Homeराज्यजब भी बिहार के मुख्यमंत्री दिल्ली जाते है सियासत में धडकनें तेज...

जब भी बिहार के मुख्यमंत्री दिल्ली जाते है सियासत में धडकनें तेज हो जाती है

>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/रविवार की सुबह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कारकेड सीएम हाउस से पटना एयरपोर्ट की ओर बगैर किसी सूचना के रवाना हुआ। बाद में पता चला कि वह दिल्ली जा रहे हैं। सीएम के अचानक दिल्ली यात्रा से राजनीति के जानकार भी हैरान हो गए क्योंकि एक दिन पहले ही भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष भाजपा नड्डा पटना आए थे। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई थी। उनका यह कार्यक्रम पहले से निर्धारित था। पटना में पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं के साथ उनकी लंबी बैठक हुई। बताया गया कि नड्डा का दौरा पार्टी के सदस्यता और संगठन की मजबूती को लेकर था। लेकिन नीतीश के दिल्ली रवाना होने के बाद राजनीतिक गलियारे में चर्चा का बाजार गर्म है कि बिहार में कुछ बड़ा होने वाला है।
हालांकि, नीतीश कुमार के इस दौरे को निजी बताया जा रहा है , लेकिन गठबंधन की राजनीति के माहिर राजनीतिज्ञ नीतीश कुमार को लेकर कयासबाजियां जारी रहती है । उनके निजी दौरे के बावजूद चर्चा के केंद्र में वह बने रहे और तमाम मीडिया संस्थानों ने उनकी इस निजी यात्रा को भी सियासी नजरिये से देखना शुरू कर दिया। आखिर ऐसा क्या हुनर या परिस्थिति है जो नीतीश कुमार को लेकर सियासी गलियारों में हमेशा सस्पेंस बना रहता है।
दिल्ली पहुंचने के बाद सीएम नीतीश कुमार दो निजी जगहों पर जाने के बाद अपने सरकारी आवास पहुंचे। यहां जेडीयू के कई नेताओं ने उनसे मुलाकात की। इसके बाद सीएम नीतीश 9 त्यागराज लेन स्थित केंद्रीय मंत्री और जदयू के नेता ललन सिंह नये सरकारी आवास पर पहुंचे। यहां थोड़ा समय बिताने के बाद वे 2 तुगलक मार्ग स्थित राज्यसभा सांसद संजय झा के सरकारी आवास पर पहुंचे। इसके अगले दिन 30 सितंबर को अगले दिन सुबह एम्स में अपना चेकअप करवाया और बाद में उनके सरकारी आवास पर झारखंड के नेता राजा पीटर ने सीएम नीतीश से मुलाकात की। इसके थोड़ी ही देर बाद वे दिल्ली से पटना के लिए रवाना हो गए। लेकिन, इस दौरान जब तक वे दिल्ली में रहे तब तक पटना से लेकर दिल्ली तक सियासी सरगर्मी बनी रही और कयासबाजियों का दौर भी जारी रहा।
अफवाहें इस कारण जोर पकड़ती है क्योकि कभी RJD जैसी धुर विरोधी तो कभी मुद्दों पर भाजपा से दूरी की बात बताते हुए 19 वर्षों तक सियासत को साधने में अगर किसी ने महारत हासिल की है तो वह नीतीश कुमार ही हैं। आखिर वह बिहार की राजनीति में कैसे संतुलन साधते हैं और कैसे वही हर बार सेंटर में ही नहीं सत्ता के शीर्ष पर विराजमान हो जाते हैं। दरअसल, नीतीश कुमार सियासत की ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हर सियासी खेमा अपने पाले में करना चाहता है। इसको लेकर हमेशा रस्साकशी भी चलती रहती है कि वे उनके खेमे में आ जाएं।
दरअसल, बीते दो दशक में नीतीश कुमार ने जिस काबिलियत से अपनी राजनीति आगे बढ़ाई है इससे यह बात बार- बार साबित होती रही है कि बिहार की राजनीति के सबसे बड़े बैलेंसिंग फैक्टर कोई हैं तो वह नीतीश कुमार ही हैं। इतना ही नहीं बिहार को आधार बनाते हुए कई बार केंद्र की राजनीति में भी वह संतुलन साध जाते हैं। अगर तथ्यों के आधार पर इसको परखें तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी तीनों अलग-अलग चुनाव लड़ीं थीं। ऐसे में वोटों की हिस्सेदारी देखें तो बीजेपी को 29।9, आरजेडी को 20।5 और जेडीयू को 16 कांग्रेस को 8।6, एलजेपी को 6।5 प्रतिशत मत मिले थे। इतने कम वोट बैंक के साथ नीतीश कुमार खुद एक राजनीतिक ताकत तो नहीं हो सकते, लेकिन उनका साथ चाहे वो बीजेपी के साथ हो या फिर आरजेडी के साथ उसे निर्णायक बढ़त दिलाने का दम रखते हैं।
इसी तरह लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो बिहार में एनडीए को एनडीए को कुल मिलाकर 53।3 प्रतिशत वोट मिले थे। बीजेपी को 23।6 प्रतिशत, जेडीयू को 21।8 प्रतिशत एलजेपी को 7।9 प्रतिशत वोटरों का समर्थन मिला। वहीं आरजेडी को 15।4 प्रतिशत और कांग्रेस 7।7 प्रतिशत मत मिले थे। जाहिर है नीतीश कुमार जिधर भी जाते हैं उस गठबंधन का पलड़ा भारी हो जाता है। बिहार के संदर्भ में ये बात वर्ष 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में साबित भी हुई, जब जेडीयू- बीजेपी ने साथ मिलकर एनडीए की सरकार बनाई थी। इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी आरजेडी के साथ हुई तो अपार बहुमत से जीत हासिल हुई। तब राष्ट्रीय जनता दल 80 सीटों के साथ बड़ी पार्टी रही थी और जनता दल यूनाइटेड को 71 सीटें मिली थीं।
हालांकि, इसके अपवाद भी हैं जब वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी के साथ तो नीतीश कुमार की पार्टी 20 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे। इसी तरह वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार ही चेहरा थे और जेडीयू-बीजेपी की जोड़ी ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी। तब नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा थे। हालांकि, बाद के दौर में हालात बदले और पीएम नरेंद्र मोदी के आगमन ने देश-प्रदेश की राजनीति के तौर तरीके बदल दिये। राजनीति के जानकार बताते हैं कि सियासत के संतुलन के बीच एक बड़ी बात यह भी है कि 2010 के बाद से नीतीश कुमार भी किसी न किसी चेहरे के बूते वह अपनी चुनावी वैतरणी पार लगाते रहे हैं।
वर्ष 2015 का विधान सभा चुनाव में महागठबंधन ने जीत हासिल की थी तो मुख्य चेहरा और बड़े वोट का आधार लालू प्रसाद यादव का था। इसी तरह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन चेहरा नीतीश कुमार का नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। इसकी एक बानगी तब दिखी थी जब 2019 में नीतीश कुमार एंटी इन्कंबेंसी झेल रहे थे तो नीतीश कुमार ने जमीन के हालात को भांपते हुए वह भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगने लगे। इसका फल भी मिला और 40 में 39 सीटों पर एनडीए ने जीत हासिल की थी। चेहरा भले ही कोई हों, लेकिन जीत का क्रेडिट तो नीतीश कुमार को ही मिला।

इसी तरह अगर लोकसभा चुनाव 2024 की बात करें तो नीतीश कुमार के साथ रहते हुए एनडीए ने 40 में 30 सीटों पर जीत हासिल की तो वहीं इंडिया अलायंस (महागठबंधन) ने 9 सीट पर जीत दर्ज की। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई। एनडीए में बीजेपी और जेडीयू ने 12-12 सीटों पर जीत दर्ज की तो लोजपा रामविलास ने 5 सीटों पर जीत प्राप्त की। महागठबंधन में आरजेडी ने ने 23 पर लड़कर 4 पर जीती। कांग्रेस ने 9 में 3 तो लेफ्ट पार्टियों में सीपीआई माले ने 2 सीटें जीतीं। इसी तरह 2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो आरजेडी ने 75 सीटें जीतीं और 23.11 प्रतिशत वोट मिले। यह तब हो पाया जब तेजस्वी को बिहार के उभरते नेता के तौर पर देखा जाने लगा था, लेकिन नीतीश कुमार का साथ नहीं होने से आरजेडी को खामियाजा उठाना पड़ा। बता दें कि 2015 में राजद को 18.35 प्रतिशत वोट मिले थे और 2020 में वोट प्रतिशत में काफी बढ़ोतरी हुई। वहीं, बीजेपी ने 74 सीटें जो 2015 की तुलना में 21 सीटें ज्यादा थीं। बीजेपी को 19।46 प्रतिशत वोट मिले, जबकि 2015 में 24.42 प्रतिशत वोट मिले थे। 2015 में जदयू को 71 सीटें मिली थीं और वोट प्रतिशत 16.83 प्रतिशत था, लेकिन 2015 में वोट प्रतिशत दोनों में कमी आई। जदयू को 2020 में 43 सीटों पर जीत मिली और वोटों का प्रतिशत 15.42 प्रतिशत रहा।
भाजपा और जदयू को वोट प्रतिशत के आधार पर दोनों स्तर पर ज्यादा नुकसान हुआ। लेकिन, बड़ा तथ्य यह कि भाजपा और जदयू के वोट प्रतिशत में भी कमी के बाद भी सरकार एनडीए की ही बनी क्योंकि संयुक्त रूप से सीटों की संख्या 243 सदस्यीय विधानसभा में 127 तक पहुंच गई। इसमें हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा की 4 सीटें भी शामिल थीं। दरअसल, यह हकीकत है कि नीतीश कुमार किसी गठबंधन में होते हैं तो उनकी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। लेकिन, अगर अकेले ताकत आजमाते हैं तो पासा उल्टा पड़ जाता है। तथ्यों पर नजर डालें तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी तीनों अलग-अलग चुनाव लड़ीं थीं। वर्ष 2014 में जदयू ने अपने दम पर 40 में 38 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। इस वर्ष 2014 में महज नालंदा और पूर्णिया की दो सीट ही जीत पाई थी। हालिया लोकसभा चुनाव में राज्य के 4 विधायकों ने लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई और कामयाबी हासिल की थी । इसके बाद बिहार की तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमाजगंज विधानसभा सीटें खाली हो गईं. अब इन्हीं सीटों पर उपचुनाव होना है और 2025 में विधानसभा के आम चुनाव भी होने है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार एक बैलेंसिंग फैक्टर अब भी हैं, लेकिन वर्तमान संदर्भ में अब वह कितने कारगर साबित होते हैं यह देखने वाली बात होगी।

ratan tata died at the age of 86 in mumbai
ratan tata died at the age of 86 in mumbai
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  31 जुलाई  2024, Smart Halchal News Paper 31 July
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  31 जुलाई  2024, Smart Halchal News Paper 31 July
ratan-tata-death-news
AD dharti Putra
logo
AD dharti Putra
Smart Halchal NewsPaper logo logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES