Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगअयोध्या वासियों को कोसने के पहले वहां की कुछ हकीकत भी जान...

अयोध्या वासियों को कोसने के पहले वहां की कुछ हकीकत भी जान लीजिये,Ayodhya Ram Mandir

अयोध्या वासियों को कोसने के पहले वहां की कुछ हकीकत भी जान लीजिये

अशोक भाटिया

स्मार्ट हलचल।अयोध्या लोकसभा सीट भाजपा के हाथ से निकल जाने का जितना मलाल पार्टी को है, उससे ज्यादा ये लोगों के बीच चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। सोशल मीडिया पर लगातार इस बारे में कोई न कोई कमेंट या बहस देखने को मिल जा रही है। लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं। राम मंदिर बना दिया गया। सालों से तंबू में रखे गए भगवान राम को भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया। फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या कर दिया गया। मंडल भी अयोध्या बना दिया गया। फैजाबाद रेलवे स्टेशन अयोध्या छावनी बना दिया गया। अयोध्या स्टेशन पर यात्रियों के ठहरने के बेहतरीन इंतजाम किए गए। अयोध्या शहर का कायाकल्प भी किया गया। चौक चौराहे सजाए गए। छोटी मोटी दुकानों को तोड़, सलीके से व्यावसायिक कांप्लेक्स तमीर कर दिए गए। मंदिर बनने के बाद रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु भी अयोध्या आने लगे। शहर के आस पास बहुत सारे ओयो रूम और दूसरे होटल भी खुल गए। फिर भी आने वालों को जगह मिलने में दिक्कतें आ रही थी। उनकी संख्या जो इतनी ज्यादा थी कि सबके लिए व्यवस्था हो पाना कठिन था। इस सब से लोगों में खुशी थी। साफ दिख रहा है कि देश भर में अयोध्या जी और भगवान राम के प्रति श्रद्धा है।
फिर राम मंदिर वाली इस सीट से भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह कैसे हार गए। भाजपा के कार्यकाल में ही मंदिर के पक्ष में फैसला आया। वहां भव्य मंदिर तामीर कराया गया। और उससे भी भव्य समारोह आयोजित कर भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की गई। वजहें खोजने पर अलग-अलग राय मिल रही है। लेकिन इस पर ज्यादातर लोग सहमत हैं कि ये पूरी लोकसभा सीट सिर्फ अवधपुरी या अयोध्या या फिर राम मंदिर तो नहीं थी। इस सीट का नाम अभी भी फैजाबाद है। यहां 22 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। साथ ही स्वरूप की बात की जाय तो इसे ग्रामीण क्षेत्र वाली सीट माना जा सकता है। क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण ही है।
ये वो आबादी है जो बिल्कुल वैसी ही है जैसा दूसरे किसी इलाके के रहने वाले मतदाता। उनकी जातियां बंटी हुई है। यहां जातियों का समीकरण उत्तरप्रदेश की बहुत सारी सीटों जैसा ही है। कुल मतदाताओं का करीब 21-22 फीसदी हिस्सा दलित वोटरों का है। 12 से 15 फीसदी पिछड़े और तकरीबन 20 फीसदी अल्पसंख्यक। कहने की जरुरत नहीं है कि ये रेशियो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को बहुत अच्छे से सूट करता है। ऊपर से एसपी ने यहां से दलित उम्मीदवार भी उतार दिया।
फिर पहले कैसे यहां से भाजपा जीतती रही। इस सवाल का जवाब पर लल्लू सिंह की उम्मीदवारी में खोजा रहा है। वे खुद भी 2014 और 2019 में यहां से सांसद रह चुके हैं। भाजपा इस सीट को पहले भी दो बार जीत चुकी है। यानी ये सीट 4 बार भाजपा के कब्जे में रही है। कहा जा रहा है कि अब वे मतदाताओं से कनेक्ट करने की बजाय अपने समर्थकों को 400 सीटें लाकर संविधान बदलने की बात कहते सुने गए। ऐसा एक वीडियो सोशल हो रहा है। इसका भी असर हुआ होगा। लेकिन मूल बात है कि अयोध्या के लोगों को मंदिर की व्यवस्था से परेशानियों से जूझना पड़ा है।
मंदिर में दर्शन की बात की जाय तो चुनाव तक मंदिर में लगातार वीआईपी दर्शनार्थियों का आना लगा रहा। इस दौरान प्रशासन सुरक्षा के नाम पर ऐसा इंतजाम करता रहा है कि लोगों का मंदिर के आस पास जाना दूभर हो जाता था। कहा जा सकता है कि दिक्कतों के कारण बहुसे अयोध्या – फैजाबाद के लोग मंदिर दर्शन करने जा ही नहीं सके। मंदिर के आस पास जो भी स्कूल और अस्पताल वगैरह है वहां जाने आने में रोज लोगों को मुसीबतों से दो चार होना पड़ा है। बताया जा रहा है कि बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान एक दिन ऐसा भी आया जब किसी बहुत महत्वपूर्ण राजनेता के आने के कारण बच्चों को परीक्षा देने जाने में भारी मुसीबत हो गई थी। लग रहा था कि उनकी परीक्षा ही छूट जाएगी। इलाके के लोगों ने डीएम से संपर्क किया और तब किसी तरह बच्चे परीक्षा में शामिल हो पाए। याद रखने की जरुरत है कि अलग अलग राज्यों के विधायक झुंड बना कर दर्शन के लिए चुनाव तक पहुंचते रहे हैं। उत्तरप्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष भी सारे विधायकों को लेकर श्रीराम के दर्शन के लिए पहुंचे थे। इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण के दौरान मंदिर के आस पास की दुकानों को तोड़ कर हटाया गया। ये लोकल लोगों में नाराजगी का एक बड़ा सबब बना। क्योंकि जिन्हें विस्थापित किया गया, उन्हें कॉमर्शियल कॉम्पलेक्स में महंगी कीमतों पर दुकाने खरीदने को मजबूर होना पड़ा। मंदिर चाहिए तो भोजन भी। भोजन यानी रोजगार।
फैजाबाद से प्रकाशित होने वाले एक स्थानीय अख़बार इस दलील से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि सिर्फ अयोध्या मंदिर के आस पास की दुकानों को विस्थापित किए जाने जैसे एक मुद्दे से भाजपा प्रत्याशी की हार नहीं हुई है। उनका तर्क है कि उनकी संख्या इतनी अधिक नहीं है। वो लिखता है उत्तरप्रदेश में जनता ने बदलाव का मन बना लिया था। जहां समीकरण ठीक ठाक रहे वहां जनता ने बदलाव कर दिया। हार सिर्फ लल्लू सिंह की नहीं पूरे भाजपा की है। हां, लल्लू सिंह ने का जो वीडियो आया उसने दलित पिछड़ों को एकजुट कर दिया। ये पहला मौका है कि इस सामान्य सीट से एक दलित समुदाय का उम्मीदवार जीता।”
एक दूसरे अखबार के अनुसार प्रत्याशी का चयन गलत था। वे कहते हैं कि लल्लू सिंह वे नेता है जो लोगो से बस इतना ही संपर्क रखते थे कि क्षेत्र में किसी मतदाता के यहां पड़ने वाले कार्यक्रम में रात 10-11 बजे पहुंचे और लिफाफा पकड़ा कर निकल लेते थे । क्षेत्र के लोगों से उनका वैसा कनेक्ट नहीं था जैसा नेता का होना चाहिए। जबकि समाजवादी पार्टी और उसके उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने जी-जान लगा कर चुनाव लड़ा।
बताया जाता है कि जिन राम जी का नाम पूरे देश की जनता में स्फुरण पैदा कर देता है, उनका नाम उनकी मातृभूमि में कोई संचार नहीं पैदा कर पाता। अयोध्या में जब-जब राम नाम को इनकैश करने की कोशिश की जाती है, अयोध्या की जनता बिफर जाती है। राम जी के प्रति अयोध्या में आत्मीयता है पर जब भी उनका राजनैतिक इस्तेमाल हुआ, मतदाता नाराज हो जाता है। सिर्फ राम के नाम पर कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता। सच यह है कि राम नाम का सहारा लेकर चुनाव लड़ने वाले लल्लू सिंह हैट्रिक नहीं लगा पाए। जनता के अपने दुःख-दर्द होते हैं, उन्हें समझने की कोशिश नहीं की जाएगी तो जनता यूं ही भाजपा से छिटकती रहेगी। लल्लू सिंह दो बार लगातार जीते किंतु वे निराकार चेहरे वाले जन प्रतिनिधि थे, इसीलिए हारे।
भाजपा के लिए 2024 में फैजाबाद से हारना एक बड़ा झटका है। लल्लू सिंह को हराने वाले अवधेश प्रसाद मिल्कीपुर से सपा के विधायक हैं। 9 बार विधायक रहने के कारण क्षेत्र में वे विधायक जी के नाम से जाने जाते हैं। पर अब वो सांसद जी बन गए। यह विचित्र है कि जब-जब राम का नाम परवान चढ़ाने में भाजपा सफल रही, तब-तब अयोध्या में उसे हार का मुंह ही देखना पड़ा। अयोध्या विधानसभा सीट भी अक्सर उसके हाथ से जाती रही। लल्लू सिंह अक्सर अयोध्या से ही विधायक रहे, किंतु 2012 के चुनाव में अयोध्या विधानसभा सीट से सपा के तेज नारायण पांडेय जीते थे।
2023 में फैजाबाद (अब अयोध्या) नगर निगम का चुनाव भी भाजपा हारी थी। मजे की बात कि जिस वार्ड में राम जन्म भूमि परिसर पड़ता है, वहां से एक निर्दलीय मुस्लिम प्रत्याशी सुल्तान अंसारी को जीत मिली, जबकि इसके तीन साल पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में अयोध्या ज़िले की पांचों विधानसभा सीटें भाजपा ने जीती थीं। 2020 में अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण हेतु आधार शिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी किंतु 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जिले की पांच विधानसभा सीटों में से मिल्कीपुर और गुसाईं गंज हार गई। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा भले राम मंदिर को लेकर पूरे देश में वोट मांगे अयोध्या में उसे वोट नहीं मिलता। अयोध्या एक पूर्णतया धार्मिक नगरी है। हिंदू धर्म की सप्त पुरियों में इसका उल्लेख है। परंतु अयोध्या के राजनीतिकरण को इसने सदैव नकारा।
बताया जाता है कि अयोध्या में 2024 के लोकसभा चुनाव में तो ऐसी फिजा बदली कि नारा लगा हमें अवधेश पासी ही चाहिए, भाजपा के लल्लू सिंह से हमें कोई सहानुभूति नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि पिछले दस वर्षों में अयोध्या का अभूतपूर्व विकास हुआ है। देश के सभी हिस्सों से जोड़ने वाली ट्रेनें, भव्य रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा पर अयोध्या के स्थानीय निवासियों को उनकी जमीनों का मुआवजा देने में भी राज्य सरकार ने भेदभाव किया। सरकार ने विकास कार्यों के लिए जमीन अधिगृहीत की किंतु बदले में किसी को अधिक पैसे मिले किसी को कम। फैजाबाद के भाजपा सांसद लल्लू सिंह और भाजपा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता ने जनता की गुहार नहीं सुनी। नतीजा यह हुआ कि लोगों को सपा के विधायक अवधेश प्रसाद पसंद आए, जो लोकसभा जीतने के पहले वे मिल्कीपुर (सुरक्षित) से विधायक थे। सपा ने यहां एक बड़ा प्रयोग किया। सामान्य श्रेणी की इस सीट से दलित समुदाय (पासी) के अवधेश प्रसाद को लड़ाया और वे जीत गए। इस तरह अयोध्या में लल्लू हारे और अवधेश जीते। अवधेश शब्द राजा राम का पर्यायवाची है।
कांग्रेस-सपा के जिस गठबंधन को 2017 में नहीं चल पाया था, वह गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जमकर वोट बटोरे हैं। उत्तर प्रदेश के जानकारों के मुताबिक इस चुनाव में मुस्लिम वोट ने एकजुट होकर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान किया। संविधान और आरक्षण बचाने के मुद्दे को हवा देकर इंडिया गठबंधन ने भाजपा के कोर हिंदू वोट बैंक को भी बांट दिया। विपक्ष के इस नैरेटिव ने बड़ी संख्या दलितो, पिछड़ों और आदिवासियों को भाजपा से दूर किया। महंगाई और बेरोजगार के मुद्दे ने भी का मुद्दा भी काम करता दिखा।स्थानीय प्रत्याशी लल्लू सिंह पर क्षेत्र में जमीन खरीद और फिर उसे ऊंचे दामों में बेचने का आरोप लगा हुआ है। श्रीराम मंदिर पर फैसले के बाद जमीन खरीद-बिक्री का मामला जोर-शोर से उठा था। इस पर बड़ा जोर दिया गया। इससे लल्लू सिंह की छवि धूमिल हुई और उन्हें कम वोट मिले।

ratan tata died at the age of 86 in mumbai
ratan tata died at the age of 86 in mumbai
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  31 जुलाई  2024, Smart Halchal News Paper 31 July
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  31 जुलाई  2024, Smart Halchal News Paper 31 July
ratan-tata-death-news
AD dharti Putra
logo
AD dharti Putra
Smart Halchal NewsPaper logo logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES