रवि शंकर सिंह
“लोभ,लाभ से लबालब भरे लाभार्थी लल्लन सिंह जी”
स्मार्ट हलचल/अन्ना हजारे का आंदोलन सफल रहा या असफल,इस बात को फिर कभी चर्चा करेंगे। महाराष्ट्र में मनोज जरांगे पाटिल को ही लिजिए। इनसे पूर्व भी अन्ना साहेब पाटिल ने 1982 में आंदोलन किया था। सरकार को चुनौती देते हुए आंदोलन की मांगों के न मानने पर आंदोलनकारी मुखिया आत्महत्या कर लेंगे और 23 मार्च 1982 को अन्ना साहेब पाटिल ने गोली मार आत्महत्या कर ली और संयोग कहें कि 1982 में ही मनाज जरांगे पाटिल का जन्म हुआ। ऐसे ही जयप्रकाश नारायण जी की संपूर्ण क्रांति नाम से आंदोलन किया। ऐसे पचासों दुनिया में आंदोलन हुए जिनमें प्रमुख दस निम्नलिखित हैं –
1-भारत का स्वतंत्रता आंदोलन …
2-औरतों का सफरेज (वोट का अधिकार) आंदोलन …
3-अमेरिका का सिविल राइट्स मूवमेंट …
4-एलजीबीटी राइट्स मूवमेंट …
5-रंगभेद विरोधी आंदोलन, अफ्रीका …
6-अन्य देशों के स्वतंत्रता आंदोलन
7-दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप के देशों में हुआ आंदोलन
8-कमाल अतातुर्क और तुर्की का आंदोलन
9-जॉर्ज फ्लॉयड प्रोटेस्ट
10-2017 का वुमेंस मार्च
स्मार्ट हलचल/
मेरे कहने का मतलब ये है कि जितने भी आंदोलन हुए उनके नेतृत्व कर्ता (या आंदोलन कारी) वे तो कुछ नही हो पाए लेकिन उन आंदोलनों से कुछ लाभार्थी उपज गए।अभी जो भारत का संसद है आधे से अधिक सांसद आंदोलन से उपजे लाभार्थी ही हैं।
वैसे ही बलिया के एक छोटे से कस्बे में एक खामोश आंदोलन का आगाज हुआ जो एक कालेज निर्माण के लिए समर्पित हुआ! जिसमें जिस्म के अंतिम कतरे तक लोगों ने सहयोग किया और 15 साल के खामोशी से चले कालेज निर्माण में कमजोर कदमों ने एक कालेज को सृजित कर लिया।इस सृजन के सृजनकर्ताओं ने पूर्व के ही भांति खामोशी को अंगीकार करते हुए लल्लन जी को सर्वेसर्वा होने की छूट दे दी, जिनका ,न जिनके परिवार का, और न किसी इनके रिश्तेदार का एक इंच जमीन लगा और न ही एक चवन्नी लगी!
पूरे भारत में सिर्फ नारों में भाईचारा दिखता है लेकिन इस छोटे से कस्बे में गजब का भाईचारा दिखा और कालेज निर्माण में इसी कौम ने सबसे ज्यादा सहयोग किया लिहाजन उनकी सदस्य संख्या भी ज्यादे रही और वक्त ने उन्हें जागृत किया और अपने हक़ व हुक़ूक़ की चर्चा करने लगे।
इस खामोश आंदोलन से उपजे खामोश से दिखने वाले लल्लन सिंह जी बड़े खामोशी से अपने को लाभार्थी बना लिया।अब बात लाभ की ,लोभ की होने लगी । इसके लिए लल्लन जी खामोशी से अपने ख्वाब को बुनने लगे जिसके लिए खुराफात का पतीला ले लिया। फिर इस पतीले में उनके ख्वाब पकाया जाने लगा जिन्होंने कालेज निर्माण में अपना सर्वस्व अर्पित किया। अब बड़ी मजबूती से अपने बेहायायी को बताने के लिए, कानून के तरफ से मजबूती के लिए इन्होंने सदस्यों की लिस्ट सार्टिंग करी। जिसमें अपने भाईयों, चाचाओं ,समधियों, बहनोइयों, सालों,मामों,फुफी,फुफा और कुछ लफुवा को शामिल कर बेरहमी से भाईचारे का कतल कर दिया।इनका आचरण तो तब और खूनी लगने लगा जब अपने चाचा को कालेज के सम्मानित सूची में,बड़ी खामोशी से ठूंस लिया लेकिन इसी चाचा की पत्नी को दर दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया अति तो अभी बाकी है,वो बेचारी किसी अपने मायके के पास के मंदिर में मृत मिलीं लेकिन ये लाभार्थी उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल नही हुए।ऐसा ही एक वाकया है कि इनके एक भाई हैं (चाचा का लड़का) नंद जी सिंह, इन्हें भी सदस्यता सूची में हूरा गया है ,इनके एक भाई ने आत्महत्या कर ली,उसकी मौत पर ये अपनी माता जी के साथ तिरस्कृत कर रहे थे।खान पान होता रहा!फिर बात आई गई हो गई! फिर कुछ साल बाद इनके कालेज में परिचर के बच्चे ने आत्महत्या कर ली।अब इनका दोगलापन देखें, इन्होंने उसका छुवा खाना पीना बंद कर दिए जब कि उस परिचर ने इनको करीब ढाई बिगहा जमीन विद्यालय को अदा की है।इनके एक समधी हैं डा. विनोद सिंह ये अपने ही विधा में माहिर हैं, एकबार तो इनके बच्चे (जो प्राचार्य और बीएड हेड को पिस्तौल से धमकाया और दौड़ाया था) और इनके समधी में ही किसी लड़की को लेके विवाद हो गया, उसका भी समाधान उसे रक्सा विद्यालय में लिपिक /लाइब्रेरियन पर नियुक्त करके किया गया। और पूरा मैदान विनोद जी के लिए छोड़ दिया गया। लेकिन चोर चोरी से जाएगा, हेराफेरी से कैसे जाएगा फिर विनोद सिंह जी बांसडीह महाविद्यालय में ही व्यवस्था कर लिया और कुल्फी (नाम नही लेना चाहता) चाट रहे हैं।एक और प्रकरण बताना चाहूंगा कि करीब 15 साल पहले बांसडीह महाविद्यालय की एक शिक्षिका थीं जिनके पिताजी ने छत्तीसगढ़ से लेकर अपने सारे संबंधों से चंदा दिलवाया और उनके साथ भी वही इन्होंने किया जो रक्सा में किया।समीक्षा जी बहुत ही प्रतिभाशाली थीं,ये उनके प्रतिभा से इतना प्रभावित हुए कि उन्हें विद्यालय से निकालने के लिए सोचने लगे और इसी प्रयास में ये उनसे उलझ गए, मामला बांसडीह कोतवाली में गया और अपनी हाथ के मैल माया के प्रयोग से छुटकारा पाया गया। बौद्धिक हत्याएं तो ये सैकड़ों कर चुके हैं। कारण तो कुछ होगा लेकिन मुझे लगता है कि ये हीन भावना से ग्रसित हैं इसलिए किसी बौद्धिक संपदा वाले व्यक्ति इन्हें पचता नही है। बच्चे कितना बौद्धिक हैं,इनके चरित्र से जाना जा सकता है।अब ये और अपने पिल्लों (पुत्रों) से या साजिश से मेरी हत्या कराने के फिक्र में मरे जा रहे हैं ।इनके कारनामों को लिखने के लिए हैवी रैम का लैपटॉप चाहिए, मोबाइल पर लिखना मुश्किल हो रहा है?
स्मार्ट हलचल/जिसने शिद्दत सहयोग किया, बहुत कुछ पाने के लिए नही किया था,बस थोड़ा सम्मान लेकिन ये आदमी समद चाचा जैसे आदमी को बेदीन किया जो इनके दिल्ली लखनऊ जिला मुख्यालय जाने के खर्चों के लिए अपनी भैंस बेच दी? ऐसे सभी खामोश सदस्यों के साथ इन्होंने यही सलूक किया है।जब ये बहुरुपया हो गए तो सारे लोग अपने को ठग लिए गए,ऐसा मान ऐसी बद्दुआ देते हैं कि सुन के ताज्जुब होता है।कारण भी हैं इसके?जब तक सहयोगियों का सहयोग का कतल नही किए थे, कहते रहे कालेज में अपने घर का नही रखेंगे लेकिन नियमों को ताक पर रखके,भाई को रखा, बेटों को रखा?भाई,बेटों की नियुक्ति कितनी पारदर्शी है, एहसास किया जा सकता है क्योंकि देखने के लिए कुछ छोड़ा ही नही है।इस आदमी को न बाबा साहेब का संविधान से वास्ता है और न किसी के नजरिए से!
लल्लन सिंह जी इस संसार में मान सम्मान,मति,कीर्ति,गति,ऐश्वर्य सभी भगवान का ही प्रसाद है लेकिन कैसे आप अभिमान, दुराग्रह, घृणा और परपराभव करने जैसे दुर्गुणों से भरके संबंधों को कलंकित किया? संपत्ति वगैरह के लिए कोई भी प्रयास करता है किंतु आप जैसा खूनी रास्ता किसी ने नही अपनाया होगा?
बहुत न्यायी होने की बकैती करते हैं तो बता दिजिए बीएड हेड डा. अशोक तिवारी को असलहा लेके आपका लड़का दौड़ाया तो आपका क्या न्याय था? और लाज पचाने के लिए कहे थे कि पटके मारो?अब मैनेजर के लड़के को कौन मारेगा और घर पर ट्रेनिंग देते हैं कि मैनेजर के लड़के जैसे रहो तो रहा?आप खून,भावनाओं का करते हैं और भौतिक रुप से करने का प्रयास बेटे ने किया,खूब तो मिल रहा है करेक्टर?डा. नित्यानंद तिवारी को आप ही ने बुलाया था और आप ही के यहां वो आ रहे थे और रास्ते में दुर्घटना हुई, दुर्योधन दंभी ने क्या न्याय किया उनके साथ? अर्थव्यवस्था तो अपनी बहुत मजबूत कर ली है लेकिन साथ में बहुत निर्ममता से लोकतंत्र की हत्या भी कर ली है।आपका लड़का बदमाशी करेगा तो उसका वेतनमान बढ़ेगा और कोई आपके लड़के का बदमाशी झेलेगा तो उसे विद्यालय से निकालेंगे।श्रीसंपन्न से श्रीविहीन होने में देर नही लगती?धन संपदा यदि ईश्वर ने बख्शा है तो वही भक्ष भी जाएगा।लगता है कि बुरे दिन तिरोहित हो गए तो क्या अच्छे दिन का वसीयत कराएं हैं क्या? तरमीम नही होगी, तिरोहण तो अच्छे दिन का भी होगा?आप अपने निर्णयों/फैसलों से सबक नही लेते लेकिन सनातनी बनके सोचा जाए तो दुर्योधन के निर्णयों/फैसलों से सबक लेता तो महाभारत नही हुआ होता? मनुष्य जिन यंत्रों को अपनी सफलता का कारण मानता है,अमानवीय होने के बाद भी वही करता रहता है।
अनासक्त भाव से कर्तव्य बोध से लोगों ने साथ दिया, लेकिन आप मनुष्यत्वहीन किसी को सम्मान के लायक समझे ही नही!किसी के लिए एक गुलाब ही पूरा बगीचा होता है तो किसी के लिए एक व्यक्ति ही पूरी दुनिया । पूरे जनों ने कालेज रुपी बगीचे का माली लल्लन जी आपको बनाया लेकिन आप अपनी ही माली हालत ठीक करने लगे? खताओं से खूब भरे हैं, लोगों में खता ढूंढेंगे? लोगों के बच्चों को कहेंगे कि जितने हैं उतने करोड़ के?कभी अपने बेटों की भी कीमत लगा लेते/देते।बच्चो दादा के भी,चाहे इनके पत्नी का भी…… और बहुत नमूने भरे पड़े हैं आपके सदस्यता सूची में? सारे नमूने रहेंगे लेकिन मैं नही रह सकता!आपको देख कर मुझे दैत्य गांधी का ख्याल आता है कि कैसे तंग सोच के कारण लाखों लोगों की हत्या करा गए फिर देश के बाप भी बन गए और सरकारी खर्चों से उनको जस्टिफाई भी किया जाने लगा।आप तो महोदय दैत्यों के दैत्य हैं। गांधी का तो दैत्यपन दिखता भी है लेकिन आपका तो दिखता भी नही। गांधी के बच्चों को सबको सेटल्ड कर गए जैसे आप कर रहे हैं। गांधी यदि अच्छा लग रहे हों तो मोपला कांड, राजपाल महाशय की हत्या, स्वामी श्रद्धानंद की हत्या,पाक से आए हिंदू शरणार्थी के साथ व्यवहार पढ़ देख लिजियेगा।सब गूगल बाबा के यहां उपलब्ध है। गांधी के तो चार ही बच्चे थे लेकिन आप तो उनसे आगे ही हैं। गांधी की औकात जानते ही होंगे,80-90 साल पहले पूरी ट्रेन आरक्षित कर लिया,उस वक्त तो आप नही थे लेकिन आपके बापू पता नही?किसी भिखमंगे को एकाएक लाटरी लग जाए तो मर ही जाएगा वैसे आप ही हैं एकाएक करोड़ों पा गए तो आप मरेंगे नही (आपको तो कई हजार साल जीना है) पर मारेंगे जैसे लोगों को मारे,मुझे मारे? फिर मिलेंगे अगले एपीसोड में तब तक के लिए सभी पाठक गणों को प्रणाम करते हुए