“जयपुर से 50 किमी दूर आसलपुर — माता आशापुरा प्रकट्य स्थल पर 1383वां प्रागट्योत्सव धूमधाम से सम्पन्न”
“देवी ने फाड़ा था पर्वत — सांभर नरेश माणकराव को मिले प्रथम दर्शन, आज भी गूँजती आस्था”
“शारदीय नवरात्रि पर भक्तों का सैलाब — लापसी-चावल का भोग और 1100 कन्याओं का पूजन”
अजय सिंह (चिंटू)
जयपुर, आसलपुर -स्मार्ट हलचल|राजधानी जयपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर आसलपुर गांव स्थित आशापुरा माता मंदिर में इस वर्ष शारदीय नवरात्रि के अवसर पर माता आशापुरा के 1383वें प्रागट्योत्सव की धूम रही। पहाड़ी की गुफा में विराजमान माता आशापुरा तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को 400 से अधिक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। माना जाता है कि यहीं विक्रम संवत 699 में भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन देवी पर्वत को चीरकर प्रकट हुई थीं।
पुजारी मोहित शर्मा के अनुसार, देवी ने सबसे पहले सांभर के राजा माणकराव को दर्शन दिए और मंदिर निर्माण का आदेश दिया। तभी से भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को यहां प्रागट्योत्सव मनाया जाता है। इस अवसर पर देशभर से हजारों भक्त यहां पहुंचते हैं।
समिति संरक्षक महावीर सिंह राव का कहना है कि राजस्थान में आशापुरा माताजी का यह प्रथम प्रकट्य स्थल माना जाता है। चौहान वंश के कई गोत्र, साथ ही मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज, जाट, गुर्जर और माली समाज सहित अनेकों जाति-समुदाय की कुलदेवी के रूप में माता की पूजा की जाती है। यहां देवी के सात्विक स्वरूप की पूजा होती है और माताजी को केवल मिष्ठान, चावल और लापसी का भोग लगाया जाता है।
मंदिर सेवा समिति अध्यक्ष शिवरतन सोनी ने बताया कि नवरात्रि और प्रागट्योत्सव पर देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भोजन व रहने की विशेष व्यवस्था रहती है। व्रतधारियों के लिए फलाहार की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है।
इस वर्ष भी नवरात्रि पर 1100 कन्याओं का पूजन कर भव्य भंडारे का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण कर माता आशापुरा से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद मांगा।


