मुकेश खटीक
मंगरोप।पवित्र माह कार्तिक के प्रारंभ होते ही गांव में धार्मिक आस्था का माहौल छा गया है। महिलाओं और बालिकाओं ने स्नान,उपवास व पूजा-अर्चना की परंपरा को निभाना शुरू कर दिया है।मान्यता है कि कार्तिक स्नान करने से जीवन में पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।इसी आस्था के चलते प्रतिदिन तड़के महिलाएं स्नान-ध्यान कर चारभुजा नाथ एवं सांवरिया सेठ के दर्शन करने जाती हैं।गांव की बालिका तनीषा खटीक ने बताया कि कार्तिक माह में पांच दिन तक वास रखा जाता है।इस दौरान केवल फलाहार और माल कांगनी के आटे से बनी रोटी का सेवन किया जाता है।कार्तिक पूर्णिमा के दिन अंतिम स्नान और पूजा के लिए श्रद्धालु पुष्कर तीर्थ जाते हैं।इस दौरान शकुन्तला देवी,टीना देवी,सुमन देवी,सम्पती देवी,वन्दना,परी,भूमिका,वंशिका,गुंजन,परी,अंतिमा,दीपिका,माही आदि मौजूद थी।
स्थानीय बुजुर्गों ने बताया कि करीब दो दशक पूर्व तक बनास नदी के किनारे प्रतिदिन सैकड़ों महिलाएं सुबह स्नान के लिए पहुंचती थीं।बनास नदी के निर्मल जल में कार्तिक स्नान करना पुण्य का कार्य माना जाता था।लेकिन पिछले 26 वर्षों से नदी के जल के दूषित होने के कारण ग्रामीण अब गांव के ट्यूबवेलों व अन्य जल स्रोतों पर निर्भर हो गए हैं।ग्रामीणों का कहना है कि पहले बनास नदी को ‘छोटी गंगा’ कहा जाता था,लेकिन औद्योगिक अपशिष्ट और केमिकल युक्त गंदे पानी के कारण अब श्रद्धालु वहां स्नान करने से कतराने लगे हैं। इसके बावजूद आस्था बरकरार है,महिलाएं स्नान के लिए वैकल्पिक जल स्रोतों का उपयोग कर कार्तिक स्नान की परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि बनास नदी को फिर से स्वच्छ और प्रवाहित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि आने वाले वर्षों में श्रद्धालु पुनः नदी में स्नान कर सकें और यह धार्मिक परंपरा अपने मूल स्वरूप में लौट सके।


