हैं। इसी दृष्टिकोण को अपनाते हुए संरक्षणात्मक परिभाषा को बनाए रखना जनहित में आवश्यक है।यह दृष्टिकोण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986वन संरक्षण अधिनियम 1980 वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972संविधान के अनुच्छेद 48 A एव 51A (2)तथा भारत की अन्तराष्ट्रीय पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओ के विपरीत है। ज्ञापन देने वालों में शिवा माली भवर साहु रामप्रसाद बद्रीलाल कालु तेली रामस्वरूप मोहन लाल आदि जने उपस्थित थे।


