बिजौलिया : क्षेत्र में अवैध खनन पर कार्रवाई के नाम पर वन विभाग के रेंजर मनेन्द्रपाल सिंह चौधरी की कार्रवाइयां अब सवालों के घेरे में हैं। अवैध खनन पर लगाम कसने की जगह अब यह सामने आ रहा है कि चौधरी ने न केवल अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई की, बल्कि वैध खदानों पर दबाव बनाने और अवैध मांगें करने जैसे गंभीर आरोप भी लगे हैं।
अधिकार क्षेत्र की अनदेखी, विभागों को अंधेरे में रखकर की कार्रवाई:
रेंजर चौधरी द्वारा की गई अधिकतर कार्रवाइयां वन भूमि के बाहर खनिज और राजस्व विभाग की भूमि पर की गईं, जिनमें संबंधित विभागों की टीमें शामिल नहीं थीं। यह न केवल स्पष्ट अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि विभागीय समन्वयहीनता का प्रतीक भी है।
सूत्रों के अनुसार, रेंजर ने वैध खदानों पर भी जबरन दबाव बनाकर अनौपचारिक रूप से राशि की मांग की। क्षेत्र के कई खनन संचालकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दबिश के नाम पर धमकी दी जाती है और आर्थिक लेन-देन का अप्रत्यक्ष दबाव बनाया जाता है।
मौका मुआयना नहीं, सीधे जब्ती – नियमों की उड़ाई धज्जियाँ:
29 मई को सदारामजी का खेड़ा क्षेत्र की वैध स्टोन खदान पर पहुंचकर बिना प्रदूषण की कोई वैज्ञानिक जांच कराए, खदान से निकलते पानी को प्रदूषित घोषित कर ट्रैक्टर और पंप जब्त कर लिया गया। तीन दिन बाद तक न तो कोई लिखित नोटिस दिया गया और न ही दस्तावेजी आधार पेश किया गया। यह कार्रवाई वैधानिक प्रक्रियाओं की सीधी अवहेलना मानी जा रही है।
सूचना में देरी, सुरक्षा में लापरवाही:
महूपुरा में डंपर द्वारा कुचलने की कोशिश जैसे गंभीर मामले की सूचना पुलिस को तुरंत नहीं दी गई। घटना शुक्रवार को हुई, लेकिन ईमेल से सूचना शनिवार शाम को भेजी गई। ऐसे मामलों में तत्काल पुलिस सुरक्षा प्राप्त करना आवश्यक होता है, लेकिन यहां लापरवाही के चलते न तो घटनास्थल की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकी, न ही अपराधियों को पकड़ा जा सका।
खुद को टास्क फोर्स का हिस्सा बताकर की गई मनमानी:
जानकारी में सामने आया है की रेंजर चौधरी स्वयं को जिला प्रशासन द्वारा गठित टास्क फोर्स का हिस्सा बताते हैं और इसी आधार पर कार्रवाइयों को जायज़ ठहराते हैं। लेकिन जिन मामलों में शिकायतें आई हैं, वहां टास्क फोर्स के अन्य किसी भी विभाग की उपस्थिति दर्ज नहीं की गई। ऐसे में कार्रवाई की वैधता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
आरोपों की जांच शुरू, रेंजर के खिलाफ बनी रिपोर्ट:
बिजौलिया एसडीएम अजीत सिंह राठौड़ ने बताया है कि रेंजर के विरुद्ध लगातार शिकायतें प्राप्त हुई हैं – जिनमें धमकी, दबाव और अवैध मांगों का ज़िक्र है। उन्होंने तहसीलदार ललित डिडवानिया की अगुवाई में एक जांच टीम गठित की है, जो रेंजर की कार्रवाइयों की सच्चाई उजागर करने के लिए मौके पर जाकर भौतिक सत्यापन कर रही है।
सवाल जो जवाब मांगते हैं:
• क्या एक रेंजर को बिना अन्य विभागीय सहयोग के राजस्व और खनिज भूमि पर कार्रवाई का अधिकार है?
• बिना वैज्ञानिक प्रमाण के किसी पानी को प्रदूषित घोषित कर जब्ती करना कितना न्यायोचित है?
• क्या “टास्क फोर्स” का नाम लेकर निजी दबाव बनाना अधिकारियों को छूट देता है?
• डंपर से हमले जैसी घटना की सूचना छुपाना खुद अधिकारियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है?
वही देखने को मिला है की बिजौलिया में रेंजर की कार्रवाइयों ने कानून व्यवस्था को लागू करने की जगह खुद कानून की सीमाओं को लांघने का रूप ले लिया है। जहां एक ओर खनन माफिया पर शिकंजा कसना ज़रूरी है, वहीं कानून के रखवालों की जवाबदेही तय करना उससे भी अधिक आवश्यक हो गया है।