बिजौलिया में ‘लाल पत्थर’ का काला खेल: पहाड़ियों का सीना चीर रहे माफिया, प्रशासन की ‘गांधारी चुप्पी’ पर सवाल
📉 सरकारी व बिलानाम ज़मीन पर दिन-दहाड़े डकैती
बिजौलिया, स्मार्ट हलचल। सेंड स्टोन (लाल पत्थर) के लिए मशहूर बिजौलिया उपखंड की शांत वादियों में इन दिनों पक्षियों की चहचहाहट नहीं, बल्कि अवैध खनन करती भारी मशीनों का शोर गूंज रहा है। क्षेत्र में कानून का इकबाल मानो खत्म हो चुका है। प्रशासनिक उदासीनता और स्थानीय राजस्व कर्मियों की कथित मिलीभगत के चलते सरकारी और बिलानाम जमीनों पर अवैध खनन का काला कारोबार बदस्तूर जारी है।
‘माफिया का सुरक्षित कॉरिडोर’:
धरातल पर हालात विस्फोटक हैं। गांव के भीतर जाने वाला मार्ग अब आम रास्ता नहीं, बल्कि खनन माफियाओं का ‘सुरक्षित कॉरिडोर’ बन चुका है।
सूत्रों के मुताबिक दिन-रात एलएनटी (LNT) और जेसीबी मशीनें पहाड़ियों का सीना चीर रही हैं। माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि सरकारी जमीन को अपनी जागीर समझकर उधेड़ा जा रहा है। इसका सीधा असर पर्यावरण और स्थानीय रास्तों पर पड़ रहा है, जो बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।
सिस्टम पर सवाल: क्या जिम्मेदार आंखों पर पट्टी बांधे हैं?
प्रशासनिक गलियारों में छायी ‘रहस्यमयी खामोशी’ ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि अवैध खनन का यह खेल प्रशासन की नाक के नीचे चल रहा है, लेकिन कार्रवाई का मीटर ‘शून्य’ पर है।
ग्रामीणों ने सीधा आरोप लगाया है कि हल्का पटवारी और गिरदावर सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने बैठे हैं। उनकी भूमिका अब संदेह के घेरे में है। नियमतः अवैध गतिविधियों की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेजना इन्हीं की जिम्मेदारी है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि रिपोर्ट फाइलों में दब रही है या फिर ऊपर भेजी ही नहीं जा रही।
ग्रामीणों का कहना है, “यह मात्र लापरवाही नहीं है, बल्कि मिलीभगत की बू आ रही है। जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो सरकारी जमीन की लूट को कौन रोकेगा?”
❓ जिम्मेदारों से हमारे तीखे सवाल
- कार्रवाई क्यों नहीं? लगातार शिकायतों के बावजूद मौके पर मशीनें जब्त क्यों नहीं की जा रहीं?
- रिपोर्टिंग में खेल? क्या पटवारी और गिरदावर द्वारा भेजी जा रही रिपोर्ट्स की क्रॉस-चेकिंग (Cross-Checking) की जाएगी?
- राजस्व की हानि: अवैध खनन से सरकार को हो रहे राजस्व नुकसान की भरपाई कौन करेगा?
- मौन स्वीकृति: क्या निचले स्तर के कर्मचारियों की शह पर बड़े माफिया पनप रहे हैं?
प्रशासन को सीधी चेतावनी: अब न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे
लगातार शिकायतों के बावजूद कार्रवाई न होने से ग्रामीणों का आक्रोश फूट पड़ा है। उनका कहना है कि समय रहते अगर सख्ती बरती जाती तो आज यह नौबत नहीं आती। अब मामला सिर्फ जमीन का नहीं, बल्कि प्रशासन की साख का बन गया है।
आक्रोशित ग्रामीणों ने अल्टीमेटम दिया है कि यदि अवैध खनन पर तत्काल रोक नहीं लगी और मशीनों को जब्त नहीं किया गया, तो वे उच्च प्रशासनिक अधिकारियों का घेराव करेंगे और न्यायालय की शरण लेंगे।
“जब तक पटवारी और गिरदावर की जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक यह खेल बंद नहीं होगा। शिकायतों की रद्दी जमा हो रही है, पर कार्रवाई नहीं। प्रशासन की यह चुप्पी बताती है कि दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है।”


