सनातन के प्रतीकों का सम्मान करने से ही मनुष्य का उद्धार- श्रीमहंत महेश्वरदास उदासीन
भीलवाड़ा। सनातन एक ऐसा वट वृक्ष है, जो कभी समाप्त नहीं होगा,क्योंकि यह श्रद्धा के आधार पर नहीं अपितु सिद्धान्तों के आधार पर बना हुआ है।जिसमें जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष अर्थात् जीते जी जीवन मुक्त हो जाना है। प्रत्येक सनातनी को अपने सनातन के सभी प्रतीकों जनेऊ, तिलक, चोटी, स्वास्तिक, कलश, तुलसी, गऊ माता आदि का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि जीवन की उन्नति सनातन के मूल्यों और सिद्धान्तों का सम्यक रूप से प्रयोग करने और उसके अनुरूप व्यवहार करने से ही सम्भव है। इन विचारों से श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के श्री महंत महेश्वरदास उदासीन ने बाबा शेवाराम जी के 41वें वार्षिक वर्सी उत्सव के उपलक्ष में श्रद्धालुओं को लाभान्वित किया। इस अवसर पर उज्जैन के मुकामी महंत सत्यानंद उदासीन ने भी श्रद्धालुओं को दर्शन लाभ प्रदान किया। बाबा जी के वार्षिक वर्सी उत्सव के उपलक्ष में श्री हरि सिद्धेश्वर मंदिर में अभिषेक सम्पन्न हुआ। प्रातःकाल में नगर की कच्ची बस्तियों में अन्न क्षेत्र की सेवा सम्पन्न हुई। महामण्डलेश्वर स्वामी हंसराम उदासीन ने हरिद्वार प्रवास के दौरान बाबा जी के वार्षिक वर्सी उत्सव के उपलक्ष में प्रातकाल हर की पौड़ी में गंगा पूजन कर स्थानीय पंडितों को प्रसाद एवं दक्षिणा भेंट , कन्या गुरुकुल में भोज एवं पूजा पाठ सम्पादित किया। हरी शेवा उदासीन आश्रम सनातन मंदिर भीलवाड़ा में श्रद्धालुओं ने शेवा सुमिरन कर उत्साह एवं उमंग के साथ बाबा जी का वार्षिक वर्सी उत्सव मनाया। इस अवसर पर संत मयाराम, संत राजाराम, संत गोविंदराम, बालक मिहिर ने गुरूओं का गुणगान किया। आरती प्रार्थना होकर भंडारा प्रसाद का आयेाजन हुआ। संत अरविन्द मुनि, पंडित नवीन, पंडित कमल एवं श्रद्घालुओं अनुयायियों सहित संस्थान के ट्रस्टी, पदाधिकारियों ने श्रद्धा एवं उत्साह से भाग लिया।