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भीलवाड़ा में मुर्दा महोत्सव शीतला सप्तमी पर, निकलेगी मुर्दे की सवारी, शहर होगा रंगो से ओतप्रोत और सरोबार उड़ेगा रंग और गुलाल

भीलवाड़ा । तत्कालीन महाराणा मेवाड़ गवर्नमेंट ने विक्रम संवत 1655 में भीलवाड़ा की जागीरी/ पट्टा ठिकाणा भीलवाड़ा भोमियों का रावला के ठाकुर साहब को प्रदान किया था जिसका ताम्रपत्र आज भी रावला हुकुम के पास मौजूद है । इस प्रकार से भीलवाड़ा गांव के निर्माण/अस्तित्व में आने के लगभग तीन चार वर्ष पश्चात से ही लगातार भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी/ अष्टमी को एक अद्भुत परंपरा का निर्वहन किया जाता रहा है । इस प्रकार से इस परंपरा का निर्वहन लगभग 421 वर्षों से अनवरत हो रहा है । इस परंपरा के तहत शीतला सप्तमी की पूर्व संध्या पर सर्राफा बाजार में दो स्थानों पर तथा बड़े मंदिर के पीछे बाहले में भैरवनाथ जी की स्थापना की जाती है । इस दिन शाम होते ही पुराने भीलवाड़ा के पंच पटेलो द्वारा भैरवनाथ जी के स्थानों पर धूप अगरबत्ती कीया जाता है । ढोल झालर बजा कर तथा गीत गाकर रात्रि जागरण का आयोजन किया जाता है । भैरवनाथ का भाव भी आता है । वर्तमान में भोपा जी का पाट अंतर्राष्ट्रीय कलाकार जानकीलाल भांड तथा लालचंद भरावा द्वारा निर्वहन किया जा रहा है । शीतला सप्तमी को प्रातः बड़े मंदिर पर भीलवाड़ा गांव की पंचायती हताई पर पंच पटेल इकट्ठे होते हैं । सभी लोग एकत्रित होकर ढोल नगाड़े के साथ झंडा लेकर बड़े मंदिर से निकलते हुए चित्तौड़ वालों की हवेली के यहां पहुंचते हैं । यहां पर लगभग एक घंटे तक होली खेली जाती है । यहीं पर एक व्यक्ति को मुर्दा बनाकर अंतिम यात्रा की शैय्या पर लेटाकर ऊंट , ढोल नगाड़ों के साथ अंतिम यात्रा प्रारंभ होती है जिसे डोल भी कहते हैं जो कि जूलूस के रुप में भीलवाड़ा के मेन मार्केट , बाजारों से रेलवे स्टेशन , पुलिस कंट्रोल रूम, सदर बाजार, गोल प्याऊ चौराया , महाराणा टॉकीज , हिंदू महासभा कार्यालय , सर्राफा बाजार होते हुए बड़े मंदिर पहुंचती है। यहां पर बचला बसा की प्रक्रिया सम्पन्न करने के पश्चात बाहले में अंतिम संस्कार किया जाता है । अंतिम यात्रा में सभी लोग हंसी ठिठोली करते हुए आते हैं एवं मरने वाले पर विलाप करते हैं तथा रोते हैं । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि संपूर्ण भीलवाड़ा इस पूरे घटनाक्रम को बड़े उत्साह के साथ देखता है एवं संपन्न करवाता है ।‌ भीलवाड़ा के पंच पटेलों ने भीलवाड़ा के सभी समाज बंधुओं से इस परंपरा को दिनांक 1/4/2024 सोमवार को विधिवत एवं सद्भावना से संपन्न कराने का आव्हान किया है । दिनांक 31/03/2024, रविवार को रात्रि 7:15 बजे से जागरण तथा 1/4/2024 को प्रातः 10:15 बजे से अंतिम यात्रा की तैयारी प्रारंभ होगी जो कि 2:15 बजे मुर्दे को मुखाग्नि के पश्चात समाप्त होगी। भीलवाड़ा में ऐसी मान्यताऍ एवं धारणाऍ है कि इन कार्यक्रमों में सहयोग एवं भाग लेने वालों के यहां भगवान का आशीर्वाद , धन धान्य का आगमन तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्रदान होता है तथा परिवार में सुख,शांति, सम्रद्धि, खुशहाली तथा लक्ष्मी जी का निवास रहता है । एक यह भी मान्यता है कि वर्ष भर में अपने में जो बुराइयां प्रवेश की थी उनको इस यात्रा में अपने मन से उद्घाटित करके उन बुराइयों को बाहर निकालते हैं । अतः इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का स्वरुप भी माना गया है । इस कार्यक्रम में सहयोग एवं सम्मिलित होने वाले परिवार में रिद्धि सिद्धि का आगमन होता है । इस कार्यक्रम को देखने के लिए भीलवाड़ा शहर के अतिरिक्त संपूर्ण भीलवाड़ा जिला एवं आसपास के अन्यत्र जिलों के लोग भी एकत्रित होते हैं । पूरा भीलवाड़ा शहर इस दिन इस कार्यक्रम से रंग-गुलाल से ओतप्रोत एवं सरोबार हो जाता है ।

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