भीलवाड़ा । विश्वेश्वर तिवाड़ी दाधीच भवन में रात्रि 8 से 10 बजे तक चल रही तीन दिवसीय नानी बाई रो मायरो कथा का समापन मंगलवार को हुआ ।दीपक शर्मा ने बताया कि साध्वी गुरु माँ पदमा जी की वाणी से नानी बाई का मायरो सुन कर श्रोता मंत्र मुग्ध हो गए। कथा में बताया नरसीजी के पास केवल एक चीज़ थी, वह थी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति। इसलिए वे उन पर भरोसा करते हुए अपने संतों की टोली के साथ बाई को आर्शीवाद देने उनके ससुराल पहुँच गए। उन्हें आता देख नानी बाई के ससुराल वाले भड़क गए और उनका अपमान करने लगे। अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गए और रोते हुए अपने ईष्ट भगवान श्रीकृष्ण को याद करने लगे। नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आत्महत्या करने के लिए दौड़ पड़ी। लेकिन, भगवान श्रीकृष्ण ने नानी बाई को रोक लिया। उसे कहाकि कल वे स्वयं नरसी के साथ मायरा भरने के लिए आएंगे।
दूसरे दिन नानी बाई बड़ी ही उत्सुकता के साथ भगवान श्रीकृष्ण और नरसी जी का इंतज़ार करने लगी। तभी सामने देखती है कि नरसी जी संतों की टोली और भगवान कृष्ण के साथ चले आ रहे हैं। उनके पीछे ऊँटों और घोड़ों की लंबी कतार है, जिनमें सामान लदा हुआ है। दूर तक बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियाँ नज़र आ रही थी, ऐसा मायरा न अभी तक किसी ने देखा था और न ही देखेगा। उन्होंने कहा कि सभी श्रोता, भक्तगणों को इसमें अपना योगदान जरूर करना चाहिए। जिससे जो भी बन पड़े वह भात में योगदान जरूर दे। निजी जीवन में भी ऐसा करें।
उन्होंने कहा कि नरसी जी का भात देखकर ससुराल वाले अपने किए पर पछताने लगे, उनके लोभ को भरने के लिए द्वारिकाधीश ने बारह घंटे तक स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की। नानी बाई के ससुराल वाले उस सेठ को देखते ही रहे और सोचने लगे कि कौन है ये सेठ और ये क्यों नरसी जी की मदद कर रहा है। जब उनसे रहा न गया तो उन्होंने पूछा कि कृपा करके अपना परिचय दीजिए और आप क्यों नरसी जी की सहायता कर रहे हैं। गुरु माँ पदमा जी ने बताया कि उनके इस प्रश्न के उत्तर में जो जवाब साँवरियासेठ ने दिया वही इस कथा का सम्पूर्ण सार है। इस प्रसंग का केन्द्र भी है। इस उत्तर के बाद सारे प्रश्न अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। सेठ जी का उत्तर था मैं नरसी जी का सेवक हूँ, इनका अधिकार चलता है मुझ पर। जब कभी भी ये मुझे पुकारते हैं, मैं दौड़ा चला आता हूँ इनके पास। जो ये चाहते हैं, मैं वही करता हूँ। इनके कहे कार्य को पूर्ण करना ही मेरा कर्तव्य है । उन्होंने कहा कि यह उत्तर सुनकर सभी हैरान रह गए। किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था। बस नानी बाई ही समझती थी कि उसके पिता की भक्ति के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण उनसे बंध गए हैं। उनका दुख अब देख नहीं पा रहे हैं इसलिए मायरा भरने के लिए वे स्वयं ही आ गए हैं, इससे यही साबित होता है कि भगवान केवल अपने भक्तों के वश में होते हैं। इस अवसर पर आयोजक किरण शर्मा,कोसहल्या शर्मा, पुष्पा, रेखा,हेमलता,चंचल, ललिता, इंदिरा,सुनीता,गायत्री, जोनु,मंजू, अनिल कंठ, महेश व,प्रदीप,पीयूष,गिरिश, परक़ब्नक भक्तगण उपस्थित रहे ।