रामभक्तों की आस्था ने रचा इतिहास!
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
अयोध्या।स्मार्ट हलचल|कभी केवट ने प्रभु श्रीराम को गंगा पार कराने के लिए सिर्फ एक शर्त रखी थी—सेवा का अवसर। वही भाव आज करोड़ों भारतीयों के मन में जीवित है। देशभर के रामभक्तों ने प्रेम, विश्वास और समर्पण से भरे तीन हजार करोड़ रुपये प्रभु श्रीराम के चरणों में अर्पित कर दिए हैं। यह केवल धन नहीं, बल्कि आस्था की वह गंगा है जो अयोध्या की धरा पर अनवरत बह रही है।
राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने मीडिया को बताया कि रामलला के मंदिर निर्माण में देश के कोने-कोने से दान आया है—किसी ने मेहनत की कमाई से चांदी का सिक्का भेजा, किसी ने अपनी बचत की पुड़िया, तो किसी ने अपने उद्योगों से योगदान दिया। इस अनमोल भावना को सम्मान देने के लिए समिति ने अब निर्णय लिया है कि 2022 के बाद जिन्होंने भी योगदान दिया है, उन्हें भी भव्य ध्वजारोहण समारोह में आमंत्रित किया जाएगा।
उन्होंने कहा“यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का उत्सव है। समरसता, सहयोग और श्रद्धा की वह बुनावट, जिसमें हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के लोग शामिल हैं।”
समिति की योजना है कि छह हजार से अधिक श्रद्धालु इस ऐतिहासिक समारोह में शामिल होंगे। उन सभी को भी सम्मान मिलेगा जिन्होंने किसी न किसी रूप में इस दिव्य कार्य में भागीदारी निभाई है। रामलला के लिए ईंट उठाने वाले मजदूर से लेकर पत्थर तराशने वाले शिल्पकार तक—हर हाथ का सम्मान होगा, हर हृदय की गूंज सुनाई देगी।
25 नवंबर के बाद मंदिर परिसर में होने वाले इस वृहद आयोजन में दानवीरों, कंपनियों, सप्लायर्स और कार्यकर्ताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। यह दिन केवल समारोह का नहीं, बल्कि कृतज्ञता का पर्व होगा।
मिश्र ने बताया कि मंदिर निर्माण पर अब तक लगभग 1500 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और कुल लागत 1800 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। मगर जो बात सबसे विशेष है—भक्तों की भावना अब भी उसी वेग से प्रवाहित हो रही है जैसे सरयू की लहरें।
उन्होंने कहा कि जब देश के कोने-कोने से लोग “जय श्रीराम” के उद्घोष के साथ अपना अंशदान भेजते हैं, तो लगता है जैसे भारत का हर कण, हर प्राण राममय हो उठा है। यह मंदिर केवल पत्थरों का नहीं, बल्कि तीन हजार करोड़ भावनाओं का मंदिर है।
अयोध्या आज फिर साक्षी बनने जा रही है एक ऐसे युग की, जहाँ राम केवल मर्यादा के प्रतीक नहीं, बल्कि देश की एकता के ध्वज बन चुके हैं। आने वाले ध्वजारोहण समारोह में जब मंदिर की ऊँचाइयों पर भगवा ध्वज लहराएगा, तब हर हृदय से निकलेगा-“राम मेरे प्राण हैं, मेरी पहचान हैं।”


